ताइवान में चीन समर्थक सांसदों को हटाने की कोशिश नाकाम, उलटा पड़ा मतदान का दांव, बढ़ेंगी सरकार की मुश्किलें

Edited By Updated: 27 Jul, 2025 11:34 AM

taiwan voters reject attempt to recall opposition lawmakers

ताइवान के मतदाताओं ने शुरुआती रुझानों के मुताबिक चीन समर्थक करीब 20 प्रतिशत सांसदों को वापस बुलाने के प्रस्ताव को शनिवार को हुए मतदान में खारिज कर दिया...

International Desk: ताइवान के मतदाताओं ने शुरुआती रुझानों के मुताबिक चीन समर्थक करीब 20 प्रतिशत सांसदों को वापस बुलाने के प्रस्ताव को शनिवार को हुए मतदान में खारिज कर दिया। ताइवान की संसद से जिन सांसदों को वापस बुलाने का प्रस्ताव किया गया था, वे विपक्षी नेशनलिस्ट पार्टी के सदस्य हैं। इसी के साथ सत्तारूढ़ पार्टी द्वारा स्व-शासित द्वीप की विधायिका में शक्ति संतुलन को बदलने की कोशिशें असफल हो गई हैं। स्वतंत्रता समर्थक सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी ने पिछले वर्ष राष्ट्रपति चुनाव में जीत दर्ज की थी। लेकिन चीन समर्थक राष्ट्रवादी, जिसे केएमटी के नाम से भी जाना जाता है, तथा ताइवान पीपुल्स पार्टी के पास संसद में बहुमत के लिए पर्याप्त सीट हैं।

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 आधिकारिक प्रारंभिक रुझानों के मुताबिक दो दर्जन केएमटी सांसदों में से किसी को भी वापस बुलाने के प्रयास विफल रहे। सांसदों की संख्या के लिहाज से वापस बुलाने के लिए कराया गया मतदान अभूतपूर्व है। वहीं 23 अगस्त को सात और केएमटी सांसदों को इसी तरह के मतदान का सामना करना पड़ेगा। केएमटी के पास वर्तमान में 52 सीटें हैं, जबकि सत्तारूढ़ डीपीपी के पास 51 सीटें हैं। डीपीपी को विधायी बहुमत हासिल करने के लिए, केएमटी के कम से कम छह सांसदों की सदस्यता को समाप्त कराना होगा। सत्तारूढ़ पार्टी को उपचुनाव जीतना होगा, जो नतीजों की घोषणा के तीन महीने के भीतर होने चाहिए।

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किसी सांसद को वापस बुलाने के प्रस्ताव के पारित होने के लिए निर्वाचन क्षेत्र के एक-चौथाई से अधिक पात्र मतदाताओं को इसके पक्ष में मतदान करना होगा, तथा समर्थकों की कुल संख्या, इसके विरोध में मतदान करने वालों से अधिक होनी चाहिए। मतदान स्थानीय समयानुसार शाम चार बजे समाप्त हुआ। ताइवान का केंद्रीय चुनाव आयोग एक अगस्त को आधिकारिक तौर पर नतीजों की घोषणा करेगा। यदि अगले महीने के चुनाव परिणाम भी डीपीपी के प्रतिकूल रहे, तो इसका अभिप्राय होगा कि ताइवान के राष्ट्रपति लाई चिंग-ते की सरकार को 2028 में होने वाले चुनावों से पहले विधायिका के भीतर कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ सकता है।  

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