किरेन रिजिजू की अदालतों के काम पर सख्त टिप्पणी, बोले- जब न्यायपालिका भटक जाती है तो...

Edited By Seema Sharma,Updated: 18 Oct, 2022 10:58 AM

kiren rijiju strong comment on the working of the courts

केंद्रीय विधि और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि देश के लोग कॉलेजियम प्रणाली से खुश नहीं हैं और संविधान की भावना के मुताबिक न्यायाधीशों की नियुक्ति करना सरकार का काम है।

नेशनल डेस्क: केंद्रीय विधि और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि देश के लोग कॉलेजियम प्रणाली से खुश नहीं हैं और संविधान की भावना के मुताबिक न्यायाधीशों की नियुक्ति करना सरकार का काम है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का ‘मुखपत्र' माने जाने वाले ‘‘पांचजन्य'' की ओर से यहां आयोजित ‘‘साबरमती संवाद'' में रिजिजू ने कहा कि उन्होंने देखा है कि आधे समय न्यायाधीश नियुक्तियों को तय करने में ‘‘व्यस्त'' होते हैं, जिसके कारण न्याय देने का उनका प्राथमिक काम ‘‘प्रभावित'' होता है। मंत्री की यह टिप्पणी पिछले महीने उदयपुर में एक सम्मेलन में उनके बयान के बाद आई है जिसमें उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। 

 

पहले कानून मंत्रालय करता था नियुक्ति

न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर एक सवाल के जवाब में रिजिजू ने कहा, ‘‘1993 तक भारत में प्रत्येक न्यायाधीश को भारत के प्रधान न्यायाधीश के परामर्श से कानून मंत्रालय द्वारा नियुक्त किया जाता था। उस समय हमारे पास बहुत प्रख्यात न्यायाधीश थे।'' उन्होंने कहा, ‘‘संविधान इसके बारे में स्पष्ट है। संविधान कहता है कि भारत के राष्ट्रपति न्यायाधीशों की नियुक्ति करेंगे, इसका मतलब है कि कानून मंत्रालय भारत के प्रधान न्यायाधीश के परामर्श से न्यायाधीशों की नियुक्ति करेगा।'' कॉलेजियम प्रणाली से जुड़े एक सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि 1993 तक सारे न्यायाधीशों की नियुक्ति मुख्य न्यायाधीश के साथ विमर्श कर सरकार ही करती थी। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की अध्यक्षता प्रधान न्यायाधीश करते हैं और इसमें अदालत के चार वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं। हालांकि, सरकार कॉलेजियम की सिफारिशों के संबंध में आपत्तियां उठा सकती है या स्पष्टीकरण मांग सकती है, लेकिन अगर पांच सदस्यीय निकाय उन्हें दोहराता है तो नामों को मंजूरी देना प्रक्रिया के तहत बाध्यकारी होता है। 

 

लोग न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रणाली से खुश नहीं

रिजिजू ने कहा कि मैं जानता हूं कि देश के लोग न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली से खुश नहीं हैं। अगर हम संविधान की भावना से चलते हैं तो न्यायाधीशों की नियुक्ति सरकार का काम है।'' उन्होंने कहा, ‘‘संविधान की भावना को देखा जाए तो न्यायाधीशों की नियुक्ति सरकार का ही काम है। दुनिया में कहीं भी न्यायाधीशों की नियुक्ति न्यायाधीश बिरादरी नहीं करती हैं।'' उन्होंने कहा, ‘‘देश का कानून मंत्री होने के नाते मैंने देखा है कि न्यायाधीशों का आधा समय और दिमाग यह तय करने में लगा रहता है कि अगला न्यायाधीश कौन होगा। मूल रूप से न्यायाधीशों का काम लोगों को न्याय देना है, जो इस व्यवस्था की वजह से बाधित होता है।'' 

 

जब न्यायपालिका भटकती है तो....

रिजिजू ने कहा कि जिस प्रकार मीडिया पर निगरानी के लिए भारतीय प्रेस परिषद है, ठीक उसी प्रकार न्यायपालिका पर निगरानी की एक व्यवस्था होनी चाहिए और इसकी पहल खुद न्यायपालिका ही करे तो देश के लिए अच्छा होगा। उन्होंने यह भी कहा कि लोकतंत्र में कार्यपालिका और विधायिका पर निगरानी की व्यवस्था मौजूद है, लेकिन न्यायपालिका के भीतर ऐसा कोई तंत्र नहीं है। उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों की चयन प्रक्रिया में कई बार गुटबाजी तक हो जाती है और यह बहुत ही जटिल है, पारदर्शी नहीं है। न्यायिक सक्रियता (ज्यूडिशियल एक्टिविज्म) से जुड़े एक सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका अगर अपने-अपने दायरे में रहें और अपने काम में ही ध्यान लगाए तो फिर यह समस्या नहीं आएगी। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि हमारी कार्यपालिका और विधायिका अपने दायरे में बिल्कुल बंधे हुए हैं। अगर वे इधर-उधर भटकते हैं तो न्यायपालिका उन्हें सुधारती है। समस्या यह है कि जब न्यायपालिका भटकती है, उसको सुधारने का व्यवस्था नहीं है।''

 

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि वह न्यायपालिका को कोई आदेश नहीं दे सकते हैं, लेकिन उसे ‘‘सतर्क'' जरूर कर सकते हैं क्योंकि वह भी लोकतंत्र का हिस्सा है और लाइव स्ट्रीमिंग (इंटरनेट के माध्यम से कार्यवाही के सीधे प्रसारण) व सोशल मीडिया के जमाने में वह भी जनता की नजर में है। उन्होंने कहा, ‘इसलिए आपका भी व्यवहार अनुकूल हो... जैसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया में बाकियों का होता है। लोग आपको भी देख रहे हैं... आप अपने लिए सेल्फ रेगुलेटिंग मेकैनिज्म (स्व-विनियमन तंत्र) बनाएं तो यह देश के लिए अच्छा होगा।'' उन्होंने उदाहरण दिया कि संसद का कोई सदस्य अगर आपत्तिजनक शब्दों या भाषा का इस्तेमाल करता है तो उस पर लगाम लगाने के प्रावधान हैं। इसी प्रकार प्रधानमंत्री से लेकर नीचे तक के लोग नियमों से बंधे होते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन लोकतंत्र में यह नियम हमारे न्यायपालिका में भी होना चाहिए...कोई ‘इन हाउस मैकेनिज्म' बनाया जाए न्यायपालिका के अंदर ही हो और इसे वे ही इसको विनियमित करे तो यह सबसे अच्छा और उपयोगी होगा। ना कि हम कोई कानून बनाएं।'' 

 

न्यायाधीश अपनी सोच उजागर करते हैं

रिजिजू ने कहा कि अदालती कार्रवाई के दौरान न्यायाधीश टिप्पणियां करते हैं, लेकिन उनके फैसलों में इसका जिक्र नहीं होता है। उन्होंने कहा, ‘‘टिप्पणी करके न्यायाधीश अपनी सोच उजागर करते हैं और समाज में इसका विरोध भी होता है। न्यायपालिका के साथ फिर न्यायाधीशों के साथ जब भी मेरी वार्ता होती है तो मैं साफ तौर पर उनको कहता हूं कि वह अगर आदेश में टिप्पणी करें तो ज्यादा अच्छा रहेगा।

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