Edited By Niyati Bhandari,Updated: 10 Mar, 2023 08:57 AM

हाजी इकबाल एक मुसलमान संत थे। वह साठ बार हज कर आए थे और अत्यंत नियमपूर्वक पांचों वक्त की नमाज पढ़ा करते थे।
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Inspirational Story: हाजी इकबाल एक मुसलमान संत थे। वह साठ बार हज कर आए थे और अत्यंत नियमपूर्वक पांचों वक्त की नमाज पढ़ा करते थे। एक दिन उन्होंने सपना देखा- एक फरिश्ता स्वर्ग और नरक के बीच खड़ा है। वह लोगों को उनके कर्मों के अनुसार स्वर्ग या नरक में भेज रहा है।
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जब हाजी इकबाल सामने आए तो उसने पूछा, ‘‘तुमने क्या-क्या अच्छे और शुभ कर्म किए हैं?’’ मैंने साठ बार हज किया है, हाजी ने जवाब दिया।

यह तो सच है, मगर नाम पूछे जाने पर तुम गर्व से ‘मैं हाजी मोहम्मद हूं’ कहते रहे हो। इस गर्व के कारण तुम्हारा हज करने का पुण्य नष्ट हो गया। तुमने और कोई दूसरा अच्छा काम किया हो तो बताओ। मैं साठ साल से पांचों वक्त की नमाज पढ़ता रहा हूं। तुम्हारा वह पुण्य भी नष्ट हो गया। एक दिन बाहर से धर्म जिज्ञासु तुम्हारे पास आए थे। तुमने उन्हें दिखाने की गरज से उस दिन और दिनों से ज्यादा देर तक नमाज पढ़ी थी।

इस दिखावे के भाव की वजह से तुम्हारी वह साठ बरस की तपस्या भी नष्ट हो गई। इसके बाद हाजी की आंखें खुल गईं। उन्होंने गरूर और नुमाइश से हमेशा के लिए तौबा कर ली। इबादत का पुण्य तभी मिलता है जब वह अपने लिए की जाए।
दूसरों को दिखाने या उन पर असर डालने के इरादे से की गई इबादत का असर खत्म हो जाता है।
