बुनियादी ढांचा क्षेत्र की 379 परियोजनाओं की लागत 4.64 लाख करोड़ रुपए बढ़ी

Edited By jyoti choudhary,Updated: 04 Jun, 2023 01:24 PM

379 infrastructure projects cost overrun by rs 4 64 lakh crore

बुनियादी ढांचा क्षेत्र की 150 करोड़ रुपए या इससे अधिक के खर्च वाली 379 परियोजनाओं की लागत अप्रैल, 2023 तक तय अनुमान से 4.64 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा बढ़ गई है। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि देरी और अन्य कारणों से इन परियोजनाओं की लागत बढ़ी है।...

नई दिल्लीः बुनियादी ढांचा क्षेत्र की 150 करोड़ रुपए या इससे अधिक के खर्च वाली 379 परियोजनाओं की लागत अप्रैल, 2023 तक तय अनुमान से 4.64 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा बढ़ गई है। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि देरी और अन्य कारणों से इन परियोजनाओं की लागत बढ़ी है। सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय 150 करोड़ रुपए या इससे अधिक की लागत वाली बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की निगरानी करता है। 

मंत्रालय की अप्रैल, 2023 की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस तरह की 1,605 परियोजनाओं में से 379 की लागत बढ़ गई है, जबकि 800 परियोजनाएं देरी से चल रही हैं। रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘इन 1,605 परियोजनाओं के क्रियान्वयन की मूल लागत 22,85,674.25 करोड़ रुपए थी लेकिन अब इसके बढ़कर 27,50,591.38 करोड़ रुपए हो जाने का अनुमान है। इससे पता चलता है कि इन परियोजनाओं की लागत 20.34 प्रतिशत यानी 4,64,917.13 करोड़ रुपए बढ़ गई है।'' रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल, 2023 तक इन परियोजनाओं पर 14,13,592.88 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं, जो कुल अनुमानित लागत का 51.39 प्रतिशत है। 

हालांकि, मंत्रालय ने कहा है कि यदि परियोजनाओं के पूरा होने की हालिया समयसीमा के हिसाब से देखें तो देरी से चल रही परियोजनाओं की संख्या कम होकर 598 पर आ जाएगी। वैसे इस रिपोर्ट में 413 परियोजनाओं के चालू होने के साल के बारे में जानकारी नहीं दी गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि देरी से चल रही 800 परियोजनाओं में से 194 परियोजनाएं एक महीने से 12 महीने, 175 परियोजनाएं 13 से 24 महीने की, 306 परियोजनाएं 25 से 60 महीने और 125 परियोजनाएं 60 महीने या अधिक की देरी से चल रही हैं। इन 800 परियोजनाओं में हो रहे विलंब का औसत 37.07 महीने है। 

इन परियोजनाओं में देरी के कारणों में भूमि अधिग्रहण में विलंब, पर्यावरण और वन विभाग की मंजूरियां मिलने में देरी और बुनियादी संरचना की कमी प्रमुख है। इनके अलावा परियोजना का वित्तपोषण, विस्तृत अभियांत्रिकी को मूर्त रूप दिए जाने में विलंब, परियोजना की संभावनाओं में बदलाव, निविदा प्रक्रिया में देरी, ठेके देने व उपकरण मंगाने में देरी, कानूनी व अन्य दिक्कतें, अप्रत्याशित भू-परिवर्तन आदि की वजह से भी इन परियोजनाओं में विलंब हुआ है। 
 

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