Edited By Niyati Bhandari,Updated: 02 Nov, 2023 07:55 AM
एक बार सम्राट अशोक राज्य के भ्रमण पर निकले। रास्ते में उन्हें एक भिक्षुक मिले। सम्राट घोड़े से उतरे और उनके चरणों में शीश झुका दिया।
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Inspirational Context: एक बार सम्राट अशोक राज्य के भ्रमण पर निकले। रास्ते में उन्हें एक भिक्षुक मिले। सम्राट घोड़े से उतरे और उनके चरणों में शीश झुका दिया। कुछ समय बाद मंत्री ने पूछा, “महाराज आपने इतने बड़े सम्राट होते हुए एक मामूली से भिक्षुक के चरणों में अपना शीश क्यों झुकाया।”
सम्राट अशोक उस दिन चुप रहे लेकिन कुछ दिन के बाद सम्राट ने मंत्री को एक थैला देकर आदेश दिया कि शाम तक इस थैले में जो सामान है वह बेच कर आओ। मंत्री ने राज भवन से बाहर आकर देखा तो उसमें एक भैंसे का, एक बकरे का, एक घोड़े का और इंसान का सिर था। शाम तक उसने भैंसे, घोड़े और बकरे का सिर बेच दिया लेकिन इंसान का सिर खरीदने को कोई भी तैयार नहीं था।
शाम को सम्राट अशोक के पास आकर उसने बताया कि महाराज बाकी के सिर तो बिक गए लेकिन इंसान का सिर कोई भी खरीदने को तैयार नहीं है।
सम्राट ने कहा कि ऐसा करना कि कल इंसान का सिर किसी को मुफ्त में दे आना। मंत्री अगले दिन फिर से इंसान के सिर को लेकर गया लेकिन किसी ने मुफ्त में भी उसे नहीं लिया।
मंत्री ने सम्राट अशोक को बताया कि कोई इंसान का सिर मुफ्त में भी लेने को तैयार नहीं है। लोग कहते हैं कि किसी ने इस सिर को हमारे साथ देखा तो लोग उसे हत्यारा समझेंगे।
सम्राट अशोक ने फिर मंत्री को समझाया कि इस सिर का क्या घमंड करना। देखो भैंसे, घोड़े और बकरे का सिर बिक गया लेकिन इंसान के सिर की किसी ने कोई कीमत नहीं दी। यहां तक कि किसी ने मुफ्त में भी नहीं लिया इसलिए मैंने अभिमान त्याग कर उस भिक्षुक के चरणों में अपना शीश झुकाया था।
जिस सिर की कोई कीमत ही नहीं है उसका अभिमान क्या करना ? मंत्री को अपने सवाल का जवाब मिल गया।