Mamleshwar Temple: पहलगाम का ममलेश्वर मंदिर, जहां माता पार्वती ने गणेश जी को सौंपा था द्वारपाल का दायित्व

Edited By Updated: 13 May, 2025 01:28 PM

mamleshwar temple

12वीं शताब्दी में लोहरा वंश के राजा जयसिंह ने पहलगाम के गांव ममलका गांव में  ममलेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया था।  उन्होंने मंदिर की छत पर सोने का कलश भी स्थापित करवाया था, जो इसकी भव्यता को और बढ़ा देता है।

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Mamaleshwar Temple: कश्मीर का पहलगाम आज-कल चर्चा का विषय बना हुआ है। ऐसे में आज आपको इस आर्टकिल में बताएंगे पहलगाम के एक ऐसे मंदिर के बारे में, जिससे आज तक कई लोग अनजान हैं

ममलेश्वर मंदिर 
12वीं शताब्दी में लोहरा वंश के राजा जयसिंह ने पहलगाम के गांव ममलका गांव में  ममलेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया था।  उन्होंने मंदिर की छत पर सोने का कलश भी स्थापित करवाया था, जो इसकी भव्यता को और बढ़ा देता है। इस मंदिर में भगवान शिव का शिवलिंग स्थापित है, जिसके पास से एक प्राकृतिक झरना बहता है। झरने का पवित्र जल एक कुंड में एकत्रित होता रहता है, जिसे श्रद्धालु पवित्र मानते हैं। मंदिर में शिवलिंग के अलावा दो खूबसूरत नंदी की मूर्तियां भी हैं, जो मंदिर की शोभा बढ़ाती हैं। ममलेश्वर मंदिर को मम्मल मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। मम का अर्थ है मत और मल का अर्थ है जाना, यानी यहां मत जाओ। इस नाम के पीछे एक पौराणिक कथा भी प्रचलित है, जो इस मंदिर को और भी रोचक बना देती है।

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Story Related to the Temple मंदिर से जुड़ी कथा
शिवपुराण के अनुसार, एक बार माता पार्वती स्नान करने से पहले उबटन का लेप कर रही थीं। स्नान के बाद जब उन्होंने उबटन उतारा, तो उस हल्दी से एक पुतला बना लिया। फिर उन्होंने अपनी शक्तियों से उस पुतले में प्राण फूंक दिए। इस तरह भगवान गणेश का जन्म हुआ। स्नान के लिए जाते समय माता पार्वती ने गणेश जी को द्वारपाल नियुक्त कर दिया और सख्त हिदायत दी कि कोई भी भीतर न आने पाए।

कुछ समय उपरान्त भगवान शिव वहां पहुंचे और माता पार्वती से मिलने की इच्छा जताई लेकिन माता पार्वती की आज्ञा अनुसार गणेश जी ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया। यह देखकर भगवान शिव को क्रोध आ गया। उन्होंने कई बार भीतर जाने की कोशिश की, लेकिन गणेश जी अपनी माता के आदेश का पालन करते हुए दृढ़ता से अड़े रहे। आखिरकार भगवान शिव और गणेश जी के बीच युद्ध शुरू हो गया।

काफी समय तक युद्ध चलता रहा। अंत में भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से गणेश जी का सिर काट दिया। जब माता पार्वती बाहर आईं और अपने पुत्र को मूर्छित अवस्था में देखा, तो उनका हृदय विदीर्ण हो गया। वह विलाप करने लगीं और क्रोध में आकर प्रलय लाने की बात कहने लगीं। इससे देवताओं में हड़कंप मच गया।

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देवताओं ने माता पार्वती को शांत करने का प्रयास किया, लेकिन वे किसी भी तरह से शांत नहीं हो रही थीं। तब भगवान शिव ने गरुड़ को आदेश दिया कि वे उत्तर दिशा में जाएं और ऐसी मां के बच्चे का सिर लेकर आएं, जो अपने बच्चे की ओर पीठ करके बैठी हो।

गरुड़ जी तुरंत उड़ चले और काफी खोजबीन के बाद उन्होंने एक हथिनी को देखा, जो अपने बच्चे की ओर पीठ करके बैठी थी। गरुड़ जी ने उस बच्चे का सिर लेकर वापस लौट आए। भगवान शिव ने उस हाथी के सिर को गणेश जी के धड़ पर स्थापित कर दिया और अपने वरदान से उन्हें पुनर्जीवित कर दिया। इस तरह भगवान गणेश का हाथीमुख वाला स्वरूप अस्तित्व में आया और वे सभी के प्रिय गजानन कहलाए।

इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहां दो मुखों वाली नंदी महाराज की मूर्ति है। 

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