Edited By Niyati Bhandari,Updated: 18 Jan, 2023 09:32 AM
एक बार एक संत के पास एक युवक सत्संग सुनने के लिए आया। संत ने उससे हालचाल पूछा तो उसने स्वयं को अत्यंत सुखी बताया।
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Religious Katha: एक बार एक संत के पास एक युवक सत्संग सुनने के लिए आया। संत ने उससे हालचाल पूछा तो उसने स्वयं को अत्यंत सुखी बताया। वह बोला, ‘‘मुझे अपने परिवार के सभी सदस्यों पर बड़ा गर्व है। मैं उनके व्यवहार से संतुष्ट हूं।’’
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संत बोले, ‘‘तुम्हें अपने परिवार के बारे में ऐसी धारणा नहीं बनानी चाहिए। इस दुनिया में अपना कोई नहीं होता। जहां तक माता-पिता की सेवा और पत्नी-बच्चों के पालन पोषण का संबंध है, उसे तो कर्तव्य समझकर ही करना चाहिए। उनके प्रति मोह या आसक्ति रखना उचित नहीं।’’
युवक को संत की बात ठीक नहीं लगी। उसने कहा, ‘‘आपको विश्वास नहीं कि मेरे परिवार के लोग मुझसे अत्यधिक स्नेह करते हैं। यदि मैं एक दिन घर न जाऊं तो उनकी भूख, प्यास, नींद सब उड़ जाती है और पत्नी तो मेरे बिना जीवित भी नहीं रह सकती।’’
संत बोले, ‘‘तुम्हें प्राणायाम तो आता ही है। कल सुबह उठने की बजाय प्राणवायु मस्तक में खींचकर निश्चेत पड़े रहना। मैं आकर सब कुछ देख लूंगा।’’
दूसरे दिन युवक ने संत के बताए अनुसार ही किया। युवक को मृत जानकर उसके सभी घर के लोग विलाप करने लगे। तभी संत वहां पहुंचे। घर के सभी सदस्य संत के चरणों में गिर गए।
संत बोले, ‘‘आप चिंता न करें मैं एक मंत्र द्वारा इसे जिंदा कर देता हूं लेकिन कटोरी भर पानी परिवार के किसी अन्य सदस्य को पीना पड़ेगा। इसमें ऐसी शक्ति है कि यह तो जीवित हो उठेगा लेकिन उस पानी को पीने वाला मर जाएगा।’’
यह सुनने के बाद सभी एक-दूसरे का मुंह देखने लगे। किसी को भी पानी पीने के लिए तैयार होता न देख कर संत ने कहा, ‘‘मैं ही यह पानी को पी लेता हूं।’’
इस पर घर के सभी सदस्य बोले, ‘‘आप धन्य हैं। आप जैसे परोपकारी लोग बहुत कम पैदा होते हैं।’’
युवक इस पूरे घटनाक्रम को चुपचाप सुन रहा था। उसे संत की बातों पर विश्वास हो गया। प्राणायाम कर वह उठ गया। यह देखकर घर के सभी सदस्य चौक गए। युवक संत से बोला, ‘‘आपने मुझे नया जीवन दिया और ज्ञान कराया कि सबके प्रति कर्तव्य भाव रखें, आसक्ति नहीं।