Edited By Niyati Bhandari,Updated: 05 Jun, 2025 03:00 PM

Nirjala Ekadashi Vrat Katha: ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी के रूप में मनाई जाती है। वर्ष भर में 24 और अधिक मास को मिलाकर कुल 25-26 एकादशियां होती हैं। इनमें निर्जला एकादशी सबसे महत्वपूर्ण और फलदायी कही गई है। महाभारत कालीन कथा...
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Nirjala Ekadashi Vrat Katha: ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी के रूप में मनाई जाती है। वर्ष भर में 24 और अधिक मास को मिलाकर कुल 25-26 एकादशियां होती हैं। इनमें निर्जला एकादशी सबसे महत्वपूर्ण और फलदायी कही गई है। महाभारत कालीन कथा अनुसार, जब पांडवों को वनवास की आज्ञा सुनाई गई और इस दौरान उन्हें वनों में छिपकर अज्ञातवास भी बिताना पड़ा तथा इस दौरान अनेक विपत्तियों का सामना करते हुए भी वे धर्म पर अडिग रहे तथा इसका परस्पर मिल-जुल कर पालन किया।

इस दौरान उन्हें कभी-कभार अन्न और जल के अभाव में भी जीवन-यापन करना पड़ा, परंतु भगवान श्री कृष्ण की असीम कृपा से वे सदा सुखों की तरह ही दुखों का सामना करते रहे। प्रत्येक एकादशी पर युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल, सहदेव और द्रौपदी व्रत-उपवास करते परंतु भीम से ऐसा संभव नहीं हो पाता क्योंकि भूख की प्रबल पीड़ा उन्हें असहनीय थी तथा ऐसी परिस्थिति में व्रत नियम नहीं निभाया जा सकता था।
एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण से कहा, ‘‘आप ही भीम को ऐसा सदुपदेश दें, जिससे उसकी बुद्धि इस व्रत नियम को कर सके।’’

श्री कृष्ण ने कहा, ‘‘आप सब यह अनुग्रह महर्षि वेदव्यास जी से करें, जोकि सबसे गुणवान, श्रेष्ठ महात्मा हैं। वही आपका मार्गदर्शन कर सकते हैं।’’

पांडव वेदव्यास जी की शरण में गए, जिन्होंने भीम को उपवास के लिए प्रेरित करते हुए कहा, ‘‘एकादशी व्रत से भगवान विष्णु की कृपा और बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है, अतएव आप ऐसा करने का प्रयास करें।’’
भीमसेन ने इस आज्ञा का पालन किया तथा निर्जल और अन्न बिना रह कर एकादशी व्रत को सूर्योदय से अगले दिन तक सफलतापूर्वक किया जिससे भीमसेन की भूख भी शांत हुई और उन्हें बैकुंठ धाम भी मिला।

इसलिए इसे ‘भीमसेनी एकादशी’ भी कहते हैं। इस दिन निर्जल रहकर औरों को जल पिलाना, मिट्टी के घड़े का दान, मीठा फल और हाथ का पंखा इत्यादि दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
छबीलें आदि लगा कर लोग पुण्य अर्जित करते हैं तथा ऐसे में जल देवता का भी स्वत: ही पूजन-अर्चन हो जाता है जिससे प्रभु कृपा को सहजता से प्राप्त किया जाता है क्योंकि धर्मशास्त्र भी भूखे को अन्न और प्यासे को पानी को अत्यधिक महत्व देते हैं।
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