Edited By Sarita Thapa,Updated: 13 Jun, 2025 07:59 AM
Mithun Sankranti 2025: जब भी सूर्य देव एक राशि छोड़ दूसरी राशि में परिवर्तन करते हैं तो उसे संक्रांति कहा जाता है। 15 जून को सूर्य देव वृष राशि से निकलकर मिथुन राशि में प्रवेश कर जाएंगे, जिसे मिथुन संक्रांति कहते है।
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Mithun Sankranti 2025: जब भी सूर्य देव एक राशि छोड़ दूसरी राशि में परिवर्तन करते हैं तो उसे संक्रांति कहा जाता है। 15 जून को सूर्य देव वृष राशि से निकलकर मिथुन राशि में प्रवेश कर जाएंगे, जिसे मिथुन संक्रांति कहते है। धार्मिक दृष्टिकोण से मिथुन संक्रांति का बहुत महत्व बताया गया है। इस दिन खासतौर से सूर्यदेव की पूजी की जाती है और मान्यता है कि इस दिन पूरे विधि विधान से सूर्यदेव की पूजा-अर्चना करने से जीवन में सुख-शांति का आगमन होता है। साथ ही कई प्रकार के दोषों से भी मुक्ति मिलती है। इस दिन दान- पुण्य और स्नान करने का भी बेहद महत्व है। इस दिन पर कई तरह की परंपराएं निभाई जाती हैं जिस में से प्रमुख परंपरा है सिलबट्टे की भी पूजा करना। लेकिन क्या आप जानते है कि मिथुन संक्रांति के दिन ही क्यों की जाती है सिलबट्टे की पूजा और क्या है इसके पीछे का कारण। तो आइए जानते हैं विस्तार में इसके बारे में-

क्यों की जाती है सिलबट्टे की पूजा
देखा जाए तो देश में मिथुन संक्रांति को कई तरीके से मनाया जाता है। पुरानी मान्यताओं को देखें तो इस त्यौहार को औरतों के लिए विशेष माना जाता है। मान्यता है कि सिलबट्टे में धरती मां वास करती है। जैसे महिलाओं को हर माह मासिक धर्म होता है, वैसे ही इस दौरान धरती मां को भी मासिक धर्म होता है जिसे आज के दौर में पीरियड्स कहा जाता है। इसे धरती के विकास का प्रतीक माना गया है। ऐसा माना जाता है कि मिथुन संक्रांति से लेकर अगले तीन से चार दिनों तक धरती मां मासिक धर्म में रहती है। जिसके दौरान सिलबट्टे का उपयोग नहीं किया जाता। मिथुन संक्रांति पर धरती मां के मासिक धर्म होने पर इसे रज संक्रांति भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि मिथुन संक्रांति से धरती मां का मासिक धर्म शुरू होता है और तीन या चार दिन के बाद मासिक धर्म समाप्त हो जाता है।

मासिक धर्म के आखिरी दिन धरती मां के रूप माने जाने वाले सिलबट्टे को दूध और जल से स्नान करवाया जाता है जिसे वसुमति गढ़वा कहते हैं। स्नान कराने के बाद सिलबट्टे को चंदन, सिंदूर , फल, फूल आदि अर्पित किया जाता है जिसके बाद से सिलबट्टे का नियमित रूप से इस्तेमाल शुरू हो जाता है। कहते हैं इस दौरान धरती मां को मानसून की खेती के लिए खुद को तैयार करती है। मान्यता ये भी है कि मिथुन संक्रांति के दिन से ही वर्षा ऋतु का भी आरंभ हो जाता है और इस दिन लोग अच्छी फसल के लिए भगवान से अच्छी वर्षा की कामना भी करते हैं। वहीं, मिथुन संक्रांति के दिन कई तरह के उपाय भी किए जाते हैं जिस से इस दिन का महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है। इस दिन अन्न, जल, वस्त्र, फल आदि चीज़ों का दान बेहद शुभ माना जाता है। इस दिन जरूरतमंदों और गरीबों को दान जरूर दें।
इसके अलावा इस दिन सूर्य देव की पूजा भी की जाती है। ऐसे में इस दिन सूर्य देव की पूजा करने के लिए सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर लें और सूर्य देव का ध्यान करें। इस के बाद एक तांबे के लोटे में रोली, अक्षत, और लाल फूल को डालकर सूर्य देव को अर्घ्य दें और "ऊं घृणि सूर्याय नम: मंत्र का जप करें"। इसके बाद सूर्य चालीसा और आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ कर सुख समृद्धि की कामना करें।
