गीता के ज्ञान का मर्म जानने के चाहवान मानें स्वामी विवेकानंद की ये नेक सलाह

Edited By Updated: 13 Mar, 2023 09:52 AM

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हर किसी का काम करने, सोचने-समझने का तरीका अलग होता है। कुछ तुरंत कदम उठा लेते हैं, तो कुछ हर तरह से सोच-समझ

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Swami Vivekananda advice: हर किसी का काम करने, सोचने-समझने का तरीका अलग होता है। कुछ तुरंत कदम उठा लेते हैं, तो कुछ हर तरह से सोच-समझ कर आगे बढ़ते हैं। अनुशासन, श्रम और धैर्य से कई मुश्किल काम आसान हो जाते हैं और कई काम बिगड़ने से बच जाते हैं। एक बार एक युवक ने स्वामी विवेकानंद के पास आकर उनसे निवेदन किया, ‘‘मुझे गीता के ज्ञान का मर्म समझा दीजिए।’’

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स्वामी विवेकानंद ने उस युवक से कहा, ‘‘पहले छ: माह फुटबाल खेलो और अपनी  क्षमता के अनुसार गरीबों तथा असहायों की सहायता करो, उसके बाद मेरे पास आना। मैं तुम्हें गीता के ज्ञान का मर्म समझा दूंगा।’’

युवक को बहुत आश्चर्य हुआ। उसने सोचा, आखिर गीता-ज्ञान का संबंध फुटबाल या सेवा कार्यों से कैसे है ?

कहीं ये मुझे टालने के लिए तो ऐसा नहीं कह रहे ?

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उसने अपनी जिज्ञासा स्वामी जी के सामने रखी और कहा, ‘‘स्वामी जी गीता एक धार्मिक ग्रंथ है, उसके संदेश का मर्म जानने के लिए फुटबाल खेलना या गरीबों की सेवा करना क्यों आवश्यक है ?’’

इस पर स्वामी जी ने उसे समझाया, ‘‘सुनो युवक, गीता वीरों और त्यागियों का महाग्रंथ है। इसलिए जो व्यक्ति वीरत्व और सेवा भाव से भरा नहीं होगा, वह गीता के गूढ़ श्लोकों और कृष्ण-अर्जुन संवाद का रहस्य तथा वास्तविक जीवन से उसका निहितार्थ नहीं समझ सकता।’’

इतना सुनते ही युवक को स्वामी जी का आशय समझ में आ गया और उसी समय उसने प्रण किया कि वह गीता को समझने के लिए स्वयं को सुपात्र बनाएगा। उसने फुटबाल और व्यायाम से अपना तन बलशाली बनाया और गरीबों, दुखियों की सेवा से जीवन को पवित्र किया।

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फिर ठीक छह माह बाद वह स्वामी जी के पास पहुंचा तो स्वामी जी ने उससे कहा कि अब वह वास्तव में गीता को समझने का पात्र हो चुका है। उन्होंने उस युवक को बड़े प्रेम से अपने आश्रम में ठहराया और गीता का मर्म समझाया। वह युवक गीता के ज्ञान से इतना प्रभावित हुआ कि उसने गीता प्रचार मंडल की स्थापना की और गीता का काव्य रूपांतरण बंगाली भाषा में किया। वह युवक कोई और नहीं देश के महापुरुष सतेंद्र बनर्जी थे। 

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