Parakram Diwas: स्वतंत्रता संग्राम के महानायक थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस, पढ़ें रोचक बातें

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 23 Jan, 2023 11:59 AM

subhash chandra bose jayanti

‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ और ‘जय हिन्द’ के नारे देकर आजादी के संघर्ष के लिए देशवासियों और युवाओं में नई ऊर्जा का संचार कर आजादी की लड़ाई को गति देने वाले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के

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Subhash Chandra Bose birthday: ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ और ‘जय हिन्द’ के नारे देकर आजादी के संघर्ष के लिए देशवासियों और युवाओं में नई ऊर्जा का संचार कर आजादी की लड़ाई को गति देने वाले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जन्मदिवस 23 जनवरी को उनकी 125वीं जयंती (2021) से भारत सरकार पराक्रम दिवस के रूप में मनाती है।

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नेताजी का जन्म 23 जनवरी,1897 को ओडिशा के कटक शहर में पिता जानकीनाथ बोस और मां प्रभावती के घर हुआ। पिता मशहूर वकील थे। अंग्रेज सरकार ने उन्हें रायबहादुर का खिताब दिया था। इनके नाना का नाम गंगानारायण दत्त था। बचपन से ही वह पढ़ाई में काफी तेज थे। मात्र 15 वर्ष की आयु में सुभाष ने विवेकानन्द साहित्य का पूर्ण अध्ययन कर लिया था। सुभाष ने 1919 में बी.ए. (ऑनर्स) की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। कलकत्ता विश्वविद्यालय में उनका दूसरा स्थान था। नेता जी सिविल सर्विस करना चाहते थे परन्तु अंग्रेजों के शासन के चलते उस समय भारतीयों के लिए सिविल सर्विस में जाना बहुत मुश्किल था। पिता ने इसके लिए उन्हें लंदन भेजा जहां कड़ी मेहनत से नेता जी चौथे स्थान पर आए। उनके मन में देश के प्रति प्रेम बहुत था, वह आजादी के लिए चिंतित थे, जिसके चलते 1921 में उन्होंने इंडियन सिविल सर्विस की आरामदेह नौकरी ठुकरा दी और भारत लौट आए जबकि किसी भी भारतीय के लिए सिविल सेवा का पद बेहद प्रतिष्ठित होता था।

भारत लौटते ही नेता जी स्वतंत्रता की लड़ाई में कूद गए और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी ज्वाइन की। शुरूआत में नेता जी ने कलकत्ता में कांग्रेस पार्टी के नेता के रूप में चितरंजन दास के नेतृत्व में काम किया। वह चितरंजन दास को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे। उन दिनों गांधी जी ने अंग्रेज सरकार के खिलाफ असहयोग आंदोलन चला रखा था। दासबाबू इस आन्दोलन का बंगाल में नेतृत्व कर रहे थे। उनके साथ सुभाष इस आन्दोलन में सहभागी हो गए। 1922 में दासबाबू ने कांग्रेस के अंतर्गत स्वराज पार्टी की स्थापना की। विधानसभा में अंग्रेज सरकार का विरोध करने के लिए कोलकाता महापालिका का चुनाव स्वराज पार्टी ने लड़ कर जीता और दासबाबू कोलकाता के मेयर बन गए।

उन्होंने सुभाष को महापालिका का प्रमुख कार्यकारी अधिकारी बनाया जिन्होंने महापालिका का पूरा काम करने का तरीका ही बदल डाला। कोलकाता में सभी रास्तों के अंग्रेजी नाम बदलकर भारतीय नाम कर दिए गए। स्वतन्त्रता संग्राम में प्राण न्यौछावर करने वालों के परिवारजनों को महापालिका में नौकरी मिलने लगी।

1927 में जब साइमन कमिशन भारत आया तब कांग्रेस ने उसे काले झंडे दिखाए। कोलकाता में सुभाष ने इस आन्दोलन का नेतृत्व किया। 26 जनवरी 1931 को कोलकाता में राष्ट्र ध्वज फहराकर सुभाष एक विशाल मोर्चे का नेतृत्व कर रहे थे तभी पुलिस ने उन पर लाठी चलाई और उन्हें घायल कर जेल भेज दिया।

सुभाष को कुल 11 बार कारावास हुआ। 1932 में उन्हें अल्मोड़ा जेल में रखा गया। जेल में तबीयत खराब हो गई और चिकित्सकों की सलाह पर वह इलाज के लिए यूरोप जाने को राजी हो गए। वह यूरोप में इटली के नेता मुसोलिनी से मिले, जिन्होंने उन्हें भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में सहायता करने का वचन दिया। 1934 में सुभाष को उनके पिता के मृत्युशय्या पर होने की खबर मिली। खबर सुनते ही वह हवाई जहाज से कराची होते हुए कोलकाता लौटे जहां अंग्रेज सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और कई दिन जेल में रखकर वापस यूरोप भेज दिया।

1934 में ऑस्ट्रिया में एमिली शेंकल नामक ऑस्ट्रियन महिला से उनकी मुलाकात हुई और दोनों में स्वाभाविक प्रेम हो गया। दोनों ने सन् 1942 में बाड गास्टिन नामक स्थान पर हिन्दू पद्धति से विवाह रचा लिया। वियेना में एमिली ने एक पुत्री को जन्म दिया। सुभाष ने उसे पहली बार तब देखा जब वह मुश्किल से 4 सप्ताह की थी। उन्होंने उसका नाम अनिता बोस रखा था।

1942 में नेता जी हिटलर के पास गए और भारत को आजाद करने का प्रस्ताव उसके सामने रखा। फिर नेता जी ने 5 जुलाई 1943 को सिंगापुर के टाऊन हाल के सामने ‘सुप्रीम कमांडर’ के रूप में सेना को सम्बोधित करते हुए ‘दिल्ली चलो!’ का नारा दिया और जापानी सेना के साथ मिलकर ब्रिटिश व कामनवैल्थ सेना से बर्मा सहित इम्फाल और कोहिमा में एक साथ जमकर मोर्चा लिया।

1943 में नेता जी जापान जा पहुंचे। यहां वह मोहन सिंह से मिले और ‘आजाद हिन्द फौज’ का पुनर्गठन किया। 1943 में बोस ने आजाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार बनाई। जापान ने अंडेमान और निकोबार द्वीप समूह इस अस्थायी सरकार को दे दिए।

1944 में आजाद हिंद फौज ने अंग्रेजों पर आक्रमण किया और कुछ भारतीय प्रदेशों को अंग्रेजों से मुक्त भी करा लिया। कोहिमा का युद्ध 4 अप्रैल, 1944 से 22 जून, 1944 तक लड़ा गया एक भयंकर युद्ध था। इस में जापानी सेना को पीछे हटना पड़ा।

18 अगस्त, 1945 को नेताजी हवाई जहाज से मंचूरिया की तरफ जा रहे थे। टोकियो रेडियो ने बताया कि ताइहोकू हवाई अड्डे के पास उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया और वह नहीं रहे। कर्नल हबीबुर्रहमान के अनुसार उनका अन्तिम संस्कार ताइहोकू में ही कर दिया गया। हालांकि, नेताजी की मृत्यु को लेकर आज भी विवाद बना हुआ है। इस दुर्घटना पर बहुत-सी जांच कमेटी भी बैठाई गई हैं लेकिन आज भी नेता जी के निधन की पुष्टि नहीं हो सकी है।  

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