महाराष्ट्र के स्कूलों में हिंदी थोपने के खिलाफ 20 साल बाद एक मंच पर आए उद्धव और राज ठाकरे, साझा आंदोलन करने की तैयारी

Edited By Updated: 27 Jun, 2025 02:11 PM

uddhav and raj thackeray came together on stage after 20 years

महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे एक बार फिर साथ आने की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) और शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) राज्य में हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा बनाए जाने के फैसले का संयुक्त रूप से विरोध करेंगे। इस संबंध...

National Desk : महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे एक बार फिर साथ आने की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) और शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) राज्य में हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा बनाए जाने के फैसले का संयुक्त रूप से विरोध करेंगे। इस संबंध में शिवसेना (UBT) के नेता संजय राउत ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर जानकारी साझा की है। उन्होंने बताया कि दोनों दल मिलकर इस निर्णय के खिलाफ एकजुट होकर आंदोलन करेंगे। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि महाराष्ट्र की पुरानी प्रतिष्ठा को फिर से स्थापित किया जाएगा।
दरअसल शिवसेना (उद्धव गुट) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना यानी मनसे के नेता एक ही मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन करने जा रहे हैं। मनसे प्रमुख राज ठाकरे 5 जुलाई को रैली निकालेंगे, जबकि उद्धव ठाकरे की अगुवाई में 7 जुलाई को मराठी समन्वय समिति द्वारा बड़ा मार्च आयोजित किया जाएगा। दिलचस्प बात यह है कि शुरुआत में राज ठाकरे ने अपनी रैली की तारीख 6 जुलाई तय की थी, लेकिन बाद में यह तारीख बदलकर 5 जुलाई कर दी गई। बताया जा रहा है कि यह बदलाव उद्धव ठाकरे के गुट के सुझाव पर हुआ, जो दोनों के बीच समन्वय का संकेत देता है।

संजय राउत ने पोस्ट की तस्वीर
संजय राउत ने जो पोस्ट लिखा है उसके साथ एक तस्वीर भी लगाई है जिसमें उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे एक साथ दिख रहे हैं। माना जा रहा है कि ये संकेत दोनों भाइयों के बीच बढ़ रही नजदीकियों का संकेत है और पुरानी ग्लोरी से मतलब बाला साहेब ठाकरे के शिवसेना की ओर इशारा किया गया है। 

जय महाराष्ट्र!

"There will be a single and united march against compulsory Hindi in Maharashtra schools. Thackeray is the brand!"
@Dev_Fadnavis
@AmitShahpic.twitter.com/tPv6q15Hwv

— Sanjay Raut (@rautsanjay61) June 27, 2025

 


असल, तीन भाषा फॉर्मूले के तहत महाराष्ट्र के स्कूलों में पहली कक्षा से हिंदी को लागू किया जा रहा है जिसका राज ठाकरे विरोध कर रहे हैं और अब उद्धव ठाकरे ने भी इसके विरोध में मोर्चा खोल दिया है। 

ठाकरे परिवार में बगावत का कारण

करीब 20 साल पहले ठाकरे परिवार में दरार उस समय आई थी जब राज ठाकरे ने 2005 में शिवसेना से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद 2006 में उन्होंने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के नाम से अपनी नई पार्टी की स्थापना की। यह टकराव दरअसल शिवसेना के नेतृत्व को लेकर हुआ था। माना जाता था कि बाला साहेब ठाकरे के राजनीतिक उत्तराधिकारी राज ठाकरे होंगे, लेकिन आखिरी समय में उन्होंने पार्टी की कमान अपने बेटे उद्धव ठाकरे को सौंप दी। इस फैसले से नाराज़ होकर राज ठाकरे ने अलग राह पकड़ ली। अब, दो दशकों बाद एक बार फिर ठाकरे परिवार के एकजुट होने के संकेत मिल रहे हैं। हाल ही में राज और उद्धव ठाकरे के बीच मुलाकात भी हुई है और अब राज्य में हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा बनाए जाने के विरोध में दोनों नेता एक मंच पर आते दिखाई दे रहे हैं। यह मुद्दा दोनों को फिर से करीब ला रहा है।
 
दोनों भाई क्यों हो रहे एकजुट
अब बड़ा सवाल ये है कि आखिर इतने वर्षों बाद ठाकरे परिवार फिर से एकजुट क्यों होने जा रहा है? राज और उद्धव ठाकरे के साथ आने की असली वजह क्या है, आइए समझते हैं।

दरअसल, महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे परिवार का असर पहले की तरह नहीं रहा। एकनाथ शिंदे ने शिवसेना में बगावत कर न सिर्फ उद्धव ठाकरे से पार्टी की कमान छीन ली, बल्कि चुनाव चिन्ह, विधायक और सांसदों का समर्थन भी हासिल कर लिया। हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में भी जनता ने एकनाथ शिंदे के गुट को असली शिवसेना माना, जबकि उद्धव ठाकरे की शिवसेना (UBT) मुश्किल से दोहरे अंकों तक पहुंच सकी। वहीं दूसरी ओर, राज ठाकरे की पार्टी MNS की स्थिति और भी कमजोर होती गई। विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई। ऐसे में माना जा रहा है कि राजनीतिक प्रभाव फिर से पाने के लिए अब राज और उद्धव ठाकरे अपने पुराने मतभेद भुलाकर साथ आने की कोशिश कर रहे हैं। दोनों नेताओं को महसूस हो रहा है कि अगर वे अलग-अलग रहे, तो उनका राजनीतिक वजूद और कमजोर हो सकता है।

राज ठाकरे की अपील- बिना राजनीतिक झंडे के शामिल हों

राज ठाकरे ने जनता से आग्रह किया है कि वे होने वाले मार्च में किसी भी राजनीतिक पार्टी का झंडा लेकर न आएं, बल्कि सिर्फ मराठी अस्मिता को केंद्र में रखें। यह इशारा है कि वे फिलहाल राजनीतिक एजेंडे से हटकर सांस्कृतिक मुद्दों पर साझा मंच बनाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने यह भी माना है कि उनकी पार्टी का उद्धव ठाकरे गुट से संपर्क बना हुआ है, जिससे दोनों गुटों के फिर से साथ आने की अटकलें तेज हो गई हैं। माना जा रहा है कि पर्दे के पीछे बातचीत का सिलसिला भी चल रहा है। एक वरिष्ठ नेता ने यह पुष्टि की है कि राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के बीच समन्वय की प्रक्रिया जारी है, हालांकि उन्होंने अपना नाम जाहिर नहीं किया। उधर, शिवसेना (UBT) के नेता संजय राउत ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर बताया है कि दोनों नेता हिंदी भाषा थोपने के खिलाफ एक साझा रणनीति तैयार कर रहे हैं।

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