Srimad Bhagavad Gita- श्री कृष्ण कहते हैं, कर्तव्य का पालन करो

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 08 Jan, 2023 10:06 AM

srimad bhagavad gita

स्वामी प्रभुपाद- साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता एवं ज्ञात्वा कृतं कर्म पूर्वैरपि मुमुक्षुभि। :कुरु कर्मैव तस्मात्वं पूर्वै: पूर्वतरं कृतम्॥ अनुवाद एवं तात्पर्य : प्राचीन काल में समस्त मुक्तात्माओं ने मेरी दिव्य प्रकृति को जान करके ही कर्म...

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स्वामी प्रभुपाद- साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता एवं ज्ञात्वा कृतं कर्म पूर्वैरपि मुमुक्षुभि। :कुरु कर्मैव तस्मात्वं पूर्वै: पूर्वतरं कृतम्॥

अनुवाद एवं तात्पर्य : प्राचीन काल में समस्त मुक्तात्माओं ने मेरी दिव्य प्रकृति को जान करके ही कर्म किया, अत: तुम्हें चाहिए कि उनके पदचिन्हों का अनुसरण करते हुए अपने कर्तव्य का पालन करो। मनुष्यों की दो श्रेणियां हैं। कुछ के मनों में दूषित विचार भरे रहते हैं और कुछ भौतिक दृष्टि से स्वतंत्र होते हैं। कृष्णभावनामृत इन दोनों श्रेणियों के व्यक्तियों के लिए समान रूप से लाभप्रद है। 

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जिनके मनों में दूषित विचार भरे हैं, उन्हें चाहिए कि भक्ति के अनुष्ठानों का पालन करते हुए क्रमिक शुद्धिकरण के लिए कृष्णभावनामृत को ग्रहण करें और जिनके मन पहले ही ऐसी अशुद्धियों से स्वच्छ हो चुके हैं। वे उसी कृष्णभावनामृत में अग्रसर होते रहें जिससे अन्य लोग उनके आदर्श कार्यों का अनुसरण कर सकें और लाभ उठा सकें। 

मूर्ख व्यक्ति या कृष्णभावनामृत में नवदीक्षित प्राय: कृष्णभावनामृत का पूरा ज्ञान प्राप्त किए बिना कार्य से विरत होना चाहते हैं, किन्तु भगवान ने युद्ध क्षेत्र के कार्य से विमुख होने की अर्जुन की इच्छा का समर्थन नहीं किया। आवश्यकता इस बात की है कि यह जाना जाए कि किस तरह कर्म किया जाए। 

कृष्णभावनामृत के कार्यों से विमुख होकर एकांत में बैठकर कृष्णभावनामृत का प्रदर्शन करना कृष्ण के लिए कार्य में रत होने की अपेक्षा कम महत्वपूर्ण है। यहां पर अर्जुन को सलाह दी जा रही है कि वह भगवान के अन्य पूर्व शिष्यों, यथा सूर्यदेव विवस्वान् के पदचिन्हों का अनुसरण करते हुए कृष्णभावनामृत में कार्य करें।

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