Muslim Divorce: बिना अदालत के मुस्लिमों में कैसे होता है तलाक, जानिए ये जरूरी नियम?

Edited By Rohini Oberoi,Updated: 24 Jun, 2025 03:51 PM

how do muslims divorce without a court

भारत में अक्सर लोग इस्लामी तौर-तरीकों और परंपराओं को जानने के इच्छुक रहते हैं खासकर निकाह और तलाक के तरीकों को लेकर। तलाक का एक तरीका था तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) जिस पर भारत सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया है और इसे लेकर कानून भी बनाया है। इसका मतलब है...

नेशनल डेस्क। भारत में अक्सर लोग इस्लामी तौर-तरीकों और परंपराओं को जानने के इच्छुक रहते हैं खासकर निकाह और तलाक के तरीकों को लेकर। तलाक का एक तरीका था तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) जिस पर भारत सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया है और इसे लेकर कानून भी बनाया है। इसका मतलब है कि अगर कोई मुस्लिम व्यक्ति अपनी पत्नी को एक साथ तीन तलाक देता है तो इसके खिलाफ अदालत का रुख किया जा सकता है।

भारत में हिंदू और मुस्लिम तलाक के नियम अलग-अलग होते हैं। जहाँ हिंदू समुदाय के लोगों को तलाक लेने के लिए अदालत जाना पड़ता है वहीं मुस्लिमों में तीन तलाक खत्म होने के बाद भी कुछ तलाक ऐसे हैं जो बिना अदालत जाए मान्य होते हैं लेकिन इनके भी अपने नियम हैं। आइए जानते हैं इन नियमों के बारे में।

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इस्लाम में तलाक के विभिन्न प्रकार

इस्लाम में पति और पत्नी दोनों को तलाक के अधिकार मिले हुए हैं लेकिन इनके भी कुछ निर्धारित नियम हैं। सामान्य तलाकों की बात करें तो इस्लाम में कई तरह के तलाकों का जिक्र है जिनमें शामिल हैं:

तलाक-ए-हसन
➤ तलाक-ए-अहसन
➤ तलाक-ए-किनाया
➤ तलाक-ए-बाइन
➤ तलाक-ए-बिद्दत (तीन तलाक)

 

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भारत में तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) को अमान्य कर दिया गया है। हालाँकि शरिया कानून के तहत अभी भी कुछ तरह के तलाक मान्य हैं जो बिना अदालत गए भी लिए जा सकते हैं।

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तलाक-ए-हसन: तीन महीने में तीन बार तलाक

यह तलाक तीन महीने की अवधि में पूरा होता है। इसमें पति हर महीने के अंतराल में एक बार तलाक बोलता है। तलाक-ए-हसन की शर्त यह है कि पहली बार तलाक तब बोला जाता है जब पत्नी का मासिक धर्म न चल रहा हो। दूसरी बार तलाक बोलने के बाद दोनों के बीच सुलह कराने की कोशिश की जाती है। अगर पति तीसरे महीने में भी 'तलाक' बोल देता है तो इसे वैध मान लिया जाता है और पति-पत्नी कानूनी रूप से अलग हो सकते हैं। हालाँकि यदि इन तीन महीनों के दौरान पति-पत्नी ने शारीरिक संबंध बना लिए तो उनका तलाक नहीं हो सकता है।

तलाक-ए-अहसन: एक बार बोलकर तीन महीने का इंतजार

इस तरीके में पति अपनी पत्नी से केवल एक बार ही तलाक बोलता है। इसके बाद दोनों अगले तीन महीने तक एक साथ एक ही छत के नीचे रहते हैं। इन तीन महीनों की अवधि को 'इद्दत' कहा जाता है। यदि इस अवधि में पति-पत्नी एक बार भी शारीरिक संबंध नहीं बनाते हैं तो तलाक मान्य हो जाता है। अगर पति तलाक वापस लेना चाहता है तो वह इन तीन महीने की अवधि में ऐसा कर सकता है।

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तलाक-ए-किनाया: बोलकर, लिखकर या मैसेज से तलाक

तलाक-ए-किनाया में तलाक बोलकर, लिखकर या यहाँ तक कि व्हाट्सएप मैसेज के जरिए भी दिया जा सकता है। इसके अलावा काजी की मौजूदगी में एक बैठक में भी पति अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है। इसमें सीधे तौर पर तलाक शब्द का उपयोग नहीं होता बल्कि ऐसे शब्दों का प्रयोग होता है जिनसे तलाक का इरादा स्पष्ट हो।

ये तरीके तीन तलाक पर प्रतिबंध के बाद भी मुस्लिम समुदाय में कुछ विशेष परिस्थितियों में तलाक के विकल्प के रूप में मौजूद हैं जिनके अपने निर्धारित नियम और शर्तें हैं।

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