पाकिस्तान में कट्टरपंथियों का फतवा: बाल विवाह को रेप बताना कुरान के खिलाफ! नया कानून कबूल नहीं

Edited By Tanuja,Updated: 04 Jun, 2025 06:18 PM

child marriage law challenged in federal shariat court

पाकिस्तान में बाल विवाह रोकने के लिए 18 साल से कम उम्र की लड़कियों की शादी को गैरकानूनी ठहराने वाला नया कानून लागू हो गया है। यह कानून बाल विवाह को अपराध की श्रेणी में लाता है ...

International Desk: पाकिस्तान में बाल विवाह रोकने के लिए 18 साल से कम उम्र की लड़कियों की शादी को गैरकानूनी ठहराने वाला नया कानून लागू हो गया है। यह कानून बाल विवाह को अपराध की श्रेणी में लाता है और दोषियों पर सख्त कार्रवाई का प्रावधान करता है। लेकिन कानून लागू होते ही देश में भारी विवाद खड़ा हो गया है और वह भी इस्लाम के नाम पर। पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद की शरिया अदालत में इस कानून को चुनौती दी गई है जिसमें इसे इस्लाम और शरीयत के खिलाफ बताया गया है। धार्मिक कट्टरपंथी इसे अल्लाह और कुरान के आदेशों के विरुद्ध बता रहे हैं और सरकार पर धर्म विरोधी नीतियां अपनाने का आरोप लगा रहे हैं।
 

नया कानून 

  • 18 साल से कम उम्र की लड़की से शादी करना अपराध माना जाएगा।
  • यदि पुरुष बालिग है और लड़की नाबालिग  तो  पुरुष पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
  • अगर दोनों नाबालिग  हैं  तो पैरेंट्स के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
     

‘इस्लाम के खिलाफ’-कट्टरपंथी संगठनों का दावा 
इस्लामी शिक्षाओं की व्याख्या करने वाली काउंसिल ऑफ इस्लामिक आइडियोलॉजी  का कहना है कि 18 साल की उम्र से पहले की शादी को ‘बलात्कार’ कहना इस्लामी सिद्धांतों के खिलाफ है। उन्होंने तर्क दिया कि इस्लाम में निकाह के लिए किसी न्यूनतम आयु का निर्धारण नहीं है, बल्कि ‘ यौवन ’ (puberty) को निकाह के लिए उपयुक्त माना गया है।

 

याचिका में कुरान और हदीस का हवाला
शरिया अदालत में दाखिल याचिका में कहा गया है कि कुरान और हदीस में विवाह के लिए आयु की कोई बाध्यता नहीं  है, बल्कि व्यक्ति की  परिपक्वता और इच्छा को महत्व दिया गया है। याचिकाकर्ताओं का यह भी तर्क है कि यह कानून लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन  करता है, क्योंकि किसी को विवाह करने से रोकना इस्लामिक न्याय प्रणाली के खिलाफ  है।

 

फिर से विवादों में घिरा पाकिस्तान 
यह पहला मौका नहीं है जब पाकिस्तान में धार्मिक मान्यताओं और आधुनिक कानूनों  के बीच टकराव देखने को मिला हो। बाल विवाह जैसे गंभीर सामाजिक मुद्दे पर सरकार द्वारा उठाया गया यह क़दम सराहनीय है, लेकिन इसे धार्मिक चश्मे से देखने वालों के विरोध ने फिर एक बार यह दिखा दिया कि वहां सुधार लाना आसान नहीं।
 

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