‘सरोगेसी' : ‘डोनर युग्मक' के इस्तेमाल पर रोक के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई कल

Edited By Pardeep,Updated: 29 May, 2023 10:57 PM

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उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर कर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी उन नियमों को चुनौती दी गई है, जिनके तहत ‘सरोगेसी' (किराये की कोख) के जरिए संतान सुख हासिल करने के ख्वाहिशमंद जोड़ों के ‘डोनर गैमीट (युग्मक)' का इस्तेमाल करने पर रोक लगाई...

नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर कर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी उन नियमों को चुनौती दी गई है, जिनके तहत ‘सरोगेसी' (किराये की कोख) के जरिए संतान सुख हासिल करने के ख्वाहिशमंद जोड़ों के ‘डोनर गैमीट (युग्मक)' का इस्तेमाल करने पर रोक लगाई गई है। याचिका में दलील दी गई है कि ये नियम सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम-2021 के प्रावधानों को विफल करते हैं, जो संतानोत्पत्ति में समस्या का सामना कर रहे जोड़ों को ‘किराये की कोख' के जरिये संतान सुख हासिल करने का अधिकार देते हैं। 

न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और प्रशांत कुमार मिश्रा की अवकाशकालीन पीठ मंगलवार को अधिवक्ता अभिकल्प प्रताप सिंह के माध्यम से नलिन त्रिपाठी द्वारा दायर इस याचिका पर सुनवाई करेगी। मालूम हो कि युग्मक प्रजनन कोशिकाओं को कहते हैं। जीवों में ‘शुक्राणु' नर युग्मक, जबकि ‘डिंब या अंडाणु' मादा युग्मक होते हैं। 

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने 14 मार्च 2023 को सामान्य वैधानिक नियम (जीएसआर) 179 (ई) जारी किए थे, जिनमें कहा गया था : (1) ‘सरोगेसी' का सहारा लेने वाले जोड़ों के पास अपने दोनों युग्मक होने चाहिए और उन्हें ‘डोनर युग्मक' के इस्तेमाल की अनुमति नहीं होगी, (2) ‘सरोगेसी' का विकल्प चुनने वाली विधवा/तलाकशुदा महिलाओं को इस प्रक्रिया का लाभ उठाने के लिए खुद के अंडाणुओं और डोनर शुक्राणुओं का इस्तेमाल करना होगा। 

सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) अधिनियम-2021 की धारा-2(एच) में ‘युग्मक डोनर' को उस व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है, जो संतान सुख हासिल करने में किसी नि:संतान दंपति या विधवा/तलाकशुदा महिला की मदद के लिए शुक्राणु या अंडाणु उपलब्ध कराता है। 

याचिका में कहा गया है, “उक्त जीएसआर सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम-2021 के प्रावधानों को विफल कर सकता है, जो नि:संतान जोड़ों को संतान सुख हासिल करने का अधिकार देने वाला एक कल्याणकारी कानून है। उक्त जीएसआर न केवल भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14 और अनुच्छेद-21 का उल्लंघन है, बल्कि इस अधिनियमन के उद्देश्यों के विपरीत भी है। इसलिए संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत यह रिट याचिका दायर की गई है।”

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