Edited By Prachi Sharma,Updated: 01 Dec, 2024 12:26 PM
12 ज्योतिर्लिंगों, 7 पुरियों, 4 धामों, 51 शक्तिपीठों और 108 विष्णु मंदिरों की महान संस्कृति वाले भारत की महान भूमि पर दुनिया भर से करोड़ों लोग मन की अशांति मिटाने के लिए पवित्र तीर्थस्थलों के दर्शन करने आते हैं।
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Shri Achaleshwar Mahadev: 12 ज्योतिर्लिंगों, 7 पुरियों, 4 धामों, 51 शक्तिपीठों और 108 विष्णु मंदिरों की महान संस्कृति वाले भारत की महान भूमि पर दुनिया भर से करोड़ों लोग मन की अशांति मिटाने के लिए पवित्र तीर्थस्थलों के दर्शन करने आते हैं।
पंजाब के गुरदासपुर जिले की धार्मिक नगरी बटाला से 8 किलोमीटर दूर जालंधर रोड पर भगवान शिवशंकर भोलेनाथ के ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय स्वामी जी का प्रसिद्ध और महान श्री अचलेश्वर धाम है।
तीनों लोकों के स्वामी शिव भोलेनाथ और मां पार्वती के 2 पुत्र कार्तिकेय और गणेश थे। दंत कथाओं के अनुसार एक बार भोलेनाथ जी ने पार्वती जी के साथ विचार-विमर्श कर दोनों बेटों की बुद्धि का परीक्षण कर श्रेष्ठ को उतराधिकारी बनाने का निर्णय लिया। उन्होंने दोनों बेटों को बुलाकर अपनी इच्छा से अवगत करवा कर कहा कि जो तीनों लोकों का चक्कर लगाकर पहले कैलाश पहुंचेगा उसे अपना उतराधिकारी घोषित करेंगे।
दोनों भाई अपने-अपने वाहनों पर सवार होकर तीनों लोकों का चक्कर लगाने निकल पड़े। बाल्यकाल में 6 मुख दिखाकर राक्षस ताड़कासुर का वध करने वाले कार्तिकेय जी अपने वाहन मोर पर सवार होकर निकले और कुछ ही क्षणों में आंखों से ओझल हो गए जबकि गणेश जी अपने वाहन चूहे पर निकले। रास्ते में नारद जी ने उन्हें मिले और उनसे बोले कि माता-पिता तो स्वयं तीनों लोकों के स्वामी हैं, जिनकी परिक्रमा करने मात्र से ही तीनों लोकों की यात्रा हो जाती। यह सुन गणेश जी कैलाश पहुंचे और माता-पिता की परिक्रमा कर हाथ जोड़ कर खड़े हो गए। गणेश जी बुद्धिमानी से प्रभावित होकर शिव जी ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। दूसरी ओर काॢतकेय जी जब इस पवित्र स्थान के ऊपर से भ्रमण कर रहे थे तो नारद जी ने उन्हें कैलाश का समाचार सुनाया। कार्तिकेय जी बहुत दुखी हुए और वापस कैलाश न जाने का प्रण कर धरती पर आ तपस्या करने लगे। यही स्थान आजकल श्री अचलेश्वर धाम के नाम से प्रसिद्ध है।
कार्तिकेय जी के फैसले की जानकारी भगवान शिवशंकर को मिली तो वह स्वयं मां पार्वती और देवी-देवताओं संग कार्तिकेय जी को मनाने यहां पहुंचे। कार्तिकेय जी के कैलाश न जाने के फैसले पर भगवान शिव ने उन्हें अचलेश्वर महादेव का नाम देकर नौवीं का अधिकारी घोषित किया। भोलेनाथ जी ने यह भी वरदान दिया कि दीवाली के 9 दिन बाद नौवीं का पर्व मनाया जाएगा। इस वर्ष भी हाल ही में यह मेला यहां धूमधाम से सम्पन्न हुआ है।
विशाल सरोवर के बीच गंगाधारी भोलेनाथ का विशाल मनमोहक मंदिर, किनारे पर काॢतकेय जी का प्राचीन मंदिर और दूसरी तरफ विशालकाय गुरुद्वारा देश में आपसी भाईचारे और प्यार की महान संस्कृति को दर्शाते हैं। इस स्थान की प्रसिद्धि सुन श्री गुरु नानक देव जी भी यहां पधारे थे, जिसका विवरण प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। गुरु नानक साहिब की याद में यहां विशाल गुरुद्वारा अचल साहिब शोभायमान है। पवित्र सरोवर में स्नान की महानता को देखते हुए मंदिर ट्रस्ट द्वारा यहां निर्मल एवं शीतल जल भरा गया है।