रहस्य: महामाया ने स्वयं प्रगट होकर अपने भक्त से करवाया था इस धाम का निर्माण

Edited By ,Updated: 17 Aug, 2015 10:06 AM

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सावन के मेले पर विशेष मनुष्य की चिंताओं का हरण करने वाली, दुखों का नाश करने वाली, समस्त सुख वैभव, धन सम्पत्ति प्रदान करने वाली माता श्री चिंतपूर्णी देवी का स्थान हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले के अंतर्गत भरवाईं नामक स्थान पर सोला-सिंघी पहाडिय़ों पर...

सावन के मेले पर विशेष
 
मनुष्य की चिंताओं का हरण करने वाली, दुखों का नाश करने वाली, समस्त सुख वैभव, धन सम्पत्ति प्रदान करने वाली माता श्री चिंतपूर्णी देवी का स्थान हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले के अंतर्गत भरवाईं नामक स्थान पर सोला-सिंघी पहाडिय़ों पर स्थित है।  इनके दर्शनों से प्राणी चिंतामुक्त होकर प्रसन्नतापूर्वक जीवन व्यतीत करता है। मां चिंतापूर्णी देवी अपनी कृपा रूपी प्रसाद से भक्तों की झोलियां सदैव भरती चली आ रही हैं। जो भी भक्त माता के दरबार में अपना शीश झुकाता है उसकी मनोकामनाएं माता रानी ने पूर्ण की हैं।
माता चिंतापूर्णी मंदिर का इतिहास-भगत माई दास कालिया देवी का बहुत बड़ा भक्त था और अपना सम्पूर्ण समय देवी की पूजा और भजन-कीर्तन में ही गुजारता था। इतिहास के मुताबिक लगभग 26 पीढिय़ां पूर्व गांव छपरोह में माता चिंतापूर्णी मंदिर की खोज की गई थी। एक बार की बात है कि भक्त माई दास कालिया अपने ससुराल जा रहा था कि काफी सफर तय करने के उपरान्त एक वट वृक्ष के नीचे आराम करने के लिए बैठ गया। थकावट के कारण माई दास की आंख लग गई। उसके स्वप्न में एक छोटी कंजक ने उसको इस जगह पर ठहर कर महामाया की आराधना करने के  लिए कहा। 
 
कहते हैं कि इसके बाद भक्त माई दास को महामाया ने सिंह पर सवार होकर अष्टभुज रूप में दर्शन दिए। महामाया ने कहा कि मैं युगों-युगों से इस स्थान पर रह रही हूं और पिंडी  के रूप में विराजमान हूं और छिन्नमस्तिका के नाम से पुकारी जाती हूं। मेरे दर्शनों से तुम्हारी और सभी भक्तों की समस्त कामनाएं पूर्ण होंगी और चिंताओं के भंवर जाल से मुक्ति मिलेगी। भक्तों की चिन्ताएं दूर करने के कारण आज की तिथि से मैं चिंतापूर्णी के नाम से विख्यात होऊंगी। तब माई दास ने कहा -हे देवी! मुझे जप-तप, पूजा-पाठ का ज्ञान नहीं है। मैं किस प्रकार आपकी आराधना करूंगा, फिर न तो यहां जल है न रोटी। उस समय देवी ने स्वयं अपने श्री मुख से कहा- तुम मेरे मूल मंत्र-  
 
 ऊं ऐ हीं क्लीं श्री चामुण्डायै विचै।
 
का जप करो और जाकर पहाड़ के नीचे बड़े पत्थर को उखाड़ो तुम्हें जल की प्राप्ति होगी। 
 
यह कह कर देवी अंतर्धान हो गर्ईं। माई दास ने महामाया की आज्ञा पाकर पत्थर उखाड़ा तो नीचे से शुद्ध और निर्मल जल की धारा फूट निकली। आज भी महामाई की पिंडी का स्नान इसी जल से कराया जाता है। भक्त माई दास ने जिस वट वृक्ष के नीचे विश्राम किया था वह प्राचीन वट वृक्ष आज भी माता की कृपा से पूर्ववत हरा-भरा है। 
 
श्रद्धालु जन इसी वट वृक्ष पर अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु मौली बांधते हैं और जब उन्हें मनवांछित फल प्राप्त हो जाता है तो वे मां के दरबार में दर्शनों के उपरांत वट वृक्ष से बांधे हुए धागे खोल लेते हैं। इस जगह पर माता चिंतापूर्णी के भव्य मंदिर का निर्माण हो चुका है और लाखों की संख्या में माता के भक्तजन महामाई का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। 
 
वैसे तो चिंतापूर्णी धाम में पूरा वर्ष ही भक्तजनों की भारी भीड़ रहती है लेकिन सावन महीने की अष्टमी और मेले का अपना महात्म्य है। लाखों की संख्या में श्रद्धालु देश के कोने-कोने से महामाई के दर्शनों के लिए आते हैं। 
 
इस वर्ष यह मेला 15 अगस्त से 24 अगस्त तक मनाया जा रहा है। अष्टमी पर्व 23 अगस्त को मनाया जा रहा है। मेले में भिन्न-भिन्न संस्थाओं की ओर से चिंतापूर्णी से होशियारपुर और तलवाड़ा तक सैंकड़ों ही भंडारे चलाए जाते हैं।     

प्रस्तुति : धर्मेन्द्र कालिया  

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