Edited By Niyati Bhandari,Updated: 01 Dec, 2022 08:25 AM

अर्जुन के प्रश्न के उत्तर में श्री कृष्ण कहते हैं कि ‘स्थित-प्रज्ञ’ स्वयं से संतुष्ट होता है। दिलचस्प बात यह है कि श्री कृष्ण ने अर्जुन के प्रश्न के दूसरे भाग का उत्तर नहीं दिया कि स्थित-प्रज्ञ कैसे बोलता, बैठता और चलता है।
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Srimad Bhagavad Gita: अर्जुन के प्रश्न के उत्तर में श्री कृष्ण कहते हैं कि ‘स्थित-प्रज्ञ’ स्वयं से संतुष्ट होता है। दिलचस्प बात यह है कि श्री कृष्ण ने अर्जुन के प्रश्न के दूसरे भाग का उत्तर नहीं दिया कि स्थित-प्रज्ञ कैसे बोलता, बैठता और चलता है। ‘स्वयं के साथ संतुष्ट’ विशुद्ध रूप से एक आंतरिक घटना है और बाहरी व्यवहार के आधार पर इसे मापने का कोई तरीका नहीं है। हो सकता है कि किन्हीं परिस्थितियों में अज्ञानी और स्थित-प्रज्ञ दोनों एक जैसे शब्द बोलें, एक ही तरीके से बैठें और चलें। इससे स्थित-प्रज्ञ की हमारी समझ और भी जटिल हो जाती है।

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श्री कृष्ण का जीवन स्थितप्रज्ञ के जीवन का सर्वोत्तम उदाहरण है। जन्म के समय वह अपने माता-पिता से अलग हो गए थे। उन्हें ‘माखन चोर’ के नाम से जाना जाता था। उनकी रासलीला, नृत्य और बांसुरी प्रसिद्ध हैं, लेकिन जब उन्होंने वृंदावन छोड़ा तो वह रासलीला की तलाश में कभी वापस नहीं आए। जरूरत पड़ने पर वह लड़े और मारा, लेकिन कई बार युद्ध से बचते रहे और इसलिए उन्हें रणछोड़-दास के रूप में भी जाना जाता था। उन्होंने कई चमत्कार दिखाए और वह दोस्तों के दोस्त रहे। जब विवाह करने का समय आया, तो उन्होंने विवाह किया और परिवारों का भरण-पोषण किया।
चोरी के झूठे आरोपों को दूर करने के लिए स्यमंतक-मणि का पता लगाया और जब गीता ज्ञान देने का समय आया, तो उन्होंने दिया। वह किसी साधारण व्यक्ति की तरह मृत्यु को प्राप्त हुए। सर्वप्रथम, उनके जीवन का कोई बाहरी ढांचा नहीं है, जबकि आंतरिक ढांचा वर्तमान में जीना है। दूसरे, कठिन परिस्थितियों के बावजूद आनंद और उत्सव ही जीवन है, क्योंकि वह कठिनाइयों को क्षणिक मानते थे। तीसरा, जैसा कि श्लोक 2.47 में उल्लेख किया गया है, उनके लिए ‘स्वयं के साथ संतुष्ट’ का अर्थ निष्क्रियता नहीं है, बल्कि यह कर्तापन की भावना और कर्मफल की उम्मीद के बिना कर्म करना है।
मूल रूप से, यह अतीत के बोझ या भविष्य से किसी अपेक्षा के बिना वर्तमान क्षण में जीना है। शक्ति वर्तमान क्षण में है और योजना तथा क्रियान्वयन सहित सब कुछ वर्तमान में होता है।
