स्वामी प्रभुपाद: जन्म एवं मृत्यु बंधनों को जीतना

Edited By Prachi Sharma,Updated: 22 Nov, 2023 08:25 AM

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इहैव तैर्जितः सर्गो येषां साम्ये स्थितं मनः । निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद् ब्रह्माणि ते स्थिता:॥5.19॥

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इहैव तैर्जितः सर्गो येषां साम्ये स्थितं मनः ।
निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद् ब्रह्माणि ते स्थिता:॥5.19॥

अनुवाद एवं तात्पर्य: जिनके मन एकत्व तथा समता में स्थित हैं, उन्होंने जन्म तथा मृत्यु के बंधनों को पहले ही जीत लिया है। वे ब्रह्म के समान निर्दोष हैं और सदा ब्रह्म में ही स्थित रहते हैं। जैसा कि पहले कहा गया है कि मानसिक समता आत्म साक्षात्कार का लक्षण है, जिन्होंने ऐसी अवस्था प्राप्त कर ली है, उन्हें भौतिक बंधनों पर विशेषतया जन्म तथा मृत्यु पर विजय प्राप्त किए हुए मानना चाहिए।

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जब तक मनुष्य शरीर को आत्मस्वरूप मानता है, वह बद्धजीव माना जाता है किंतु ज्योंही वह आत्म साक्षात्कार द्वारा समचित्तता की अवस्था को प्राप्त कर लेता है, वह बद्धजीवन से मुक्त हो जाता है। दूसरे शब्दों में, उसे इस भौतिक जगत में जन्म नहीं लेना पड़ता, अपितु अपनी मृत्यु के बाद वह आध्यात्मिक लोक को जाता है। भगवान निर्दोष हैं क्योंकि वे आसक्ति अथवा घृणा से रहित हैं।

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इसी प्रकार जब जीव आसक्ति अथवा घृणा से रहित होता है तो वह भी निर्दोष बन जाता है और वैकुंठ जाने का अधिकारी हो जाता है। उन्हें पहले से ही मुक्त मानना चाहिए। उनके लक्षण आगे बतलाए गए हैं।

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