श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुरी से किया था इस कुंड का निर्माण, स्नान करने से होती है संतान प्राप्ति

Edited By Punjab Kesari,Updated: 24 Jan, 2018 05:40 PM

history and importance of radha kund krishna kund

भारत के कई हिस्सों में राधा-कृष्ण के मंदिर स्थापित है। इन्हीं मंदिरों में से एक मंदिर उत्तर प्रदेश की एतिहासिक नगरी मथुरा में स्थापित है। मथुरा में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था जिस कारण इस जगह को श्री कृष्ण का ही रूप माना जाता है।

भारत के कई हिस्सों में राधा-कृष्ण के मंदिर स्थापित है। इन्हीं मंदिरों में से एक मंदिर उत्तर प्रदेश की एतिहासिक नगरी मथुरा में स्थापित है। मथुरा में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था जिस कारण इस जगह को श्री कृष्ण का ही रूप माना जाता है। मथुरा का पूरा क्षेत्र कान्हा की भक्ति में लीन रहता है। मथुरा के समीप अरिता नामक गांव में 2 सरोवर है, जिन्हें राधा कुंड और कृष्ण कुंड कहा जाता है। 

राधा कुंड के विषय में मान्यता प्रचलित है कि जिस किसी दंपत्ति को संतान की प्राप्ति नहीं होती, अहोई अष्टमी (कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी) की मध्य रात्रि को इस कुंड में स्नान करने से उन्हें संतान की प्राप्ति हो जाती है।


इस से संबंधित कथा
इस कुंड के संबंध में प्रचलित कथा के अनुसार श्रीकृष्ण  का मामा कंस उनका वध करना चाहता था। इसके लिए कंस ने बहुत से राक्ष्सों को भेजा, उन्हीं में से एक अरिष्टासुर नाम का राक्षस था। अरिष्टासुर बछड़े का रूप बनाकर श्रीकृष्ण की गायों में शामिल हो गया और बाल-ग्वालों को मारने लगा। श्रीकृष्ण ने बछड़े के रूप में छिपे राक्षस को पहचान लिया और उसे पकड़कर जमीन पर पटक-पटककर उसका वध कर दिया। यह देखकर राधा ने श्रीकृष्ण से कहा कि उन्हें गौहत्या का पाप लग गया है और इस पाप की मुक्ति के लिए उन्हें सभी तीर्थों के दर्शन करने चाहिए। 

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राधा के ऐसा कहने पर श्रीकृष्ण ने देवर्षि नारद से इसका उपाय पूछा। देवर्षि नारद ने उन्हें उपाय बताया कि वह सभी तीर्थों का आह्वान करके उन्हें जल रूप में बुलाएं और उन तीर्थों के जल को एक साथ मिलाकर स्नान करें। ऐसा करने से गौहत्या के पाप से मुक्ति मिल जाएगी। देवर्षि के कहने पर श्रीकृष्ण ने एक कुंड में सभी तीर्थों के जल को आमंत्रित किया और कुंड में स्नान करके पापमुक्त हो गए। उस कुंड को कुष्ण कुंड कहा जाता है, जिसमें स्नान करके श्रीकृष्ण गौहत्या के पाप से मुक्त हुए थे।

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बांसुरी से किया था कुंड का निर्माण
मान्यता के अनुसार कृष्ण कुंड का निर्माण श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुरी से किया था। नारद के कहने पर श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुरी से एक छोटा सा कुंड खोदा और सभी तीर्थों के जल से उस कुंड में आने की प्रार्थना की। भगवान के बुलाने पर सभी तीर्थ वहां जल रूप में आ गए। माना जाता है कि तभी से सभी तीर्थों का अंश जल रूप में यहां स्थित है।

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इस तरह हुई थी राधा कुंड की स्थापना
श्रीकृष्ण के बनाए कुंड को देखकर राधा ने उस कुंड के पास ही अपने कंगन से एक और छोटा सा कुंड खोदा। जब भगवान ने उस कुंड को देखा तो हर रोज उसी कुंड में स्नान करने का और उनके बनाए कृष्ण कुंड से भी ज्यादा प्रसिद्ध होने का वरदान दिया। उस कुंड को देवी राधा ने बनाया था, इसीलिए वह राधा कुंड के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

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अहोई अष्टमी पर हुआ कुंडों का निर्माण
माना जाता है कि अहोई अष्टमी तिथि पर इन दोनों कुंडों का निर्माण हुआ था। इसलिए अहोई अष्टमी पर यहां स्नान करने का विशेष महत्व माना जाता है। हर साल अहोई अष्टमी पर राधा कुंड में बड़ी संख्या में लोग स्नान करते है। यहां स्नान करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

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कुंडों की विशेषता
कृष्ण कुंड और राधा कुंड की विशेषता है कि दूर से देखने पर कृष्ण कुंड का जल काला और राधा कुंड का जल सफेद दिखाई देता है। जो कि श्रीकृष्ण के काले वर्ण के होने का और देवी राधा के सफेद वर्ण के होने का प्रतीक है।

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