Edited By Niyati Bhandari,Updated: 02 Jan, 2023 09:30 AM
स्वामी प्रभुपाद साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता न मां कर्माणि लिम्पन्ति न मे कर्मफले स्पृहा। इति मां योऽभिजानाति कर्मभिर्न स बध्यते॥
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स्वामी प्रभुपाद साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता
न मां कर्माणि लिम्पन्ति न मे कर्मफले स्पृहा।
इति मां योऽभिजानाति कर्मभिर्न स बध्यते॥
अनुवाद एवं तात्पर्य : मुझ पर किसी कर्म का प्रभाव नहीं पड़ता, न ही मैं कर्मफल की कामना करता हूं। जो मेरे संबंध में इस सत्य को जानता है, वह भी कर्मों के फल के पाश में नहीं बंधता।
जिस प्रकार इस भौतिक जगत में संविधान के नियम हैं, जो यह बताते हैं कि राजा न तो दंडनीय है, न ही किसी राजनियमों के अधीन रहता है, उसी तरह यद्यपि भगवान इस भौतिक जगत के सृष्टा हैं, किन्तु वे भौतिक जगत के कार्यों से प्रभावित नहीं होते। सृष्टि करने पर भी वे इससे पृथक रहते हैं, जबकि जीवात्माएं भौतिक कार्यकलापों के सकाम कर्मफलों में बंधी रहती हैं, क्योंकि उनमें प्राकृतिक साधनों पर प्रभुत्व दिखाने की प्रवृत्ति रहती है।
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किसी संस्थान का स्वामी कर्मचारियों के अच्छे-बुरे कार्यों के लिए उत्तरदायी नहीं, कर्मचारी इसके लिए स्वयं उत्तरदायी होते हैं। जीवात्माएं अपने-अपने इंद्रियतृप्ति कार्यों में लगी रहती हैं, किन्तु इन कार्यों की अनुमति भगवान से नहीं ली जाती।
इंद्रियतृप्ति की उत्तरोत्तर उन्नति के लिए जीवात्माएं इस संसार कर्म में प्रवृत्त हैं और मृत्यु के बाद स्वर्ग सुख की कामना करती रहती हैं। जो व्यक्ति भगवान के दिव्य स्वभाव को नहीं जानता और सोचता है कि भगवान के कार्यकलाप सामान्य व्यक्तियों की तरह कर्मफल के लिए होते हैं, वह निश्चित रूप से कर्मफलों से बंध जाता है। किन्तु जो परम सत्य को जानता है, वह कृष्णभावनामृत में स्थिर मुक्त जीव है।