रात में क्यों बढ़ जाती है पाकिस्तान की हलचल? ड्रोन हमलों के पीछे छिपी है ये गहरी रणनीति

Edited By Ashutosh Chaubey,Updated: 09 May, 2025 11:45 PM

why does the activity in pakistan increase at night

भारत-पाक सीमा पर इन दिनों हर रात का अंधेरा खतरे के साए में ढल रहा है। खासकर राजस्थान के सीमावर्ती जिलों जैसे बाड़मेर और जैसलमेर में आए दिन रात के समय पाकिस्तान की तरफ से ड्रोन भेजे जा रहे हैं।

नेशनल डेस्क: सीमावर्ती इलाकों में इन दिनों रात का सन्नाटा कुछ ज्यादा ही खतरनाक हो गया है। जैसे ही अंधेरा गहराता है, पाकिस्तान की ओर से ड्रोन की गड़गड़ाहट और धमाकों की आवाजें सुनाई देने लगती हैं। लगातार बढ़ती ड्रोन गतिविधियां अब केवल हमला भर नहीं रह गई हैं, बल्कि इनके पीछे छिपी है एक सोची-समझी रणनीति। ये ड्रोन भले ही भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा मार गिराए जा रहे हों, लेकिन दुश्मन का इरादा महज एक हमला करना नहीं है। इसके पीछे छिपी है एक बहु-स्तरीय रणनीति, जिसमें भारत की रक्षा प्रणाली को कमजोर करने, भटकाने और मानसिक दबाव बनाने जैसे कई उद्देश्य हो सकते हैं। आखिर पाकिस्तान रात के समय ही अपने ड्रोन भेजने की चाल क्यों चल रहा है? क्या ये सिर्फ एक हमला है या किसी बड़ी जंग की तैयारी का हिस्सा? आइए समझते हैं इस बढ़ती हलचल के पीछे की गहरी वजह।

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वायु रक्षा को थकाने और भ्रमित करने की चाल

पाकिस्तान के ड्रोन हमले दिखने में भले ही साधारण लगें, लेकिन उनका मकसद बड़ा होता है। सस्ते और बार-बार भेजे गए ड्रोन भारत की महंगी मिसाइल और इंटरसेप्टर प्रणाली को इस्तेमाल करने पर मजबूर कर देते हैं। इससे न सिर्फ संसाधनों का नुकसान होता है, बल्कि सुरक्षा प्रणाली पर दबाव भी बनता है। यह SEAD/DEAD रणनीति कहलाती है – यानी वायु रक्षा को संतृप्त कर देना ताकि असली हमले के समय प्रतिक्रिया धीमी हो जाए।

खुफिया जानकारी जुटाने की कोशिश

कुछ ड्रोन केवल हमला करने के लिए नहीं होते, बल्कि वे भारत की रडार व्यवस्था, मिसाइल की स्थिति और सुरक्षा कवच की ताकत को जानने के लिए भेजे जाते हैं। भले ही ये ड्रोन मार गिरा दिए जाएं, लेकिन जब तक वे आसमान में रहते हैं, तब तक वो महत्वपूर्ण डाटा एकत्र करते रहते हैं। इससे दुश्मन को भविष्य के हमलों के लिए जानकारी मिलती है।
यह रणनीति अक्सर युद्ध में मास्किरोव्का के नाम से जानी जाती है – यानी मुख्य हमला किसी और दिशा से करना और ध्यान कहीं और भटकाना। ड्रोन हमले भारत को उस क्षेत्र में सतर्क कर सकते हैं, जहां से असल में हमला होना ही नहीं है। इससे भारत की सैन्य संपत्तियां और रडार सिस्टम ऐसे क्षेत्रों में खींचे जा सकते हैं जो असुरक्षित हों।

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भारत की प्रतिक्रिया प्रणाली का विश्लेषण

ड्रोन लहरें सिर्फ हमला नहीं करतीं, बल्कि भारत की प्रतिक्रिया को ‘टेस्ट’ भी करती हैं। पाकिस्तान यह देखता है कि किस स्थिति में भारत कौन से हथियार या सिस्टम एक्टिव करता है, कितनी देर में करता है और कहां से करता है। इससे उन्हें यह समझने में मदद मिलती है कि भारत की सुरक्षा कवच में कहां-कहां कमजोरियां हैं।

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मनोवैज्ञानिक और राजनीतिक दबाव

लगातार रात में ड्रोन हमले न सिर्फ सैनिकों पर मानसिक दबाव डालते हैं, बल्कि स्थानीय नागरिकों में भी डर और तनाव फैलाते हैं। जब नागरिकों को बार-बार घरों में बंद रहने की सलाह दी जाती है, जब हर रात धमाके सुनाई देते हैं, तो इसका असर राजनीतिक स्तर पर भी दिख सकता है। इससे सरकार पर दबाव बनता है कि वह बातचीत या संसाधनों में बदलाव करे।
कुछ मामलों में दुश्मन चाहता है कि भारत अपनी हाई-टेक रक्षा प्रणाली जैसे लॉन्ग-रेंज मिसाइल सिस्टम, इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर (EW) तकनीक को इस्तेमाल में लाए ताकि वे उसकी फ्रीक्वेंसी, रडार सिग्नेचर या क्षमता को समझ सकें और भविष्य में उसे जाम या निष्क्रिय कर सकें।

आर्थिक नुकसान का तरीका

ड्रोन की लागत भले ही 20 हजार डॉलर हो, लेकिन उसे गिराने में भारत को जो मिसाइल लगानी पड़ती है उसकी कीमत लाखों में होती है। यानी दुश्मन कम पैसे में भारत की रक्षा प्रणाली को आर्थिक रूप से नुकसान पहुंचा सकता है।

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