Edited By Pardeep,Updated: 30 Dec, 2025 11:12 PM
पिछले दो दिनों से ईरान के कई शहरों और कस्बों की सड़कों पर भारी उथल-पुथल देखने को मिल रही है। ईरान की मुद्रा रियाल की कीमत गिरकर 1 अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 42,000 से भी नीचे चली गई है, जबकि देश में महंगाई 42% से ज्यादा हो चुकी है।
इंटरनेशनल डेस्कः पिछले दो दिनों से ईरान के कई शहरों और कस्बों की सड़कों पर भारी उथल-पुथल देखने को मिल रही है। ईरान की मुद्रा रियाल की कीमत गिरकर 1 अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 42,000 से भी नीचे चली गई है, जबकि देश में महंगाई 42% से ज्यादा हो चुकी है। इस आर्थिक संकट के बीच ईरान के सर्वोच्च नेता आयातुल्लाह अली खामेनेई के नेतृत्व वाली धार्मिक सरकार को पिछले तीन वर्षों में सबसे बड़े विरोध प्रदर्शनों का सामना करना पड़ रहा है।
“मुल्लाओं को ईरान छोड़ना होगा” के नारे
ईरानी-अमेरिकी पत्रकार और लेखिका मसीह अलीनेजाद ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा कि ईरान से लगातार ऐसे वीडियो सामने आ रहे हैं, जिनमें लोग एकजुट होकर नारे लगा रहे हैं— “मुल्लाओं को ईरान छोड़ना होगा” और “तानाशाही का अंत हो”। उन्होंने कहा कि यह उस जनता की आवाज है, जो अब इस्लामिक रिपब्लिक को नहीं चाहती।
9 करोड़ से ज्यादा आबादी, बढ़ता संकट
करीब 9.2 करोड़ आबादी वाले ईरान में आर्थिक बदहाली और कानून-व्यवस्था की स्थिति अब सरकार के लिए गंभीर चुनौती बन चुकी है। यह संकट ऐसे समय में आया है, जब ईरान पहले से ही इजरायल और अमेरिका के हमलों से उबरने की कोशिश कर रहा है। इसके साथ ही, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की “मैक्सिमम प्रेशर” नीति ने ईरान की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर डाला है। ट्रंप प्रशासन का मानना रहा है कि कट्टर शिया धर्मगुरुओं के हाथों में परमाणु ईरान वैश्विक सुरक्षा के लिए खतरा है।
तियानमेन स्क्वायर जैसी तस्वीरें
ईरानी प्रवासियों द्वारा साझा की गई एक तस्वीर में एक व्यक्ति तेहरान की सड़क पर अकेला बैठा दिख रहा है, जबकि बाइक पर सवार सुरक्षाबल प्रदर्शन को कुचलने के लिए उसकी ओर बढ़ रहे हैं। United Against Nuclear Iran (UANI) के नीति निदेशक जेसन ब्रॉडस्की ने इस तस्वीर की तुलना 1989 के चीन के तियानमेन स्क्वायर आंदोलन से की। कई विश्लेषकों का दावा है कि सड़कों पर शाह समर्थक नारे भी लगाए गए—उस शाह को याद किया जा रहा है, जिनकी सत्ता 1979 में खामेनेई के नेतृत्व में हुए आंदोलन से गिर गई थी।
सरकारी मीडिया ने किया प्रदर्शन को कमतर दिखाने का प्रयास
ईरान की सरकारी समाचार एजेंसी IRNA ने प्रदर्शनों को स्वीकार तो किया, लेकिन उन्हें सिर्फ आर्थिक मुद्दों तक सीमित बताया। IRNA के मुताबिक, ये प्रदर्शन मोबाइल फोन कारोबारियों द्वारा किए जा रहे हैं, जो रियाल की गिरती कीमत से नाराज हैं। सरकार ने इसे राजनीतिक विद्रोह मानने से इनकार किया है।
ईरान में इतने बड़े प्रदर्शन क्यों हो रहे हैं?
