Ramayan: इन्हें मेहमान बनाने के लिए रावण और मंदोदरी ने मिलकर किया ये काम

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 03 May, 2023 10:30 AM

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पाप कि कमाई की दक्षिणा लेना, भोजन करना, दान लेना, पापी और दुराचारी से सम्मान व आशीष लेने वालों पर पाप की छाया पड़ती है। ऐसे थे ब्राह्मण ऋषि भारद्वाज पाप की कमाई से बनी सोने की लंका में जाने से मना किया था व रावण का भोजन ग्रहण करने से किया था इंकार।

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Ramayan: पाप कि कमाई की दक्षिणा लेना, भोजन करना, दान लेना, पापी और दुराचारी से सम्मान व आशीष लेने वालों पर पाप की छाया पड़ती है। ऐसे थे ब्राह्मण ऋषि भारद्वाज पाप की कमाई से बनी सोने की लंका में जाने से मना किया था व रावण का भोजन ग्रहण करने से किया था इंकार। 

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एक बार रावण ऋषि भारद्वाज के आश्रम में गए और आग्रह किया, " ऋषिवर ! आप मेरी लंका में पधारने की कृपा करें। मेरी लंका सोने की है और जनता वहां बहुत अमन चैन से रह रही है।"

ऋषि भारद्वाज ने रावण को मना कर दिया और कहा, " मैं आपकी लंका में नहीं जाऊंगा क्योंकि आपकी लंका पाप की कमाई से बनी है। वहां का खजाना मजबूर जनता के ऊपर लगाए गए टैक्स के धन का है। इस पाप की कमाई के टैक्स के धन से बना भोजन मैं नहीं करूंगा। अगर मैंने ऐसा दूषित अन्न खाया तो मेरी तपस्या और बुद्धि भ्रष्ट हो जाएगी, ऐसा अन्न ग्रहण नहीं करूंगा। " 

रावण ने पूछा, " ऋषिवर ! मुझे आप कोई उपाय बताएं ताकि मैं आपको लंका ले जा सकूं।" 

ऋषि भारद्वाज ने कहा, " रावण ! अगर आप और आपकी पत्नी मंदोदरी दोनों स्वयं मिलकर हल जोतें और उस खेत से जो अन्न उत्पन्न होगा, उस अन्न से मैं भोजन करूंगा। वह अन्न ही शुद्ध होगा।" 

उसके बाद रावण और मंदोदरी ने मिलकर अपने बगीचे में अन्न का रोपण किया, तब ऋषि भारद्वाज लंका गए थे। ऐसे थे वो ब्राह्मण ऋषि। 

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आजकल आश्रम और धर्म दोनों ही पाप और अधर्म के दान पर चल रहे हैं। झूठ और रिश्वत से कमाए धन के दान पर तस्करी से कमाए गए काले धन के दान पर, देश के साथ की गद्दारी से कमाए गए धन के दान पर, मांस एक्सपोर्ट करके कमाए गए धन के दान पर, मिलावट से कमाए गए धन के दान पर, भोली जनता को गुमराह करके ठगे गए धन के दान पर यह धर्म टिका है। किसी भी आश्रम में ईमानदारी का धन नहीं है। सभी आश्रमों की नींव पाप के धन पर टिकी है। ईमानदार और मेहनती आदमी सच का धन दान कर ही नहीं सकता है। यह सिलसिला कलयुग में इसी प्रकार चलता रहेगा। यह सिलसिला कभी खत्म न होगा। 

डॉ एच एस रावत (सनातन धर्म चिंतक)

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