Edited By Anu Malhotra,Updated: 06 Dec, 2024 10:48 AM
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने अपनी मौद्रिक नीति समीक्षा में लगातार 11वीं बार रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया है। यह फैसला अर्थव्यवस्था की स्थिरता बनाए रखने और महंगाई को नियंत्रण में रखने के उद्देश्य से लिया गया है।
नेशनल डेस्क: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने लगातार 11वीं बार प्रमुख ब्याज दरों (रेपो रेट) को स्थिर रखने का निर्णय लिया है। यह फैसला केंद्रीय बैंक के महंगाई नियंत्रण के प्राथमिक लक्ष्य को दर्शाता है, जो अब भी उसकी सहनशीलता सीमा से ऊपर बनी हुई है।
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने घोषणा करते हुए बताया, "मौद्रिक नीति समिति ने 4-2 के बहुमत से रेपो रेट को 6.5% पर स्थिर रखने का निर्णय लिया। इसके साथ ही स्टैंडिंग डिपॉजिट सुविधा (SDF) 6.25% और मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी (MSF) व बैंक दर 6.75% पर बनी रहेगी।"
महंगाई पर कड़ा नियंत्रण प्राथमिकता
MPC ने अपनी ‘न्यूट्रल’ नीति को बरकरार रखते हुए 2-6% के लक्ष्य दायरे में महंगाई को स्थाई रूप से लाने के प्रति प्रतिबद्धता जताई है।
महंगाई और विकास का संतुलन
आरबीआई गवर्नर दास ने बताया कि भले ही दूसरी तिमाही में आर्थिक विकास की रफ्तार धीमी रही हो, लेकिन कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था का दृष्टिकोण मजबूत है। हालांकि, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आर्थिक जोखिमों को लेकर सतर्क रहना जरूरी है।
महंगाई अभी भी MPC की सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है। अक्टूबर में महंगाई दर RBI की 6% की ऊपरी सीमा से ऊपर पहुंच गई, जिसका मुख्य कारण खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि है।
दास ने चेतावनी दी कि "खाद्य महंगाई का दबाव इस वित्तीय वर्ष की चौथी तिमाही तक खास तौर पर कम होने की उम्मीद नहीं है।"
GDP और महंगाई के लक्ष्य में संशोधन
हालिया आर्थिक परिस्थितियों को देखते हुए, RBI ने चालू वित्तीय वर्ष के लिए GDP विकास दर का लक्ष्य घटाकर 6.6% कर दिया है। वहीं, महंगाई का अनुमान 4.8% रखा गया है।
गवर्नर दास ने कहा, "स्थायी आर्थिक स्थिरता के लिए महंगाई और विकास के बीच संतुलन बहाल करना बेहद जरूरी है। मजबूत आर्थिक विकास की नींव तभी रखी जा सकती है, जब मूल्य स्थिरता सुनिश्चित हो।"
आगे की राह
महंगाई पर नियंत्रण के लिए RBI के तटस्थ रुख से यह स्पष्ट होता है कि आर्थिक परिस्थितियों में बदलाव होने पर वह लचीला रवैया अपना सकता है। हालांकि, इन उपायों की सफलता काफी हद तक वैश्विक वस्तु कीमतों और घरेलू आपूर्ति तंत्र पर निर्भर करेगी।