खुलासाः ट्रंप और जनरल मुनीर की मीटिंग के बाद हुआ ईरान पर अटैक, US-PAK में पकी जबरदस्त खिचड़ी !

Edited By Updated: 23 Jun, 2025 05:49 PM

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ईरान पर अमेरिका के परमाणु हमले से ठीक चार दिन पहले एक मुलाकात ने खलबली मचा दी है। 18 जून को पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने वाशिंगटन डीसी में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ...

 International Desk: ईरान पर अमेरिका के परमाणु हमले से ठीक चार दिन पहले एक मुलाकात ने खलबली मचा दी है। 18 जून को पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने वाशिंगटन डीसी में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात की थी। यह सिर्फ औपचारिक लंच नहीं था  इस मुलाकात में ईरान पर संभावित सैन्य कार्रवाई को लेकर गंभीर चर्चा होने की आशंका जताई जा रही है।और महज चार दिन बाद अमेरिका ने ईरान के तीन बड़े परमाणु ठिकानों को बंकर बस्टर बमों से निशाना बना दिया। क्या यह मुलाकात इस हमले की पूर्व-तैयारी का हिस्सा थी?


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18 जून को वॉशिंगटन में ट्रंप और पाकिस्तानी आर्मी चीफ मुनीर के बीच मुलाकात हुई। इसके बाद 22 जून को अमेरिकी सेना ने ईरान पर सबसे बड़ा हमला किया। अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या पाकिस्तान ने अमेरिका को सैन्य सहयोग दिया?पाकिस्तान और ईरान के बीच लगभग  900 किलोमीटर लंबी सीमा   है। ऐसे में अमेरिका के लिए पाकिस्तान का सहयोग रणनीतिक रूप से बेहद अहम हो सकता है खासकर अगर अमेरिकी विमानों को ओवरफ्लाइट, एयरबेस, या लॉजिस्टिक सपोर्ट की आवश्यकता हो। पेंटागन के पूर्व सलाहकार माइकल रुबिन ने दावा किया कि यह वही रणनीति है जो 2003 में इराक युद्ध के समय अपनाई गई थी। उस वक्त अमेरिकी विमान ईरानी एयरपोर्ट्स पर लैंड करने की सहमति से ऑपरेशन चलाया गया था।


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रुबिन के अनुसार, पाकिस्तान के साथ अमेरिका के संबंध भी उसी 'जरूरत के वक्त इस्तेमाल' वाले ढांचे पर चलते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका पाकिस्तान को तब महत्व देता है जब उसे सामरिक जरूरत हो, वरना उसे किनारे कर देता है। इस बार भी वही दोहराया जा रहा है।शुरुआती चुप्पी के बाद पाकिस्तान ने अमेरिका के हमले की आधिकारिक निंदा  की। इस प्रतिक्रिया में कहा गया कि यह हमला अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन है और इससे क्षेत्रीय शांति को गंभीर खतरा है।हालांकि, यह बयान तब आया जब पाकिस्तान ने हाल ही में डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया था। ऐसे में यह दोहरा रवैया खुद पाकिस्तान के भीतर भी सवालों के घेरे में है।


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ईरान से सटी सीमा के कारण अमेरिका को लॉजिस्टिक्स, ड्रोन संचालन और खुफिया गतिविधियों के लिए पाकिस्तान में बेस की आवश्यकता हो सकती है। क्वेटा या तुरबत जैसे सीमावर्ती क्षेत्रों में अस्थायी अमेरिकी ठिकाने बनाए जा सकते हैं। मुस्लिम देश होने के नाते अमेरिका को पाकिस्तान के 'सांकेतिक समर्थन' की भी जरूरत थी ताकि वैश्विक आलोचना को संतुलित किया जा सके। ट्रंप के इस हमले के बाद पश्चिम एशिया में तनाव चरम पर है। लेकिन पाकिस्तान की भूमिका पर उठते सवाल उसके लिए एक नई कूटनीतिक उलझन बन गए हैं। एक ओर अमेरिका से नजदीकी, दूसरी ओर ईरान के साथ मुस्लिम भाईचारा  और बीच में फंसी है पाकिस्तान की विदेश नीति।

 

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