क्या नकली बारिश से मिलेगी दिल्लीवासियों को राहत की सांस? खर्च सुनकर उड़ जाएंगे होश

Edited By Rohini Oberoi,Updated: 22 May, 2025 12:55 PM

preparations to tackle pollution in delhi will there be fake rain

दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए दिल्ली सरकार एक नए और महत्वाकांक्षी तरीके पर विचार कर रही है: नकली बारिश (आर्टिफिशियल रेन)। खबर है कि दिल्ली का पर्यावरण विभाग मंत्रिमंडल की अगली बैठक में कृत्रिम बारिश के परीक्षण का प्रस्ताव पेश कर सकता...

नेशनल डेस्क। दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए दिल्ली सरकार एक नए और महत्वाकांक्षी तरीके पर विचार कर रही है: नकली बारिश (आर्टिफिशियल रेन)। खबर है कि दिल्ली का पर्यावरण विभाग मंत्रिमंडल की अगली बैठक में कृत्रिम बारिश के परीक्षण का प्रस्ताव पेश कर सकता है। अगर इस प्रस्ताव को मंजूरी मिलती है तो सरकार सीधे आईआईटी कानपुर को इसके लिए धनराशि ट्रांसफर करेगी जो इस परियोजना का नेतृत्व करेगा।

आईआईटी कानपुर करेगा पूरी योजना का क्रियान्वयन

एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस योजना से लेकर इसके क्रियान्वयन तक का पूरा काम आईआईटी कानपुर ही संभालेगा। दिल्ली सरकार का काम सिर्फ इस परीक्षण के लिए आवश्यक धनराशि उपलब्ध कराना होगा। यह कदम प्रदूषण से निपटने के लिए दिल्ली सरकार की गंभीरता को दर्शाता है।

कितना आएगा खर्च?

शुरुआती अनुमानों के अनुसार कृत्रिम बारिश के एक परीक्षण पर लगभग 1.5 करोड़ रुपये का खर्च आने की उम्मीद है। अगर यह परीक्षण सफल रहता है और इसके जरिए दिल्लीवासियों को प्रदूषण से राहत मिलती है तो यह उनके लिए एक बड़ी उपलब्धि होगी।

 

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कृत्रिम बारिश कैसे काम करती है और क्या हैं चुनौतियां?

कृत्रिम बारिश जिसे वैज्ञानिक भाषा में 'क्लाउड सीडिंग' कहा जाता है में बादलों में कुछ खास रसायनों को छोड़ा जाता है। इसमें मुख्य रूप से सिल्वर आयोडाइड, ड्राई आइस (सूखी बर्फ) या साधारण नमक का इस्तेमाल किया जाता है। इन रसायनों को विमान, रॉकेट, बैलून या ड्रोन के जरिए बादलों में छोड़ा जाता है।

हालांकि यह प्रक्रिया इतनी सीधी नहीं है। कृत्रिम बारिश के लिए कुछ खास पर्यावरणीय परिस्थितियां अनुकूल होनी चाहिए:

➤ हवा की गति और दिशा अनुकूल होनी चाहिए।

 

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➤ आसमान में कम से कम 40% बादल मौजूद होने चाहिए और उन बादलों में थोड़ी मात्रा में पानी (नमी) का होना भी जरूरी है।
➤ अगर ये अनुकूल परिस्थितियां नहीं मिलतीं तो परीक्षण असफल हो सकता है। इसके अलावा जरूरत से ज्यादा बारिश भी खतरनाक हो सकती है जिससे बाढ़ जैसी दिक्कतें आ सकती हैं।

एक और चुनौती यह है कि सर्दियों के मौसम में बादलों में पानी और नमी कम होती है जिससे वे पर्याप्त रूप से बारिश करने में सक्षम नहीं होते। यदि मौसम बहुत सूखा हो तो क्लाउड सीडिंग का प्रयास असफल हो सकता है और छोड़ी गई पानी की बूंदें जमीन तक पहुंचने से पहले ही भाप बनकर उड़ सकती हैं।

इन चुनौतियों के बावजूद दिल्ली सरकार प्रदूषण के इस गंभीर मुद्दे से निपटने के लिए हर संभव विकल्प तलाश रही है। अगर यह परीक्षण सफल होता है तो कृत्रिम बारिश दिल्ली की हवा को साफ करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

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