Varuthini Ekadashi 2025: इस दिन मनाई जाएगी अप्रैल माह की दूसरी एकादशी, यहां देखें तिथि और शुभ मुहूर्त

Edited By Updated: 16 Apr, 2025 11:36 AM

varuthini ekadashi 2025

हिंदू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व होता है। प्रत्येक माह में दो एकादशी तिथि आती हैं एक शुक्ल पक्ष में और दूसरी कृष्ण पक्ष में। वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरूथिनी एकादशी कहा जाता है।

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Varuthini Ekadashi 2025: हिंदू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व होता है। प्रत्येक माह में दो एकादशी तिथि आती हैं एक शुक्ल पक्ष में और दूसरी कृष्ण पक्ष में। वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरूथिनी एकादशी कहा जाता है। इस दिन व्रत एवं पूजा का विशेष महत्व होता है। यह व्रत न केवल पापों का नाश करता है बल्कि सुख-समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति में भी सहायक होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत को करने से मनुष्य के सभी पाप कटते हैं और उसे पूर्व जन्मों के कर्मों से मुक्ति मिलती है। यह व्रत विशेष रूप से मन, वचन और कर्म की शुद्धि के लिए किया जाता है। इस आर्टिकल में जानेंगे वरूथिनी एकादशी 2025 की तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि। 

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Varuthini Ekadashi Date वरुथिनी एकादशी तिथि 
एकादशी तिथि की शुरुआत 23 अप्रैल को शाम 4 बजकर 43 मिनट से शुरुआत होगी और अगले दिन 24 अप्रैल को दोपहर को इसका समापन होगा। पंचांग के अनुसार एकादशी का व्रत 24 अप्रैल के दिन रखा जाएगा। 

वरुथिनी एकादशी पूजा मुहूर्त - सुबह 5 बजकर 47 मिनट से लेकर सुबह 7 बजकर 25 मिनट तक। 

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Varuthini Ekadashi worship method वरूथिनी एकादशी व्रत और पूजा विधि

व्रत का संकल्प लें
इस व्रत को करने से पहले स्नान करके व्रत का संकल्प लें। संकल्प करते समय ध्यान रखें कि व्रत में सत्य बोलने, अहिंसा, ब्रह्मचर्य और शुद्ध आहार का पालन करें।

भगवान विष्णु का पूजन
प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु की पूजा करें। पूजा के लिए विशेष रूप से निम्नलिखित सामग्रियों का उपयोग करें:

दीपक और तेल
चंदन, फूल और फल

तुलसी के पत्ते

व्रत का विशेष नियम
इस दिन भोजन में ताजे फल और जल का सेवन करें। यह व्रत उपवास रखने का होता है लेकिन फलाहार की अनुमति होती है। दिनभर उपवास रखें और रात्रि में जागरण करें।

रात्रि जागरण और भजन-कीर्तन
इस दिन रात्रि में जागरण करना बहुत फलदायी माना जाता है। इस समय भगवान विष्णु के नाम का जप करें और उनके भजन गाएं। इससे मन को शांति मिलती है और व्रत का अधिकतम पुण्य मिलता है।

अगले दिन ब्राह्मणों को भोजन कराना
व्रत के समापन पर, अगले दिन ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। उन्हें दक्षिणा दें और दान-पुण्य करें। यह व्रत पूर्ण होने के बाद आत्मिक शांति और पुण्य की प्राप्ति होती है।

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