टांगे गंवाई, नौकरी छूटी, पत्नी भी छोड़ गई, फिर भी नहीं टूटी लवप्रीत की हिम्मत, बना चैंपियन

Edited By Updated: 03 Mar, 2025 10:48 AM

inspirational story of lovepreet singh

यह कहानी संगरूर के लवप्रीत सिंह की है, जिनकी जीवन यात्रा जज्बे, जोश और जुनून से भरी हुई है। 2019 में एक हादसे के दौरान उनकी जिंदगी पूरी तरह बदल गई। नौकरी के दौरान पोल में करंट आने से वह गिर पड़े और गंभीर रूप से घायल हो गए। इस हादसे में उन्होंने एक...

नेशनल डेस्क. यह कहानी संगरूर के लवप्रीत सिंह की है, जिनकी जीवन यात्रा जज्बे, जोश और जुनून से भरी हुई है। 2019 में एक हादसे के दौरान उनकी जिंदगी पूरी तरह बदल गई। नौकरी के दौरान पोल में करंट आने से वह गिर पड़े और गंभीर रूप से घायल हो गए। इस हादसे में उन्होंने एक टांग गंवा दी, दूसरी टांग में रॉड डाली गई और पूरे पेट की प्लास्टिक सर्जरी की गई। एक समय ऐसा भी आया, जब डॉक्टरों ने उनके बचने की उम्मीद छोड़ दी थी।

लवप्रीत ढाई साल तक बेड पर पड़े रहे। इस दौरान नौकरी भी छूट गई और दुख की बात ये है कि उनकी पत्नी ने भी इस कठिन समय में उनका साथ छोड़ दिया और 2024 में तलाक ले लिया। इसके बाद बेटे की स्थिति को देख मां भी इस दर्द को सहन नहीं कर पाईं और उन्होंने भी अपनी जान दे दी।

लवप्रीत का सफर 2015 में बिजली बोर्ड में कांट्रेक्ट पर भर्ती होकर शुरू हुआ था। हादसे से पहले उन्होंने भंगड़ा एकेडमी खोली थी और वर्ल्ड कबड्डी कप में चार साल तक मुख्य भूमिका निभाई थी। इसके अलावा उन्होंने एथलेटिक्स में जिला स्तर और जिमनास्टिक में राज्य स्तर तक प्रतियोगिताओं में भाग लिया था। लेकिन, हादसे के बाद उन्होंने हार नहीं मानी। सकारात्मक सोच और मजबूत इच्छा शक्ति के कारण लवप्रीत ने दिव्यांग क्रिकेट में अपनी पहचान बनाई। 2024 में उन्होंने दिव्यांग एसोसिएशन से जुड़कर क्रिकेट खेलना शुरू किया। वह यू-ट्यूब के जरिए दिव्यांग क्रिकेट टीम के मैच देख कर प्रेरित होते थे और धीरे-धीरे खुद भी खेल में भाग लेने लगे। पड़ोस के बच्चे उनकी मदद करते थे और उन्हें क्रिकेट खेलने में सहयोग देते थे।

लवप्रीत ने चंडीगढ़ की दिव्यांग क्रिकेट टीम से खेलते हुए नेशनल व्हील चेयर क्रिकेट चैंपियनशिप में भाग लिया और अपनी टीम को जीत दिलाई। 2025 में वह पहली बार चंडीगढ़ की टीम से खेले और 5 फरवरी से 15 फरवरी तक ग्वालियर में हुए डब्ल्यूसीआई द्वारा आयोजित नेशनल व्हील चेयर क्रिकेट चैंपियनशिप में भाग लिया। इस टूर्नामेंट में उनकी टीम ने बिना कोई मैच हारे चैंपियनशिप जीत ली। अब उनका लक्ष्य भारतीय दिव्यांग क्रिकेट टीम में शामिल होकर देश का नाम रोशन करना है।

लवप्रीत का कहना है कि जीवन में चाहे जैसे भी हालात हों, अगर दिल में उम्मीद और मेहनत हो तो मुश्किलें आसान हो जाती हैं। उन्होंने यह साबित कर दिया है कि संघर्ष और हिम्मत से बड़ी से बड़ी चुनौती को पार किया जा सकता है।

इस पूरे संघर्ष में लवप्रीत का परिवार उनका साथ देने में पीछे नहीं हटा। उनके पिता और भाई मोबाइल रिपेयर की दुकान चला कर परिवार की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। हालांकि, लवप्रीत को विभाग से कोई आर्थिक सहायता नहीं मिली। उनकी पूरी इलाज पर करीब 10 लाख रुपए खर्च हुए, लेकिन विभाग ने इस दौरान कोई मदद नहीं की।

लवप्रीत सिंह की यह कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ आएं, अगर हम आत्मविश्वास और मेहनत से काम करें, तो हम किसी भी मंजिल को हासिल कर सकते हैं।
 

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