Holi 2023- रमणरेती आश्रम की होली से होती है ब्रज में रंगों की शुरुआत

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 22 Feb, 2023 09:54 AM

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कान्हा की भूमि ब्रज में रंग की होली की शुरुआत रमणरेती में उस स्थल की होली से होती है जहां श्यामसुन्दर ने ग्वाल बालों के साथ होली खेली थी। यह होली इस बार 24 फरवरी को रमणरेती में कार्ष्णि आश्रम में खेली जाएगी।

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मथुरा (वार्ता): कान्हा की भूमि ब्रज में रंग की होली की शुरुआत रमणरेती में उस स्थल की होली से होती है जहां श्यामसुन्दर ने ग्वाल बालों के साथ होली खेली थी। यह होली इस बार 24 फरवरी को रमणरेती में कार्ष्णि आश्रम में खेली जाएगी। मान्यताओं के अनुसार कार्ष्णि आश्रम रमणरेती उस स्थान पर बन गया है, जहां पर श्यामसुन्दर ने ग्वालबालों के साथ यमुना की रेती में पहले लोटपोट किया था तथा बाद में रेत के गोले बनाकर एक-दूसरे पर फेंके थे। आश्रम रमणरेती के संत स्वरूपानन्द महराज ने बताया कि द्वापर की परंपरा का निर्वहन करने के लिए यहां की होली में गुजरात से आरारोट के गोले मंगाए जाते हैं। ये गोले जब किसी भक्त पर गिरते हैं तो गिरते ही फूट जाते हैं और इनसे रंग बिरंगा गुलाल निकलता है। यहां की होली में पहले श्यामसुन्दर राधारानी के साथ होली खेलते हैं, बाद में वे ग्वालबालों के साथ होली खेलते हैं। 

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आश्रम के अधिष्ठाता कार्ष्णिगुरूशरणानन्द महराज भी इस अवसर पर अपने शिष्यों के संग होली खेलते हैं। यहां की होली में न केवल श्रद्धा, भक्ति और संगीत की त्रिवेणी प्रवाहित होती है बल्कि होली के उस अप्रतिम आनन्द की वर्षा होती है जिसकी ओर देश के कोने- कोने से लोग चुम्बक की तरह खिंचे चले आते हैं। यहां की होली अपने आप में निराली इसलिए होती है कि इस होली मेें ब्रज की मशहूर लठमार होली और फूलों की होली देखने को मिलती है। होली की शुरुआत में श्यामसुन्दर किशोरी जी के संग पहले जब फूलों की होली खेलते हैं तो वातावरण भक्तिभाव से ऐसा भरता है कि श्रद्धालुओं का रोम-रोम पुलकित हो जाता है। जब रंग और गुलाल की होली शुरू होती है तो उसे असीम आनन्द की अनुभूति इसलिए होती है कि श्यामसुन्दर ब्रजवासियों पर रंग की वर्षा करते हैं और ऐसे में रसिया के स्वर गूंज उठते हैं:- 

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आज बिरज में होरी रे रसिया। होरी रे रसिया बरजोरी रे रसिया।।
आज बिरज में होरी रे रसिया। होरी रे रसिया बरजोरी रे रसिया।।

श्यामसुन्दर जब गुलाल के लड्डू भक्तों पर फेंकते हैं तो जिस भक्त पर लड्डु गिरकर गुलाल के रूप में फूटता है वह धन्य हो जाता है। इसके बाद लट्ठधारी हुरिहारिने और चमड़े की ढाल के साथ हुरिहार आ जाते हैं। नये लहंगा औेर फरिया पहने हुरिहारिनों पर जब हुरिहार रंग डालते हैं तो वे उन्हें ऐसा करने से रोकती हैं और न मानने पर हुरिहारों पर लाठियों के प्रहार करती हैं, जिसे वे चमड़े ढालों पर रोकते हैं इसी बीच रसिया के स्वर गूंज उठते हैं:- 
ऐसो चटक रंग डार्येा श्याम मेरी चूनर में लग गयों दाग री ऐसो चटक रंग डार्यो।

यहां की होली जब पूर्ण यौवन में पहुंचती है तो दृश्य मनोहारी हो जाता है। एक ओर टेसू के प्राकृतिक रंग की फुहार चलती है तो दूसरी ओर आरारोट के गोलों से गुलाल की वर्षा होती है और लठमार होली और तेज हो जाती है। रसिया के स्वर और तेज हो जाते हैं:- 
होरी खेलन आयो श्याम आज याहि रंग में बोरो री।

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लगभग दो घंटे तक चलने वाली इस होली का समापन नन्द के लाला की जय और वृषभानु दुलारी की जय से होता है। इसके बाद हुरिहार पास ही बहती यमुना में स्नान करते हैं तथा बाद में कार्ष्णि आश्रम में प्रसाद ग्रहण करते हैं। कार्ष्णि आश्रम रमणरेती के प्रबंधक के अनुसार इस होली के लिए लगभग चार मन टेसू के फूल मंगाए गए हैं तथा हजारों गुलाल भरे आरारोट के गोले अहमदाबाद से मंगाए गए हैं। फूलों की होली के लिए अलग से कई मन फूल मंगाए गए हैं। इस अवसर पर टैंकर में टेसू का रंग तैयार किया जाता है। कुल मिलाकर यहां की होली में ब्रज पारंपरिक होली के दर्शन होते हैं।

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