90 लाख रुपये सैलरी के बावजूद नहीं चल पा रहा घर का खर्च? बेंगलुरु-गुरुग्राम जैसे बड़े शहरों में क्यों पूरे नहीं हो रहे खर्च, जानें

Edited By Anu Malhotra,Updated: 23 Jun, 2025 09:16 AM

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भारत के बड़े शहरों में करोड़ों की सालाना कमाई वाले परिवारों के लिए भी आर्थिक तंगी का सच अब उजागर हो रहा है। बेंगलुरु, गुरुग्राम जैसे मेट्रो शहरों में जहां लोग लाखों रुपए महीने की सैलरी कमाते हैं, वहां भी घर का खर्च पूरे करना चुनौती बन गया है।...

नई दिल्ली: भारत के बड़े शहरों में करोड़ों की सालाना कमाई वाले परिवारों के लिए भी आर्थिक तंगी का सच अब उजागर हो रहा है। बेंगलुरु, गुरुग्राम जैसे मेट्रो शहरों में जहां लोग लाखों रुपए महीने की सैलरी कमाते हैं, वहां भी घर का खर्च पूरे करना चुनौती बन गया है। विशेषज्ञों और आम लोगों की मानें तो महंगाई और टैक्स की वजह से उच्च आय वर्ग भी आर्थिक दबाव में फंस गया है।

क्यों फंस गया है Upper Middle Class का जाल?

 क जाने-माने आर्थिक सलाहकार चंद्रलेखा एमआर का मानना है कि भारत की अपर-मिडिल क्लास अब एक ऐसे जाल में फंसी है, जिससे निकलना आसान नहीं। 90 लाख रुपए सालाना कमाने वाला व्यक्ति, जो गुरुग्राम में आलीशान घर में रहता है और अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाता है, वह भी आर्थिक चिंता में है। उनके खर्चों का एक उदाहरण यह है कि घर और कार के EMI पर करीब 2.68 लाख रुपए मासिक लगते हैं। बच्चों की स्कूल फीस लगभग 65 हजार रुपए, घरेलू स्टाफ का खर्च 30 हजार, छुट्टियों के लिए 30 हजार और कपड़े-गिफ्ट तथा घर की देखभाल के लिए भी मोटी रकम खर्च होती है। कुल मिलाकर हर महीने 5 लाख रुपए से ज्यादा खर्चा होता है।

टैक्स काटने के बाद इतना पैसा बचाने के लिए उसे हर महीने करीब 7.5 लाख रुपए कमाने होंगे, जो सालाना 90 लाख की सैलरी के बराबर है। इस व्यय प्रबंधन में व्यक्ति खुद ही फंसा हुआ है, जिसका जाल उसने खुद बनाया है।

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महंगाई और टैक्स का दबाव बढ़ा रहा संकट

विशेषज्ञों का कहना है कि बड़ी सैलरी के बावजूद आर्थिक परेशानी की एक बड़ी वजह बढ़ती महंगाई है। प्रॉपर्टी के दाम हर साल औसतन 6-8% तक बढ़ रहे हैं, जो सामान्य महंगाई से भी ज्यादा है। इसके अलावा, उच्च आय वर्ग को लगभग 39% तक टैक्स चुकाना पड़ता है।

वहीं, सामान्य तौर पर बड़े शहरों में औसत सैलरी मात्र 35 हजार रुपये महीने के करीब है, जो खर्चों के मुकाबले बेहद कम है। इस असंतुलन ने ऊपरी मध्यम वर्ग को एक वित्तीय जाल में धकेल दिया है, जहां लग्जरी की आकांक्षा और वास्तविक खर्च के बीच सामंजस्य बिठाना मुश्किल होता जा रहा है।

लग्जरी की चकाचौंध के पीछे की हकीकत

चंद्रलेखा का कहना है कि ज्यादातर लोग यह सोचते हैं कि यह सब लग्जरी है, और हकीकत में भी है, लेकिन इस लग्जरी का भार उठाना ही सबसे बड़ी चिंता का विषय है। आजकल 3 करोड़ रुपये में घर खरीदना कोई बड़ी बात नहीं रही, और कामकाजी परिवारों के लिए मेड, नैनी, कुक, ड्राइवर जैसी सुविधाएं ज़रूरी हो गई हैं, जो खर्चों को और बढ़ा देती हैं।

 

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