रविवार से शुरू हुए ये प्रदर्शन पिछले तीन वर्षों के सबसे बड़े विरोध माने जा रहे हैं। इससे पहले 2022-23 में महसा अमीनी की मौत के बाद देशभर में आंदोलन हुआ था, जिसे सरकार ने सख्ती से दबाया था और जिसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कड़ी आलोचना हुई थी।
तेहरान और मशहद बने संघर्ष के केंद्र
सोमवार (29 दिसंबर) को तेहरान और मशहद में प्रदर्शनकारियों की सुरक्षाबलों से झड़प हुई। पुलिस ने लाठीचार्ज और आंसू गैस का इस्तेमाल किया। तेहरान के ग्रैंड बाजार में प्रदर्शनकारियों ने नारे लगाए— “डरो मत, हम सब साथ हैं” और सुरक्षाबलों को “बेशर्म” कहा। समाचार एजेंसी Fars ने भी माना कि कुछ नारे आर्थिक मांगों से आगे बढ़ चुके हैं।

रियाल की गिरावट ने तोड़ी कमर
ईरान की अर्थव्यवस्था पहले से ही कमजोर थी, लेकिन रियाल के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंचने से आम लोगों की खरीदने की ताकत खत्म हो गई है। खाने-पीने की चीजें, दवाइयां और रोजमर्रा का सामान आम लोगों की पहुंच से बाहर होता जा रहा है। इस झटके के बाद ईरान के केंद्रीय बैंक प्रमुख मोहम्मद रजा फर्ज़िन को इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद तेहरान, इस्फहान, शिराज और मशहद में व्यापारी, दुकानदार और छोटे कारोबारी सड़कों पर उतर आए।
महसा अमीनी की यादें फिर ताजा
2022 में नैतिक पुलिस की हिरासत में महसा अमीनी की मौत ने ईरान को हिला दिया था। उस आंदोलन की यादें आज भी लोगों के मन में ताजा हैं। बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी ने उस गुस्से को और गहरा कर दिया है।
माइक पोम्पियो का बयान
अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने कहा कि यह आश्चर्य की बात नहीं है कि ईरान की जनता सड़कों पर उतर रही है। उन्होंने लिखा कि कट्टरपंथ और भ्रष्टाचार ने ईरान को बर्बाद कर दिया है और ईरानी जनता एक ऐसी सरकार की हकदार है जो उनके हितों की रक्षा करे, न कि मुल्लाओं की।
क्या इन प्रदर्शनों के पीछे ट्रंप फैक्टर है?
विशेषज्ञों का मानना है कि ईरान का मौजूदा संकट अमेरिकी प्रतिबंधों से अलग नहीं किया जा सकता। डोनाल्ड ट्रंप द्वारा 2015 के परमाणु समझौते से अमेरिका को बाहर निकालना और “मैक्सिमम प्रेशर” नीति अपनाना ईरान की अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा झटका साबित हुआ। तेल निर्यात पर रोक और वित्तीय अलगाव ने रियाल को कमजोर कर दिया।
ट्रंप की नई चेतावनियां
हाल ही में ट्रंप ने ईरान को फिर से चेतावनी दी है और कहा है कि अगर उसने परमाणु कार्यक्रम दोबारा शुरू किया, तो उस पर हमला किया जाएगा। उन्होंने इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से मुलाकात के दौरान हमास और ईरान को लेकर भी सख्त बयान दिए।
विशेषज्ञों की राय
अर्थशास्त्री अमीर हुसैन महदवी ने न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा कि अगर प्रतिबंधों में राहत नहीं मिली या खर्चों में भारी कटौती नहीं की गई, तो महंगाई और बढ़ेगी। उनके मुताबिक, मौजूदा अशांति किसी साजिश का नतीजा नहीं, बल्कि वर्षों की नीतियों का परिणाम है।
‘रेजिम चेंज’ की अटकलें
अमेरिकी राजदूत माइक वॉल्ट्ज द्वारा ईरान विरोधी प्रदर्शनों का समर्थन किए जाने के बाद कनाडा की ईरानी मूल की नेता गोल्डी घमरी ने सवाल उठाया— क्या अमेरिका ने ईरान में सत्ता परिवर्तन के लिए हरी झंडी दे दी है?