Edited By Seema Sharma,Updated: 27 Nov, 2020 01:42 PM
केंद्र सरकार के कृषि कानून के खिलाफ किसानों का ''दिल्ली चलो मार्च'' उग्र रूप लेता जा रहा है। ‘दिल्ली चलो'' मार्च के तहत सिंघु बॉर्डर पर पहुंचे किसानों के एक समूह को तितर-बितर करने के लिए दिल्ली पुलिस ने शुक्रवार को आंसू गैस के गोले दागे। दिल्ली और...
नेशनल डेस्क: केंद्र सरकार के कृषि कानून के खिलाफ किसानों का 'दिल्ली चलो मार्च' उग्र रूप लेता जा रहा है। ‘दिल्ली चलो' मार्च के तहत दिल्ली और हरियाणा को जोड़ने वाली सीमा पर नरेला में किसानों पर आंसू गैस के गोले दागे गए। सीमा पर सुरक्षा कड़ी कर दी गई है और रेत से भरे ट्रक तथा पानी के टैंक भी वहां तैनात हैं। हरियाणा-दिल्ली बॉर्डर पर जहां कड़ी सख्ती कर दी गई है लेकिन किसान भी अब पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। कृषि कानून के खिलाफ पहले पंजाब और हरियाणा के किसान आंदोलन कर रहे थे लेकिन अब उनको उत्तर प्रदेश के किसानों का भी साथ मिल गया है।
LIVE: दिल्ली बॉर्डर के करीब पहुंचे किसान, सिंधु बॉर्डर पर पुलिस ने छोड़े आंसू गैस के गोले
सड़कों पर यूपी के किसान
कृषि कानून के खिलाफ किसानों का प्रदर्शन बढ़ता ही जा रहा है। उत्तर प्रदेश में भी किसानों के प्रदर्शन का असर दिखने लगा है। मेरठ, मुजफ्फरनगर, बागपत में किसान सड़कों पर उतर आए हैं और हाइवे को जाम कर दिया गया है। बता दें कि गुरुवार को भारतीय किसान यूनियन के राकेश टिकैत ने पंजाब-हरियाणा के किसानों की मांगों को सही ठहराते हुए उनको समर्थन देने की बात कही थी। टकैत ने कहा था कि अब यूपी के किसान भी सड़कों पर उतरेंगे। यूपी के किसानों की ओर से दिल्ली-देहरादून हाइवे पर जाम लगाया जा रहा है।
किसानों का दिल्ली कूच: केजरीवाल सरकार ने ठुकराई पुलिस की मांग, स्टेडियम नहीं बनेंगे अस्थाई जेल
इन सीमाओं पर तनाव
30 से ज्यादा किसान संगठनों का प्रतिनिधित्व करने वाले पंजाब के किसानों ने घोषणा की थी कि वे लालडू, शंभु, पटियाला-पिहोवा, पातरां-खनौरी, मुनक-टोहाना, रतिया-फतेहाबाद और तलवंडी-सिरसा मार्गों से दिल्ली की ओर रवाना होंगे। सभी सीमाओं पर तनाव कायम है। ‘दिल्ली चलो' मार्च के लिए किसान अपनी ट्रैक्टर-ट्रॉलियों पर राशन और अन्य आवश्यक सामान के साथ एकत्रित हो गए हैं। हरियाणा सरकार ने किसानों को प्रदर्शन के लिए एकत्रित होने से रोकने के लिए कई इलाकों में सीआरपीसी की धारा-144 भी लागू कर दी है। किसान नए कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि नये कानून से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की व्यवस्था समाप्त हो जाएगी।