Edited By Niyati Bhandari,Updated: 20 Jan, 2023 09:11 AM
कलकत्ता विश्वविद्यालय के उपकुलपति का एक पत्र पाकर पं. मदन मोहन मालवीय असमंजस में पड़ गए।
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Pandit Madan Mohan Malaviya story: कलकत्ता विश्वविद्यालय के उपकुलपति का एक पत्र पाकर पं. मदन मोहन मालवीय असमंजस में पड़ गए। वे बुदबुदाए, ‘‘अजीब प्रस्ताव रखा है यह तो उन्होंने।
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क्या कहूं, क्या लिखूं?’’ पास बैठे एक सज्जन ने पूछा, ‘‘क्या बात है पंडित जी।’’ वह बोले, ‘‘कलकत्ता विश्वविद्यालय के उपकुलपति महोदय, मेरी सनातन उपाधि छीन कर एक नई उपाधि देना चाहते हैं।’’
उस पत्र में लिखा था, ‘‘कलकत्ता यूनिवर्सिटी आपको डाक्टरेट की सम्मानित उपाधि से अलंकृत करके अपने आपको गौरवान्वित करना चाहती है। आप अपनी स्वीकृति से शीघ्र ही सूचित करने की कृपा करें।
‘‘यह सुनकर सज्जन बोल पड़े, ‘‘प्रस्ताव तो उचित ही है। आप न मत कर दीजिएगा मालवीय जी महाराज, यह तो हम वाराणसी वासियों के लिए विशेष गर्व एवं गौरव की बात होगी।’’
अगले ही क्षण उन्होंने उस पत्र का उत्तर लिखा, ‘‘महोदय! आपके प्रस्ताव के लिए धन्यवाद। मेरे उत्तर को अपने प्रस्ताव का अनादर मत मानिएगा। मेरा पक्ष सुनकर आप उस पर पुनर्विचार ही कीजिएगा।
मुझको आपका यह उपाधि वितरण प्रस्ताव अर्थहीन लग रहा है। मैं जन्म और कर्म दोनों से ही ब्राह्मण हूं।’’ पंडित से बढ़कर अन्य कोई भी उपाधि नहीं हो सकती। मैं ‘डाक्टर मदन मोहन मालवीय’ कहलाने की अपेक्षा ‘पंडित मदन मोहन मालवीय’ कहलवाना अधिक पसंद करूंगा।
आशा है आप इस ब्राह्मण के मन की भावना का आदर करते हुए इसे ‘डाक्टर’ बनाने का विचार त्याग कर ‘पंडित’ ही बना रहने देंगे। उपकुलपति उनके तर्क से खुश हो गए।
उन्होंने संदेश भिजवाया, ‘‘आपका निर्णय सुनकर हमें आपके पांडित्य पर जो गर्व था, वह दोगुना हो गया। आप वाकई सच्चे पंडित हैं जो उसके गौरव गरिमा की रक्षा के लिए कोई भी प्रलोभन त्याग सकते हैं।’’