'ईश्वरीय आदेश' के भरोसे पाकिस्तान की फौज! असीम मुनीर की नई रणनीति पर उठे सवाल

Edited By Updated: 18 May, 2025 02:30 PM

pakistan s army chief asim munir leading with faith over strategy

दक्षिण एशिया की भू-राजनीति के जटिल परिदृश्य में पाकिस्तान के मौजूदा सेनाध्यक्ष जनरल असीम मुनीर एक ऐसे व्यक्ति के रूप में उभरे हैं, जिनका नेतृत्व शैली परंपरागत सैन्य सोच से हटकर...

International Desk:दक्षिण एशिया की भू-राजनीति के जटिल परिदृश्य में पाकिस्तान के मौजूदा सेनाध्यक्ष जनरल असीम मुनीर एक ऐसे व्यक्ति के रूप में उभरे हैं, जिनका नेतृत्व शैली परंपरागत सैन्य सोच से हटकर कहीं अधिक वैचारिक और धार्मिक नजर आती है। पाकिस्तान के सैन्य व राजनीतिक गलियारों में उन्हें एक गहरे धार्मिक विश्वास वाले व्यक्ति के रूप में देखा जाता है। वे केवल एक सैन्य नेता ही नहीं, बल्कि एक ‘आध्यात्मिक सेनापति’ की छवि गढ़ रहे हैं, जो स्वयं को ईश्वरीय इच्छा द्वारा निर्देशित मानते हैं।
 

धार्मिक विचारधारा का सैन्य रणनीति में हस्तक्षेप
एक रिपोर्ट के अनुसारअपने पूर्ववर्तियों की तुलना में, जो राजनीतिक गणनाओं और सामरिक संतुलन को महत्व देते थे, जनरल असीम मुनीर को कई पर्यवेक्षक इस रूप में देख रहे हैं कि वे सैन्य निर्णयों में धार्मिक सोच को अत्यधिक प्राथमिकता दे रहे हैं। सैन्य ब्रीफिंग्स और रणनीतिक चर्चाओं में कुरान की आयतों का उल्लेख उनके लिए आम बात बन चुकी है। इससे यह सवाल उठने लगा है कि क्या पाकिस्तान की रक्षा नीति अब धार्मिक विचारधारा के प्रभाव में आकार ले रही है विशेषकर भारत के प्रति रुख में।
 

 रणनीतिक विफलताएं और भारत की प्रतिक्रिया
हाल ही में हुए पहलगाम हमले और उसके बाद भारत की सैन्य प्रतिक्रिया ने पाकिस्तान की रणनीतिक सोच पर सवाल खड़े कर दिए हैं। कई विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान ने भारत की जवाबी कार्रवाई की तीव्रता को गंभीरता से नहीं आंका। असीम मुनीर शायद सीमित सैन्य टकरावों के ज़रिए देश में राष्ट्रवाद को उभारना चाहते थे, लेकिन भारत की तेज़, संगठित और तकनीकी रूप से उन्नत प्रतिक्रिया ने पाकिस्तान की रणनीतिक सीमाओं को उजागर कर दिया।

 

सैन्य पेशेवरिता बनाम वैचारिकता
जनरल मुनीर के नेतृत्व के तरीके की भी आलोचना हो रही है, जिसमें धार्मिक प्रतीकों और राष्ट्रवाद का मिश्रण नजर आता है। रिपोर्ट्स के अनुसार, पाकिस्तानी सेना में अब धार्मिक भाषा और ‘मसीहाई’ (messianic) विचारधारा प्रमुख हो रही है, जिससे विरोध या असहमति को न केवल अनुशासनहीनता बल्कि "धर्मविरोध" समझा जा रहा है। इससे सैन्य संस्थान के भीतर की पेशेवर संरचना को खतरा है।

 

भारत की रणनीतिक मजबूती
वहीं भारत ने पिछले दशक में अपनी रक्षा नीति को तकनीकी और रणनीतिक रूप से काफी मज़बूत किया है। उच्च स्तरीय सर्विलांस, सटीक स्ट्राइक क्षमताएं और वैश्विक सहयोग से भारत की रक्षा तैयारी 1990 के दशक की मानसिकता से काफी आगे निकल चुकी है। पाकिस्तान यदि केवल प्रतीकात्मक विरोध और धार्मिक भावनाओं पर भरोसा करता रहेगा, तो वह भारत की एकीकृत और आधुनिक सैन्य नीति से मेल नहीं खा पाएगा।

 

आंतरिक चुनौतियां और जन असंतोष
पाकिस्तान के भीतर भी असीम मुनीर के नेतृत्व को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। गहराता आर्थिक संकट, बलूचिस्तान व खैबर पख्तूनख्वा में अस्थिरता और नीतियों को लेकर जनता का बढ़ता असंतोष ये सब सेना के प्रभाव को कमजोर कर रहे हैं। पहले जहां राष्ट्रवादी भाषणों से जनता को साधा जा सकता था, अब नई पीढ़ी इन बातों को लेकर ज्यादा आलोचनात्मक है।

 

सेना के भीतर असंतोष
सूत्रों के अनुसार, पाकिस्तानी सेना के भीतर के कुछ वरिष्ठ अधिकारी भी इस बात को लेकर असहज हैं कि कहीं धर्म और शहादत का अति प्रचार, सैन्य अनुशासन और व्यावसायिकता पर भारी न पड़ जाए। जब नीति निर्धारण की दिशा ईश्वरीय भाग्य के भरोसे छोड़ी जाए, तो एक परमाणु हथियारों से लैस देश के लिए यह स्थिति अत्यंत खतरनाक हो सकती है।

 

आस्था और रणनीति के बीच संतुलन की आवश्यकता
दक्षिण एशिया जैसे संवेदनशील क्षेत्र में, जहां हर निर्णय का क्षेत्रीय और वैश्विक असर हो सकता है, वहां केवल धार्मिक विश्वास के बल पर सैन्य नेतृत्व चलाना एक गंभीर चुनौती बन सकता है। जनरल असीम मुनीर का दृष्टिकोण भले ही उनके व्यक्तिगत विश्वास से प्रेरित हो, लेकिन विश्लेषक चेतावनी दे रहे हैं कि केवल आस्था के आधार पर न तो स्पष्टता आती है, न ही व्यावहारिक निर्णय और जवाबदेही सुनिश्चित हो पाती है। 

 

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