Vat Savitri 2025: पहली बार रखने जा रही हैं वट सावित्री व्रत? जानें कौन से नियम हैं बेहद जरूरी

Edited By Updated: 07 May, 2025 12:20 PM

vat savitri 2025

हिंदू संस्कृति में वट सावित्री व्रत का विशेष महत्व है। यह व्रत विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र, सुख-शांति और संतान सुख की प्राप्ति के लिए करती हैं। यह व्रत विशेषकर उत्तर भारत, बिहार, झारखंड और महाराष्ट्र में बड़े श्रद्धाभाव से मनाया जाता है।

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Vat Savitri 2025: हिंदू संस्कृति में वट सावित्री व्रत का विशेष महत्व है। यह व्रत विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र, सुख-शांति और संतान सुख की प्राप्ति के लिए करती हैं। यह व्रत विशेषकर उत्तर भारत, बिहार, झारखंड और महाराष्ट्र में बड़े श्रद्धाभाव से मनाया जाता है। वट सावित्री व्रत एक पारंपरिक व्रत है जिसमें महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करती हैं और देवी सावित्री का ध्यान करती हैं। मान्यता है कि इस दिन सावित्री ने अपने पति सत्यवान को यमराज से वापस पाया था। यह व्रत महिला की निष्ठा, प्रेम और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। यदि कोई महिला पहली बार ये व्रत रखने जा रही है तो कुछ ऐसी महत्वपूर्ण बातें हैं जिनका खास ध्यान रखना चाहिए। तो चलिए जानते हैं कौन से हैं वो नियम-
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Important things for those who are fasting for the first time पहली बार व्रत रखने वालों के लिए जरूरी बातें

व्रत से एक दिन पहले सात्विक भोजन करें। सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें। भगवान से व्रत करने का संकल्प लें और व्रत कथा सुनने का मन बनाएं।

व्रत का मूल उद्देश्य ही इस कथा को श्रद्धा से सुनना है। कथा सुनने या पढ़ने से व्रत की पूर्णता होती है।

पूजा के लिए जरूरी सामग्री में शामिल हैं:

वट वृक्ष की जड़

मौली

सिंदूर, हल्दी, चूड़ी, बिंदी,

फल, मिठाई, भीगे चने,

जल कलश, दीया, अगरबत्ती, कपूर आदि।
अगर आपके घर के पास वट वृक्ष है तो वहीं जाकर पूजा करें। अन्यथा आप गमले में बरगद का पौधा रखकर उसकी पूजा कर सकती हैं।

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Pooja Vidhi पूजन विधि
सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें। साफ लाल या पीले कपड़े पहनें।

वट वृक्ष पर मौलीलपेटें। फल, फूल, चूड़ी, सिंदूर चढ़ाएं।

सावित्री और सत्यवान की व्रत कथा ध्यान से सुनें या पढ़ें।

महिलाएं दिन भर निर्जला व्रत रखती हैं लेकिन अगर स्वास्थ्य कारणों से संभव न हो तो फलाहार ले सकती हैं।

शाम को दीपक जलाकर पुनः वट वृक्ष की पूजा करें और कथा का समापन करें। अगले दिन व्रत का पारण करें।

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