Twitter के फर्जी अकाउंट्स से भड़काए गए ब्रिटेन में दंगे, 'हिंदुओं' को किया गया सबसे ज्यादा टारगेट

Edited By Seema Sharma,Updated: 17 Nov, 2022 11:22 AM

riots in britain incited by fake twitter accounts

ब्रिटेन के लीसेस्टर (Leicester) में हिंदू-मुस्लिमों के बीच तनाव की शुरुआत एशिया कप मैच में 28 अगस्त को पाकिस्तान की हार से हुई थी।

इंटरनेशनल डेस्क: ब्रिटेन के लीसेस्टर (Leicester) में हिंदू-मुस्लिमों के बीच तनाव की शुरुआत एशिया कप मैच में 28 अगस्त को पाकिस्तान की हार से हुई थी। इसके बाद छह सितंबर को लीसेस्टर में गुस्साए पाकिस्तानी मुसलमानों ने हिंदुओं को निशाना बनाया था। इसी दौरान एक समुदाय ने दूसरे के समुदाय के एक धर्मस्थल का झंडा उखाड़ दिया था। लीसेस्टर में हुए हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच दंगों को लेकर अब चौंकाने वाला खुलासा हुआ है।

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दरअसल इन दंगों को भड़काने के पीछे सबसे बड़ी भूमिका ट्विटर के फर्जी अकाउंट्स की थी। ये खाते यूनाइटेड किंगडम के बाहर से संचालित किए गए थे। रटगर्स विश्वविद्यालय के नेटवर्क कॉन्टैगियन रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार ट्विटर पर करीब 500 अप्रामाणिक खातों से इस साल अगस्त-सितंबर में लीसेस्टर में हिंसा को भड़काया गया, इन खातों से मीम्स के साथ-साथ आग लगाने वाले वीडियो पोस्ट प्रोमोट किए गए। वहीं शोधकर्ताओं ने कहा कि अशांति को बढ़ाने वाले कई ट्विटर अकाउंट भारत से ऑपरेट हो रहे थे। 

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क्या है पूरा मामला

भारत-पाकिस्तान के बीच 27 अगस्त को खेले गए Asia Cup 2022 क्रिकेट मैच के बाद सैकड़ों लोग सड़कों पर उतर आए थे। लाठी और डंडे लिए दंगाइयों ने कांच की बोतलें फेंकी जिसके बाद पुलिस को कार्रवाई करनी पड़ी थी। लीसेस्टरशायर पुलिस के अनुसार, इस संघर्ष के दौरान घरों, कारों और धार्मिक प्रतीकों को नुकसान पहुंचाया गया। यह बवाल करीब हफ्तों तक चला और इस दौरान पुलिस ने करीब 47 लोगों को गिरफ्तार किया था।

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सोशल मीडिया पर रची गई साजिश

इस दंगे को भड़काने के लिए सोशल मीडिया पर साजिश रची गई और मस्जिदों में आग और अपहरण के दावों के वीडियो की भरमार हो गई थी। जिससे पुलिस को चेतावनी जारी करने के लिए मजबूर होना पड़ा कि लोगों को ऑनलाइन गलत सूचना पर विश्वास नहीं करना चाहिए। लीसेस्टर के मेयर पीटर सोल्सबी के मुताबिक अमेरिकी प्रौद्योगिकी कंपनियों ने टकराव को हवा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कई मीडिया रिपोर्ट और बवाल में शामिल लोगों जिनमें 21 वर्षीय एडम यूसुफ भी था, ने एक न्यायाधीश को बताया कि वह सोशल मीडिया से प्रभावित होकर एक प्रदर्शन के लिए चाकू लेकर लाया था। एनसीआरआई के संस्थापक जोएल फिंकेलस्टीन ने कहा, "हमारे शोध में पाया गया है कि देशी हमलावर और विदेशी तत्वों के नेटवर्क अब सोशल मीडिया को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं।

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हिंदुओं को किया गया ज्यादा टारगेट

यूट्यूब, इंस्टाग्राम, ट्विटर और टिकटॉक से इकट्ठा किए गए डेटा का उपयोग करते हुए 16 नवंबर को प्रकाशित NCRI की रिपोर्ट में बताया गया कि कैसे विदेशी इन्फ्लुएंसरों ने स्थानीय स्तर पर गलत सूचना फैलाई जिससे यूके के एक शहर में दंगे फैल गए। वहीं NCRI के भाषाई विश्लेषण में जो सबसे हैरान करने वाली बात सामने आई वो यह कि दंगे के दौरान "हिंदू" का उल्लेख "मुस्लिम" के उल्लेख से लगभग 40 फीसदी अधिक किया गया और अंतरराष्ट्रीय प्रभुत्व के लिए एक वैश्विक परियोजना में हिंदुओं को बड़े पैमाने पर हमलावरों और षड्यंत्रकारियों के रूप में पेश किया गया था। यानि कि दंगा फैलाने केो लिए हिंदुओं को जिम्मेदार बताया गया। गूगल की ज़िगसॉ सर्विस से सेंटिमेंट विश्लेषण का उपयोग करते हुए 70 फीसदी हिंसक ट्वीट्स, लीसेस्टर दंगे के दौरान हिंदुओं के खिलाफ किए गए थे।

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प्रति मिनट 500 बार ट्वीट किया गया

रिपोर्ट के मुताबिक हिंदू-विरोधी और मुस्लिम-विरोधी दोनों तरफ से जमकर ट्वीट किए गए। वहीं दंगे फैलाने के लिए बार-बार ट्वीट किए गए। इतना ही नहीं कुछ यूजर्स ने तो प्रति मिनट 500 बार ट्वीट किया था। लीसेस्टर ईस्ट की सांसद क्लाउडिया वेबे ने ब्लूमबर्ग न्यूज को बताया कि दंगे बेशक सोशल मीडिया के कारण हुए थे। उन्होंने कहा कि उनका मानना है कि हिंदू और मुस्लिम समुदाय के भीतर उनके अधिकांश घटक "फोन के माध्यम से" बड़े पैमाने पर प्रभावित हुए थे। उन्होंने कहा कि यहां तक कि जो लोग सड़कों पर नहीं उतरे थे, वे व्हाट्सएप और ट्विटर के माध्यम से जो मैसेज प्राप्त कर रहे थे, उससे डरे हुए थे - वे हफ्तों तक बाहर जाने से डरते थे। 

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