Edited By Anu Malhotra,Updated: 24 Dec, 2025 08:44 AM

मजदूरों और केंद्र सरकार के बीच टकराव अब और बढ़ती नज़र आ रही है। दरअसल, नए साल की शुरुआत के साथ ही भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था में एक बड़ा उबाल आने वाला है। देश के प्रमुख केंद्रीय श्रमिक संगठनों ने सरकार की नीतियों और नए कानूनों के खिलाफ 'आर-पार'...
नेशनल डेस्क: मजदूरों और केंद्र सरकार के बीच टकराव अब और बढ़ती नज़र आ रही है। दरअसल, नए साल की शुरुआत के साथ ही भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था में एक बड़ा उबाल आने वाला है। देश के प्रमुख केंद्रीय श्रमिक संगठनों ने सरकार की नीतियों और नए कानूनों के खिलाफ 'आर-पार' की जंग का ऐलान कर दिया है।
फरवरी में थमेगा देश का पहिया: श्रम कानूनों और 'मनरेगा' के खात्मे के खिलाफ 12 फरवरी को महा-हड़ताल
संसद के शीतकालीन सत्र की समाप्ति के बाद अब सड़कों पर संग्राम की तैयारी है। देश के 10 बड़े मजदूर संगठनों ने संयुक्त रूप से 12 फरवरी, 2026 को राष्ट्रव्यापी आम हड़ताल का आह्वान किया है। यह हड़ताल न केवल श्रम सुधारों के खिलाफ है, बल्कि परमाणु ऊर्जा और ग्रामीण रोजगार के ढांचे में किए जा रहे बुनियादी बदलावों को रोकने की एक बड़ी कोशिश है।
विरोध के तीन सबसे बड़े कारण (ट्रिगर पॉइंट्स)
चार नए Labor Codes: सरकार द्वारा नवंबर में अधिसूचित की गई चार नए Labor Codes को श्रमिक संघ "मजदूर विरोधी" करार दे रहे हैं। उनका मानना है कि इससे श्रमिकों के अधिकार कम होंगे और कॉर्पोरेट का दबदबा बढ़ेगा।
परमाणु ऊर्जा विधेयक: हाल ही में पारित 'शांति विधेयक' के जरिए परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में किए जा रहे बदलावों को लेकर इंजीनियरों और कर्मचारियों में भारी रोष है।
मनरेगा का अंत और नया VB-G RAM G मिशन: सरकार द्वारा मनरेगा को समाप्त कर उसकी जगह लाए जा रहे 'विकसित भारत-रोजगार और आजीविका मिशन (ग्रामीण)' का कड़ा विरोध हो रहा है।
विवाद की जड़: हालांकि नया विधेयक 125 दिन के रोजगार की गारंटी देता है, लेकिन श्रमिक संगठनों का आरोप है कि कटाई के सीजन में काम रोकने का प्रावधान सिर्फ इसलिए किया गया है ताकि बड़े जमींदारों को सस्ता लेबर मिलता रहे।
हड़ताल का 'वार रूम' और रणनीति
इस आंदोलन को धार देने के लिए 9 जनवरी, 2026 को नई दिल्ली में एक 'राष्ट्रीय श्रमिक सम्मेलन' बुलाया गया है, जहाँ हड़ताल की आधिकारिक और औपचारिक रूपरेखा पर मुहर लगेगी।
किनका मिला है साथ?
प्रमुख संगठन: INTUC, AITUC और CITU समेत 10 बड़े संघ (BMS इसमें शामिल नहीं है)। किसानों के संगठन 'संयुक्त किसान मोर्चा' (SKM) और बिजली कर्मचारियों के संगठन (NCCOEEE) ने भी इस बंद को अपना पूर्ण समर्थन देने का फैसला किया है।
बजट सत्र पर पड़ेगा असर
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह हड़ताल फरवरी में संसद के बजट सत्र के दौरान होगी। ऐसे में जब सरकार देश का लेखा-जोखा पेश कर रही होगी, तब सड़कों पर मजदूरों का आक्रोश सरकार के लिए बड़ी चुनौती खड़ी कर सकता है।