Edited By Niyati Bhandari,Updated: 23 May, 2024 08:46 AM
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पूर्णिमा तिथि बहुत पुण्यदायी मानी गई है। वैशाख महीने की पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा और बुद्ध जयंती के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन दुनियाभर से बौद्ध धर्म को मानने वाले बोधगया में आते हैं और बोधि वृक्ष की पूजा करते हैं।
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Buddha Purnima 2024: पूर्णिमा तिथि बहुत पुण्यदायी मानी गई है। वैशाख महीने की पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा और बुद्ध जयंती के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन दुनियाभर से बौद्ध धर्म को मानने वाले बोधगया में आते हैं और बोधि वृक्ष की पूजा करते हैं।
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बौद्ध धर्म की स्थापना गौतम बुद्ध ने की थी। बुद्ध का जन्म कपिलवस्तु (वर्तमान नेपाल में) के पास लुंबिनी में राजकुमार सिद्धार्थ के रूप में हुआ था। वह शुद्धोधन और महामाया के पुत्र थे। शुद्धोधन शाक्य वंश के प्रमुख थे। इसी कारण बुद्ध को ‘शाक्यमुनि’ भी कहा जाता था। सिद्धार्थ का पालन-पोषण उनकी मौसी प्रजापति गौतमी ने किया था। इससे उनका नाम ‘गौतम’ पड़ा। उनका विवाह यशोधरा से हुआ और उनका एक पुत्र राहुल था।
उन्होंने तपस्वी बनने के लिए 29 वर्ष की आयु में घर छोड़ दिया। बुद्ध के मन में त्याग का विचार तब आया, जब उन्होंने मनुष्य की चार अलग-अलग अवस्थाओं को देखा- बीमार आदमी, बूढ़ा, लाश और तपस्वी। वह 7 वर्ष तक विचरण करते रहे और 35 वर्ष की आयु में निरंजना नदी के तट पर एक पीपल के पेड़ के नीचे ध्यान करते हुए उरुवेला में ज्ञान प्राप्त किया। इस पेड़ को ‘बोधि वृक्ष’ के रूप में जाना जाने लगा और यह स्थान बोधगया (बिहार में) बन गया। उन्होंने अपना पहला उपदेश वाराणसी के पास सारनाथ में दिया था। इस घटना को धर्मचक्र प्रवर्तन-धम्मचक्कप्पवत्ताना कहा जाता है।
कुशीनगर (उत्तर प्रदेश) में एक साल के पेड़ के नीचे 483 ईसा पूर्व में उनका निर्वाण हुआ। इस घटना को ‘महापरिनिर्वाण’ कहा जाता है।
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मध्यम मार्ग का दिया उपदेश
भगवान बुद्ध ने लोगों को मध्यम मार्ग का उपदेश दिया। उन्होंने दु:ख, उसके कारण और निवारण के लिए अष्टांगिक मार्ग सुझाया। उन्होंने अहिंसा पर बहुत जोर दिया है। उन्होंने पशु-बलि की निंदा की।
पंचशील सिद्धांत
1. प्राणिमात्र की हिंसा से विरत रहना। 2. चोरी करने या जो दिया नहीं गया है, उसको लेने से विरत रहना। 3. लैंगिक दुराचार या व्यभिचार से विरत रहना। 4. असत्य बोलने से विरत रहना। 5. मादक पदार्थों से विरत रहना।
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चार सत्य
संसार में दुख है।
दुख के कारण हैं।
दुख के निवारण हैं।
तृष्णा को समाप्त करके दुख दूर किया जा सकता है।
आर्य अष्टांग मार्ग
गौतम बुद्ध कहते थे कि 4 सत्य की सत्यता का निश्चय करने के लिए इस मार्ग का अनुसरण करना चाहिए :
सम्यक दृष्टि : चार सत्य में विश्वास करना।
सम्यक संकल्प : मानसिक और नैतिक विकास की प्रतिज्ञा करना।
सम्यक वाक : हानिकारक बातें और झूठ न बोलना।
सम्यक कर्म : हानिकारक कर्म न करना।
सम्यक जीविका : कोई भी हानिकारक व्यापार या कमाई न करना।
सम्यक प्रयास : अपने को सुधारने की कोशिश करना।
सम्यक स्मृति : स्पष्ट ज्ञान से देखने की मानसिक योग्यता पाने की कोशिश करना।
सम्यक समाधि : निर्वाण प्राप्त करना।
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