RSS का  'Socialist' और 'Secular' शब्द संविधान से हटाने की मांग, इमरजेंसी दौरान देश पर थोपे गए ये शब्द

Edited By Updated: 27 Jun, 2025 02:50 PM

rss demands removal of the words  socialist  and  secular  from the constitution

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने संविधान की प्रस्तावना से 'सोशलिस्ट' और 'सेक्यूलर' शब्दों को हटाने की मांग उठाई है। इमरजेंसी के 50 वर्ष पूरे होने के अवसर पर नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में होसबाले ने कांग्रेस से...

National Desk : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने संविधान की प्रस्तावना से 'सोशलिस्ट' और 'सेक्यूलर' शब्दों को हटाने की मांग उठाई है। इमरजेंसी के 50 वर्ष पूरे होने के अवसर पर नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में होसबाले ने कांग्रेस से इंदिरा गांधी की इमरजेंसी लगाने की घटना पर माफी मांगने की भी अपील की। उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि जो लोग उस समय गलत कार्य कर रहे थे, वे आज संविधान की प्रति लेकर घूम रहे हैं। दत्तात्रेय होसबाले के इस बयान पर कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य जयराम रमेश ने प्रतिक्रिया दी है। जयराम रमेश ने कहा कि आरएसएस शुरुआत से ही संविधान के खिलाफ रहा है और इसके विरोध में कई कदम उठाए हैं।

उन्होंने यह भी बताया कि संघ के कार्यकर्ताओं ने पंडित नेहरू और डॉ. आंबेडकर के पुतले जलाए थे। इस बयान से संघ और कांग्रेस के बीच विवाद एक नए मोड़ पर पहुंच गया है। साथ ही, संविधान की प्रस्तावना में 'सोशलिस्ट' और 'सेक्यूलर' शब्दों को लेकर एक नई बहस भी शुरू हो गई है। संघ नेता ने यह भी कहा कि यह विचार किया जाना चाहिए कि क्या 1976 में 42वें संविधान संशोधन के दौरान संविधान की प्रस्तावना में जोड़े गए 'सॉवरेन सोशलिस्ट सेक्यूलर डेमोक्रेटिक रिपब्लिक' शब्दों को बनाए रखना उचित है या इन्हें हटाया जाना चाहिए। यह संशोधन इमरजेंसी के समय हुआ था, जब देश में तानाशाही लागू थी।

इन शब्दों को लेकर विवाद क्यों
इन शब्दों को हटाने के पीछे तर्क यह दिया जाता है कि इन्हें बिना संसद की व्यापक चर्चा के उस समय जोड़ा गया था, जबकि देश में लोकतंत्र कमजोर था। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि 'सोशलिस्ट' शब्द देश की नीतियों को सीमित करता है। संघ के दक्षिणपंथी समर्थक 'सेक्यूलर' शब्द को भारत की हिंदू विरासत को नकारने वाला मानते हैं। वहीं, इसके समर्थक तर्क देते हैं कि ये शब्द भारत की विविधताओं में एकता और सरकार की धर्मनिरपेक्ष नीति को दर्शाते हैं, साथ ही सामाजिक समानता की प्रतिबद्धता को भी प्रकट करते हैं।

क्या इन शब्दों को लेकर हुई थी चर्चा
संविधान सभा में इन दोनों शब्दों को लेकर चर्चा भी हुई थी। मूल संविधान ड्राफ्ट में 'सोशलिस्ट' और 'सेक्यूलर' शब्द शामिल नहीं थे। कुछ सदस्यों ने प्रस्ताव रखा था कि ये शब्द देश की विचारधारा को बेहतर तरीके से व्यक्त करेंगे। प्रोफेसर केटी शाह ने विशेष रूप से इन शब्दों को जोड़ने के लिए प्रयास किए थे। उनका मानना था कि 'सेक्यूलर' शब्द धर्म के प्रति तटस्थता को दर्शाएगा, जबकि 'सोशलिस्ट' शब्द आर्थिक असमानताओं को कम करने के उद्देश्य को स्पष्ट करेगा। उनके इस तर्क का समर्थन एचवी कामथ और हसरत मोहानी जैसे अन्य सदस्यों ने भी किया था।


 

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