Edited By Jyoti,Updated: 22 Aug, 2022 05:55 PM
एक दिन आचार्य चाणक्य का एक परिचित उनके पास आया और कहने लगा-आप जानते हैं, अभी-अभी मैंने आपके मित्र के बारे में क्या सुना?
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एक दिन आचार्य चाणक्य का एक परिचित उनके पास आया और कहने लगा-आप जानते हैं, अभी-अभी मैंने आपके मित्र के बारे में क्या सुना?
चाणक्य अपनी तर्कशक्ति, ज्ञान और व्यवहार कुशलता के लिए विख्यात थे। उन्होंने अपने परिचित से कहा-आपकी बात मैं सुनूं इसके पहले मैं चाहूंगा कि आप त्रिगुण परीक्षण से गुजरें। उस परिचित ने पूछा, यह त्रिगुण परीक्षण क्या है?
चाणक्य ने समझाया-आप मुझे मेरे मित्र के बारे में बताएं इससे पहले अच्छा यह होगा कि आप जो कहें, उसे थोड़ा परख लें। इसीलिए मैं इस प्रक्रिया को त्रिगुण परीक्षण कहता हूं। इसकी पहली कसौटी है-सत्य। इस कसौटी के अनुसार जानना जरूरी है कि जो आप कहने वाले हैं, वह सत्य है। आप खुद उसके बारे में अच्छी तरह जानते हैं?
नहीं, वह आदमी बोला-वास्तव में मैंने इसे कहीं सुना था। खुद देखा या अनुभव नहीं किया था।
ठीक है, चाणक्य ने कहा-आपको पता नहीं है कि यह बात सत्य है या असत्य।
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दूसरी कसौटी है-अच्छाई! क्या आप मुझे मेरे मित्र की कोई अच्छाई बताने वाले हैं?
नहीं, उस व्यक्ति ने कहा। इस पर चाणक्य बोले-जो आप कहने वाले हैं वह न तो सत्य है, न ही अच्छा।
चलिए तीसरा परीक्षण कर ही डालते हैं। तीसरी कसौटी है-उपयोगिता। जो आप कहने वाले हैं, वह क्या मेरे लिए उपयोगी है?
नहीं, ऐसा तो नहीं है। यह बात सुनकर चाणक्य ने आखिरी बात कह दी-आप मुझे जो बताने वाले हैं वह न सत्य है, न अच्छा और न ही उपयोगी, फिर आप मुझे बताना क्यों चाहते हैं?
मुझे यह बात नहीं सुननी है। —आचार्य ज्ञानचंद्र