Big News for UPI users: UPI यूजर्स के लिए बड़ी खबर, अब इतनी अमाउंट भेजने पर लग सकता है चार्ज

Edited By jyoti choudhary,Updated: 11 Jun, 2025 12:53 PM

big news for upi users now you may be charged for sending this amount

मोदी सरकार यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) से जुड़े नियमों में बड़ा बदलाव करने की तैयारी में है। सूत्रों के मुताबिक, सरकार ₹3000 से ज्यादा की UPI ट्रांजैक्शन पर एक बार फिर मर्चेंट डिस्काउंट रेट (MDR) लागू करने पर विचार कर रही है। हालांकि ₹3000 तक की...

बिजनेस डेस्कः मोदी सरकार यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) से जुड़े नियमों में बड़ा बदलाव करने की तैयारी में है। सूत्रों के मुताबिक, सरकार ₹3000 से ज्यादा की UPI ट्रांजैक्शन पर एक बार फिर मर्चेंट डिस्काउंट रेट (MDR) लागू करने पर विचार कर रही है। हालांकि ₹3000 तक की लेन-देन पहले की तरह मुफ्त रहेगी। MDR वो फीस होती है जो बैंक या पेमेंट सर्विस प्रोवाइडर व्यापारी (Merchant) से वसूलते हैं, जब ग्राहक डिजिटल पेमेंट करता है। अभी UPI पर Zero MDR Policy लागू है यानी व्यापारी से कोई चार्ज नहीं लिया जाता।

नया प्रस्ताव क्या है?

पेमेंट्स काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI) ने सुझाव दिया है, “बड़े मर्चेंट्स (जिनका टर्नओवर अधिक है) पर 0.3% एमडीआर लगाया जाए।” फिलहाल क्रेडिट/डेबिट कार्ड्स पर एमडीआर 0.9% से 2% है (रुपे कार्ड्स को छोड़कर)। रुपे क्रेडिट कार्ड्स इस फीस से अभी बचे रहेंगे।

पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO), वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों और वित्तीय सेवा विभागों की हाईलेवल मीटिंग हुई। इसमें UPI के भविष्य पर चर्चा हुई और एमडीआर फ्रेमवर्क पर फैसला लेने की तैयारी है। 

अचानक बदलाव की वजह क्या है?

बैंकों और पेमेंट कंपनियों पर बढ़ता दबाव:

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, बैंकों और डिजिटल पेमेंट कंपनियों को UPI सिस्टम को बनाए रखने में भारी ऑपरेशनल खर्च उठाना पड़ रहा है। वर्तमान में UPI का रिटेल डिजिटल ट्रांजैक्शन में करीब 80% हिस्सा है। खासकर बड़े मर्चेंट पेमेंट्स की संख्या तेजी से बढ़ी है लेकिन जीरो MDR नीति के कारण बैंकों को कोई अतिरिक्त आय नहीं हो रही, जिससे वे इस प्रणाली में निवेश के लिए प्रोत्साहित नहीं हो पा रहे।

UPI पेमेंट्स का बढ़ता स्केल:

2020 से अब तक मर्चेंट्स द्वारा किए गए UPI पेमेंट्स का कुल मूल्य ₹60 लाख करोड़ तक पहुंच चुका है। इतने बड़े पैमाने पर बिना किसी शुल्क के सेवा देना अब वित्तीय रूप से टिकाऊ नहीं रह गया है। यही वजह है कि सरकार अब शुल्क प्रणाली पर दोबारा विचार कर रही है।
 

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