Dayanand Saraswati Jayanti: आज है महर्षि दयानंद सरस्वती की जयंती, जानें कुछ खास बातें

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 05 Mar, 2024 11:23 AM

dayanand saraswati jayanti

19वीं सदी के नवजागरण के पुरोधा महान समाज सुधारक, अद्भुत विद्वान, तेजस्वी महापुरुष दयानंद जी का जन्म फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की दशमी को सन् 1824 में टंकारा में हुआ। 5 मार्च यानी आज इस

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Dayanand Saraswati Jayanti 2024: 19वीं सदी के नवजागरण के पुरोधा महान समाज सुधारक, अद्भुत विद्वान, तेजस्वी महापुरुष दयानंद जी का जन्म फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की दशमी को सन् 1824 में टंकारा में हुआ। 5 मार्च यानी आज इस महामानव की जयंती है। महर्षि दयानंद के प्रादुर्भाव के समय अज्ञान रूपी अंधकार से आच्छादित पाश्चात्य संस्कृति एवं सभ्यता की कृत्रिम जगमगाहट से चकाचौंध होकर संपूर्ण भारतीय जनमानस अपनी संस्कृति की परम्पराओं को भूल गए थे।

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गुरु विरजानंद के आश्रम में रहकर संस्कृत व्याकरण, दर्शन और ग्रंथों के चिंतन-मनन के उपरांत स्वामी दयानंद वेद का प्रचार संपूर्ण भारतवर्ष में करने के लिए तत्पर हुए। वैदिक ज्ञान एवं शास्त्रों के अहर्निश अनुशीलन एवं व्याख्या करते रहने से विशिष्ट तपस्या, साधना, ईश्वर निष्ठा एवं ज्ञान गरिमा के स्वामी दयानंद साक्षात देदीप्यमान नक्षत्र थे।

महर्षि दयानंद सत्य के पुजारी थे। सत्य की खोज के लिए वह वैभव और ममता संपन्न अपने गृह परिवार का सन् 1846 ईस्वी में 21 वर्ष की आयु में त्याग कर सन्यासी जीवन की ओर बढ़ गए।

सन् 1859 में व्याकरण के सूर्य गुरु विरजानंद की शरण में रहकर व्याकरण, योग दर्शन का अध्ययन किया तथा वहीं से इन्होंने अपने गुरु की प्रेरणा से ईश्वरीय ज्ञान वेदों के प्रचार का दृढ़ संकल्प लिया।  

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महर्षि दयानंद साहस, शौर्य और धैर्य की प्रतिमूर्ति थे। अद्वितीय ब्रह्मचारी, युग दृष्टा, मनु महाराज की परम्परा के स्मृतिकार स्वामी दयानंद ने सर्वप्रथम वेदों के ज्ञान को प्रामाणिक ग्रंथों के रूप में स्थापित किया। अज्ञान और अविद्या रूपी अंधकार के उस युग में स्वामी दयानंद ने सर्वप्रथम उद्घोष किया कि, ‘‘वेद सब सत्य विद्याओं की पुस्तक है। वेद का पढ़ना-पढ़ाना और सुनना-सुनाना सब आर्यों का परम धर्म है।’’

वेद मंत्रों के प्रमाण देकर स्वामी जी ने समाज में दलितों, शोषितों और अछूतों को समानता का अधिकार देकर सामाजिक एकता, समरसता एवं सद्भावना की नींव रखी। संपूर्ण भारत वर्ष एवं विश्व में वैदिक संस्कृति का प्रचार करने हेतु इन्होंने सन् 1875 में मुंबई में आर्य समाज की स्थापना की। स्वामी जी ने संपूर्ण विश्व को आर्य बनाने का नारा दिया। स्वामी दयानंद आधुनिक भारत में स्वराज्य, स्वदेशी, स्वभाषा और राष्ट्रीयता के प्रथम स्वप्नद्रष्टा थे।

सर्वप्रथम 1873 में स्वामी दयानंद ने स्वराज का नारा दिया, बाद में बाल गंगाधर तिलक जी ने इसे आगे बढ़ाया। वह पहले महापुरुष थे, जिन्होंने यह नारा दिया था कि भारतवर्ष भारतीयों के लिए है। स्वामी दयानंद ऐसी शिक्षा पद्धति के प्रबल समर्थक थे जिसके माध्यम से युवाओं में शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक शक्तियों का समावेश हो। इसके लिए उन्होंने वैदिक गुरुकुल प्रणाली का प्रचार किया। स्वामी दयानंद की विचारधारा से प्रेरित होकर बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, राम प्रसाद बिस्मिल, श्यामजी कृष्ण वर्मा, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह जैसे हजारों युवाओं ने भारतवर्ष की स्वाधीनता हेतु अपना सर्वस्व बलिदान किया। स्वामी दयानंद तपोनिष्ठ निर्भीक सन्यासी थे।

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स्वामी दयानंद का व्यक्तित्व शांति, विनम्रता, करुणा, दया जैसे दैवी गुणों की खान था। अपने हत्यारे को भी रुपए तथा क्षमा का दान देना ऐसी करुणा और दया का उदाहरण विश्व में अन्यत्र मिलना दुर्लभ है। महर्षि दयानंद कुशल वक्ता, चिंतक, सिद्धांत निष्ठ, उदार विचारों के महापुरुष थे। 

 

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