Edited By Prachi Sharma,Updated: 05 Oct, 2025 08:28 AM

Inspirational Context: एक दिन काका कालेलकर गांधी जी से मिलने उनके निवास पर पहुंचे। उस समय गांधी जी अपनी मेज पर रखे सामान को हटा-हटाकर इधर-उधर कुछ खोज रहे थे। पर वह चीज मिल नहीं रही थी जिसकी उन्हें तलाश थी। इससे वह परेशान हो रहे थे।
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Inspirational Context: एक दिन काका कालेलकर गांधी जी से मिलने उनके निवास पर पहुंचे। उस समय गांधी जी अपनी मेज पर रखे सामान को हटा-हटाकर इधर-उधर कुछ खोज रहे थे। पर वह चीज मिल नहीं रही थी जिसकी उन्हें तलाश थी। इससे वह परेशान हो रहे थे।
काका कालेलकर ने पूछा, “बापू, क्या खोज रहे हैं ? मुझे बताइए। मैं भी आपकी कुछ मदद करूं।”
गांधी जी बोले, “एक पैंसिल खो गई है, उसे खोज रहा हूं। कुछ देर पहले तो थी, पता नहीं कहां रखकर भूल गया।”

काका कालेलकर ने अपनी जेब से पैंसिल निकाल कर गांधी जी को देते हुए कहा, “यह लीजिए पैंसिल, अभी तो आप इससे काम कर लीजिए, उसे बाद में खोज लेंगे।”
गांधी जी बोले, “नहीं काका, जब तक वह पैंसिल नहीं मिलेगी मुझे चैन नहीं मिलेगा।”
काका कालेलकर बोले, “उस पेंसिल में ऐसी क्या खास बात है, जो उसके लिए आप इतने परेशान हो रहे हैं ?”
गांधी जी ने कहा, “काका, तुम नहीं जानते। वह पैंसिल मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। उसके साथ एक छोटे बालक का प्यार जुड़ा हुआ है। मैं उसे खोजकर ही दम लूंगा।”

काका कालेलकर ने पूछा, “वह बच्चा कौन है ? मुझे भी तो बताइए।”
गांधी जी बोले, “वह चार-पांच साल का बालक है। बड़े प्रेम से उसने वह पैंसिल मुझे उपहार में दी थी और मुझसे वचन लिया था कि इसे खोना नहीं। तब से आज तक मैंने उसे सम्मानपूर्वक संभाल कर रखा था।”
बाद में वह पेंसिल एक फाइल के बीच फंसी हुई मिली। गांधी जी को उस छोटी सी पैंसिल ने देर तक परेशान किए रखा।
गांधी जी उसे पाकर बहुत प्रसन्न हुए फिर बोले, “अब जान में जान आई।” ऐसा था गांधी जी का बच्चों के प्रति प्यार और वह ऐसे थे वादे के पक्के।
