आइए करें, पृथ्वी पर स्थित आठवें बैकुंठ का दर्शन !

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 27 Feb, 2021 01:12 PM

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भारतवर्ष के उत्तरी भाग में अवध क्षेत्र में स्थित है नैमिषारण्य जहां परम पावन श्री चक्रतीर्थ विद्यमान है। नैमिषारण्य धार्मिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, सामाजिक एवं ऐतिहासिक पुण्यभूमि है। अवधपति दशरथ के

Naimisaranya: भारतवर्ष के उत्तरी भाग में अवध क्षेत्र में स्थित है नैमिषारण्य जहां परम पावन श्री चक्रतीर्थ विद्यमान है। नैमिषारण्य धार्मिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, सामाजिक एवं ऐतिहासिक पुण्यभूमि है। अवधपति दशरथ के पुत्र एवं मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र के छोटे भाई लक्ष्मण के नाम पर बसी लक्ष्मणावती मुख सुख से हुई लखनौती, जो बाद में लखनऊ कहलाई। लखनऊ से रेलवे की छोटी लाइन से जनपद सीतापुर जाना पड़ता है। सीतापुर से रेलवे की बड़ी लाइन या सड़क मार्ग से नैमिषारण्य पहुंचते हैं।

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यहां पंडा, पुजारियों के घरों एवं धर्मशालाओं तथा यात्रीशालाओं में ठहरा जा सकता है। श्री चक्रतीर्थ एक बड़ा गोलाकार जलाशय है, जो वृहताकार गोल घेरे में आबद्ध है। घेरे के चारों ओर बाहर जल भरा रहता है जिसमें श्रद्धालु भक्तजन स्नान करते हैं यानी इस मनोहर चक्रतीर्थ  में डुबकी लगाते हैं तथा जल में चलते हुए इस गोल चक्र की परिक्रमा भी करते हैं। बाह्य जल के भरे हुए घेरे के बाद चारों ओर सीढ़ियां बनी हुई हैं तथा स्थान-स्थान पर विभिन्न देवी-देवताओं के मंदिर हैं। यहां आने-जाने का सुंदर द्वार भी बना हुआ है।

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पुराणों में नैमिषारण्य की स्थिति को व्यक्त करने वाले जिस चक्र का वर्णन किया गया है वह कोई साधारण यंत्र नहीं, बल्कि संसार को धारण करने वाले प्रकट तत्व ब्रह्म की वह गोल परिधि है जो काल रूप से विश्व में प्रत्यावर्तन करता है। इसके अंतर्गत ही दिन-रात, पक्ष मासादि, संवत्सर की रचना होती है।

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इसी के कारण जन्म-मरण आदि की व्यवस्था है। संसार के अस्तित्व का एकमात्र यही प्रतीक है। इस महिमामय चक्र की नेमि अर्थात आश्रय स्थान निमिष अथवा निमेष बिंदू पर टिकी होने से यह स्थान नैमिषारण्य अथवा नैमिष के नाम से जाना जाता है।

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नैमिषारण्य एवं श्री चक्रतीर्थ के विषय में विभिन्न प्रकार की जानकारियां श्रीमद्भागवत महापुराण, महाभारत, वायु पुराण, वामन पुराण, पद्मपुराण, शिव पुराण, देवी भागवत पुराण, यजुर्वेद का मंत्र भाग श्वेताश्वर उपनिषद्, प्रश्रोपनिषद, अग्रि पुराण, गरूड़ पुराण, स्कंद पुराण, विष्णु पुराण, कालिका तंत्र, कर्म पुराण, शक्तियामल तंत्र, श्रीरामचरित मानस, योगिनी तंत्र आदि ग्रंथों से प्राप्त होती हैं।

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यहां मां ललिता देवी, भुनेश्वर भूतनाथ, श्री गोकर्णनाथ महादेव, श्री रामधाम, अश्वमेध घाट, श्री शृंगी ऋषि की समाधि, दधीचि मुनि का स्थान व पिप्लादि मुनि स्थल, गोमती नदी व इसके तट पर अनेक तीर्थ, रुद्र कुंड 108 पीठों में से एक उड्डयन पीठ, जहां भगवती सती का अंग गिरा था, सिद्ध पीठ-शक्ति पीठ (ललिता देवी), जानकी कुंड तीर्थ वाणी स्वरूप प्रवाहमान ज्ञान गंगा सरस्वती स्नान तीर्थ, रामेश्वरम्  श्री देवेश्वर, मनु-शतरूपा तपोस्थली व प्राकट्य स्थान, भगवान व्यास की गद्दी, शुकदेव की गद्दी, सूतजी की गद्दी, कश्यप अदिति तपोस्थली, सुचंद्र कैलावती तप स्थान, इंद्र रुद्र रूप भैरव, नर-नारायण, परशुराम आदि के तप स्थान, नैमिष जी की श्रीविग्रह के तप स्थान, नैमिष जी का श्रीविग्रह बलराम स्थान, पांडव स्थान आदि स्थित हैं।

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यज्ञ पुरुष का यहां वास स्थान है। ऋषेश्वर नाथ शिव का प्राकट्य यहीं हुआ था। ब्रह्मांड के सारे तीर्थ यहां विराजमान हैं। ऐसा स्थान अन्यत्र कहीं नहीं है। यहां पिंड दान भी होता है। देवी स्थापना, वृक्ष लगाना यहां पुण्य माना जाता है। यहां दो प्रकार की परिक्रमा सुविख्यात है-प्रथम, सवाकोसी और द्वितीय चौरासी कोसी (फाल्गुन अमावस्या से अष्टमी तक या होली तक)।

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यहां हजारों ऋषियों ने वास किया है। नैमिषारण्य पृथ्वी पर आठवां बैकुंठ माना जाता है। जिस प्रकार वृंदावन में राधे-राधे एवं अयोध्या में ‘जय श्री राम या जय सियाराम’ बोलते हैं उसी प्रकार यहां ‘हरि ओम’ का उच्चारण करते हैं।

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