Srimad Bhagavad Gita: श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप- भक्ति से परमेश्वर की प्राप्ति

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 02 Sep, 2023 08:06 AM

srimad bhagavad gita

अनुवाद एवं तात्पर्य : भक्ति में लगे बिना केवल समस्त कर्मों का परित्याग करने से कोई सुखी नहीं बन सकता परंतु भक्ति में लगा हुआ विचारवान व्यक्ति

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता- स्वामी प्रभुपाद

संन्यासस्तु महाबाहो दुःखमाप्तुमयोगतः योगयुक्तो मुनिर्ब्रह्म न चिरेणाधिगच्छति ।।5.6।।

PunjabKesari Srimad Bhagavad Gita

अनुवाद एवं तात्पर्य : भक्ति में लगे बिना केवल समस्त कर्मों का परित्याग करने से कोई सुखी नहीं बन सकता परंतु भक्ति में लगा हुआ विचारवान व्यक्ति शीघ्र ही परमेश्वर को प्राप्त कर लेता है। संन्यासी दो प्रकार के होते हैं। मायावादी संन्यासी सांख्यदर्शन के अध्ययन में लगे रहते हैं तथा वैष्णव संन्यासी वेदांत सूत्रों के यथार्थ भाष्य भागवत दर्शन के अध्ययन में लगे रहते हैं। मायावादी संन्यासी भी वेदांत सूत्रों का अध्ययन करते हैं किन्तु वे शंकराचार्य द्वारा प्रणीत शारीरिक भाष्य का उपयोग करते हैं।

PunjabKesari Srimad Bhagavad Gita

मायावादी संन्यासी जो सांख्य तथा वेदांत के अध्ययन एवं चिंतन में लगे रहते हैं, वे भगवान की दिव्य भक्ति का आनंद नहीं उठा पाते चूंकि उनका अध्ययन अत्यंत जटिल हो जाता है। अत: वे कभी-कभी ब्रह्मचिंतन से ऊब कर समुचित बोध के बिना ही भगवान की शरण ग्रहण करते हैं। फलस्वरूप श्रीमद्भागवत का भी अध्ययन उनके लिए कष्टकर होता है। भक्ति में लगे हुए वैष्णव संन्यासी अपने दिव्य कर्मों को करते हुए प्रसन्न रहते हैं और यह भी निश्चित रहता है कि वे भगवद्धाम को प्राप्त होंगे। अत: निष्कर्ष यह निकला कि कृष्णभावनामृत के कार्यों में लगे रहने वाले लोग ब्रह्म-अब्रह्म विषयक साधारण चिंतन में लगे संन्यासियों से श्रेष्ठ हैं यद्यपि वे भी अनेक जन्मों के बाद कृष्णभावनाभावित हो जाते हैं।

PunjabKesari Srimad Bhagavad Gita

 

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!