Edited By Jyoti,Updated: 16 Sep, 2020 11:26 AM
गुरुकुल के छात्रों का अध्ययन पूरा हो चुका था, वे धर्मशास्त्रों तथा व्याकरण आदि में पारंगत हो चुके थे। अगले दिन गुरुदेव उन्हें आशीर्वाद देकर आश्रम से विदा करने वाले थे।
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गुरुकुल के छात्रों का अध्ययन पूरा हो चुका था, वे धर्मशास्त्रों तथा व्याकरण आदि में पारंगत हो चुके थे। अगले दिन गुरुदेव उन्हें आशीर्वाद देकर आश्रम से विदा करने वाले थे।
प्रात:काल दो छात्र गुरुदेव के साथ गंगा स्नान के लिए गए। स्नान के बाद दोनों पूजा करने बैठ गए। अचानक उन्हें एक बालक की आवाज सुनाई दी, ‘‘बचाओ-बचाओ, मैं डूब रहा हूं।’’
आवाज सुनते ही एक छात्र पूजा बीच में छोड़ कर भागा तथा गंगा में कूद पड़ा। देखते ही देखते वह बालक को जल में से निकाल लाया, उसे उलटा लिटा कर पेट में भरा पानी निकाल दिया। बालक के प्राण बच गए।
गुरु जी ने देखा कि दूसरा शिष्य भी आंखें बंद किए पूजा कर रहा है। पूजा से निवृत्त हो जाने पर उन्होंने पूछा, ‘‘वत्स, क्या तुमने डूबतेबालक की करुण पुकार नहीं सुनी थी?’’
शिष्य ने उत्तर दिया, ‘‘गुरुदेव पुकार तो सुनी थी किंतु पूजा बीच में कैसे छोड़ सकता था? छोड़ता तो पूजा छोड़ने के पाप का भागी हो जाता।’’
गुरुदेव बोले, ‘‘तुम भले ही व्याकरण में पारंगत हो गए हो, तुम्हें अनेक धर्मशास्त्र कंठस्थ हैं किंतु धर्म का सार नहीं समझ पाए हो। धर्म शास्त्रों का पालन इस शिष्य ने किया है जो संकटग्रस्त बालक की करुण पुकार को सुनकर द्रवित हो गया और अपना जीवन संकट में डालकर भी एक बालक के प्राण बचाने को तत्पर हुआ।’’ —शिव कुमार गोयल