Bangladesh Violence:  बांग्लादेश में संकट में हैं ये 7 प्राचीन हिंदू शक्तिपीठ, अब क्या करेगी मोदी सरकार?

Edited By Updated: 23 Dec, 2025 05:25 PM

7 shakti peeths in bangladesh are in danger what will the modi government do now

बांग्लादेश में हिंदू शक्तिपीठों और संस्कृति पर संकट गहरा गया है। जेसोरेश्वरी, सुगंधा, भवानी, जयंती, महालक्ष्मी, स्रवानी और अपर्णा जैसे 7 प्रमुख शक्तिपीठ ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व रखते हैं। यहां देवी सती के अंग गिरे थे, जिससे इनकी स्थापना हुई।...

नेशनल डेस्क : बांग्लादेश में हाल के वर्षों में बढ़ती अस्थिरता और हिंसा के चलते वहां के हिंदू समुदाय के लिए संकट की घड़ियां आई हुई हैं। देश में लोकतंत्र कमजोर हुआ है और संस्कृति, परंपरा तथा धार्मिक स्थलों की सुरक्षा पर भी खतरा मंडरा रहा है। कभी भारत का हिस्सा रहे और बंगाली संस्कृति का अहम हिस्सा रहे इस देश में सनातन धर्म से जुड़े कई प्राचीन मंदिर और शक्तिपीठ अब असुरक्षित हैं। सवाल ये उठते हैं कि इन 7 प्राचीन हिंदू शक्तिपीठ की रक्षा के लिए मोदी सरकार कौन सा कदम उठाएगी? 

बांग्लादेश के 7 प्रमुख शक्तिपीठ और उनकी मान्यता

1. जेसोरेश्वरी शक्तिपीठ – सतखिरा

जेसोरेश्वरी शक्तिपीठ को ज्येष्ठा काली मंदिर भी कहा जाता है। यह मंदिर सतखिरा जिले के श्यामनगर उपजिले के ईश्वरपुर गांव में स्थित है। मान्यता है कि यहां देवी सती की हथेली गिरी थी। इस मंदिर का आधुनिक स्वरूप लगभग 400 साल पुराना है और साल 2021 में इसका सौंदर्यीकरण भी किया गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मंदिर का दौरा कर मां काली को सोने का मुकुट भेंट किया था।

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2. सुगंधा शक्तिपीठ – शिकारपुर

सुगंधा शक्तिपीठ देवी सुनंदा या उग्रतारा को समर्पित है और शिकारपुर में सुनंदा नदी के किनारे स्थित है। कहा जाता है कि यहां देवी सती की नाक गिरी थी। यह 51 शक्तिपीठों में से एक है और स्थानीय हिंदू समुदाय के लिए तीर्थ स्थल है। 1971 में कई बार मूर्तियों की लूट हुई थी, लेकिन पुनः स्थापना की गई।

3. चट्टल मां भवानी शक्तिपीठ – सीताकुंडा

चट्टल मां भवानी शक्तिपीठ चटगांव जिले के चंद्रनाथ पर्वत पर स्थित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यहां देवी सती की ठुड्डी का हिस्सा गिरा थी। यहां माता भवानी के रूप में पूजी जाती हैं और उनके भैरव चंद्रशेखर हैं।

4. जयंती शक्तिपीठ – कनाईघाट

सिलहट जिले के कनाईघाट उपजिले में स्थित जयंती शक्तिपीठ में देवी सती की बाईं जांघ गिरी थी। यह शक्तिपीठ बौरबाग गांव में फैला है और स्थानीय हिंदू समुदाय के लिए श्रद्धा का केंद्र है।

5. महालक्ष्मी शक्तिपीठ – सिलहट

गोटाटिकर, सिलहट में स्थित महालक्ष्मी शक्तिपीठ में देवी महालक्ष्मी की पूजा होती है। कहा जाता है कि यहां देवी की गर्दन का हिस्सा गिरा था। यहां के भैरव संभरानंद हैं। पाटरा समुदाय आज भी इस मंदिर की सुरक्षा में सक्रिय है।

6. स्रवानी शक्तिपीठ – कुमीरग्राम

कुमीरग्राम में स्थित यह शक्तिपीठ देवी सती की रीढ़ की हड्डी के गिरने की मान्यता के साथ गुप्त शक्तिपीठों में आता है। यहां देवी को सर्वाणी या श्रावणी देवी कहा जाता है और भैरव निमिषवैभव माने जाते हैं।

7. अपर्णा शक्तिपीठ – करतोया, शेरपुर

शेरपुर जिले के भवानीपुर गांव में स्थित अपर्णा शक्तिपीठ करतोया, यमुनेश्वरी और बूढ़ी तीस्ता तीन नदियों के संगम पर है। यहां देवी अपर्णा या भवानी की पूजा होती है और उनके भैरव वामन हैं। कहा जाता है कि यहां देवी सती का टखना गिरा था। यह मंदिर पाल काल का माना जाता है।

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शक्तिपीठों का ऐतिहासिक महत्व

अपर्णा शक्तिपीठ का इतिहास राजा प्रण नारायण और रानी भवानी से जुड़ा हुआ है। राजा प्रण नारायण ने मुगलों के खिलाफ संघर्ष में देवी से प्रार्थना की और अपने राज्य को तीन वर्षों में वापस पाया। रानी भवानी ने 18वीं सदी में समाज सुधार, विधवा पुनर्विवाह, शिक्षा और गरीबों की सहायता के लिए कई कार्य किए। उन्होंने हिंदू सनातनी संन्यासियों को आर्थिक सहयोग भी दिया।

वर्तमान स्थिति और खतरे

हाल के वर्षों में बांग्लादेश में हिंदू विरोधी हिंसा और अल्पसंख्यकों के खिलाफ हमलों ने इन शक्तिपीठों की सुरक्षा पर संकट खड़ा कर दिया है। जेसोरेश्वरी शक्तिपीठ जैसे मंदिरों से कीमती मूर्तियां चोरी हो चुकी हैं। संगठित रूप से बंगाली संस्कृति, संगीत, कला और परंपरा को नष्ट करने की कोशिशें भी जारी हैं। ऐसे में ये प्राचीन शक्तिपीठ और हिंदू सांस्कृतिक विरासत खतरे में हैं। बांग्लादेश के हिंदू समुदाय और इनके शक्तिपीठों की सुरक्षा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। समय की मांग है कि स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन धरोहरों के संरक्षण पर ध्यान दिया जाए।


 

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