जब नारद मुनि की वजह से मुसीबत में आए काशी नरेश तो...

Edited By Jyoti,Updated: 02 Dec, 2022 12:09 PM

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लंका विजय के बाद जब श्रीराम अयोध्या लौट आए, तब वशिष्ठ ने जी उनके राज्याभिषेक की तैयारी करने के विषय में आदेश दिए। सब तैयारियां जोर-शोर से पूर्ण उत्साह उमंग के साथ होने लगीं।

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लंका विजय के बाद जब श्रीराम अयोध्या लौट आए, तब वशिष्ठ ने जी उनके राज्याभिषेक की तैयारी करने के विषय में आदेश दिए। सब तैयारियां जोर-शोर से पूर्ण उत्साह उमंग के साथ होने लगीं। आसपास और दूरदराज के क्षेत्रों में राजाओं को निमंत्रण भेजे जाने लगे।

काशी नरेश भी निमंत्रण पाकर राज्याभिषेक में उपस्थित होने के लिए चल पड़े। काशी नरेश भी राम के बड़े भक्त थे। जब वह अयोध्या के निकट पहुंचे तब उन्हें नारद जी मिले, उन्होंने उन्हें नमन किया। नारद जी ने कहा, ‘‘हे नरेश! आप हमारी एक बात मानो।’’
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काशी नरेश बोले, ‘‘नारद जी आप आदेश तो करें।’’

तब नारद जी कहने लगे, ‘‘जब आप श्री राम के राज्याभिषेक में उपस्थित हों, तब सभी को यथा योग्य कहें, किन्तु विश्वामित्र जी को नमन न करें।

नरेश आश्चर्य से बोले, ‘‘ऐसा क्यों?’’

यह आप को बाद में पता चल जाएगा। कह कर नारद जी ‘नारायण-नारायण’ का जाप करते हुए अंतर्ध्यान हो गए। काशी नरेश राज्याभिषेक के शुभ अवसर पर जाकर अपने स्थान पर आसीन हो गए। परिचय की औपचारिकता के अवसर पर काशी नरेश का भी परिचय दिया गया। काशी नरेश ने सभी को यथायोग्य कहा किन्तु ऋषि-मुनियों की पंक्ति में अपने आसन पर आसीन विश्वामित्र जी को उन्होंने सादर नमन नहीं किया।

यह देख कर विश्वामित्र जी को क्रोध आना स्वाभाविक था, किन्तु उन्होंने उस समय कार्यक्रम में खलल डालना उचित न समझा और शांत बैठे रहे।
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श्री राम के राज्याभिषेक का शुभ कार्य सम्पन्न हुआ। सब उन्हें यथायोग्य बधाइयां देते हुए अपने-अपने स्थानों से नमन करने लगे। तब उचित अवसर पाकर विश्वामित्र जी ने श्री राम से अपने मन का क्षोभ व्यक्त कर दिया। श्री राम ने इसे मर्यादा का उल्लंघन मानते हुए कहा, ‘‘ऋषि संध्या से पहले पहले मैं काशी नरेश को इसका दंड अवश्य दूंगा। आप निश्चिंत रहें।’’

जब काशी नरेश को बीच रास्ते में यह बात ज्ञात हुई तो वह डर गए और सोचने लगे कि अब श्री राम के क्रोध से कैसे बचें। यह सोचते-सोचते उनके मन में मां अंजनी का ध्यान हो आया। वह भागे-भागे उनके पास गए। अपना उद्देश्य सुनाया और बोले, ‘‘मां अब तो आप ही मेरी रक्षा कर सकती हैं, कुछ कीजिए।’’
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मां अंजनी ने उन्हें आश्वासन देकर निर्भय कर दिया। जैसे ही हनुमान मां अंजनी के पास आए, माता ने तुरंत ही अपने राम भक्त वीर पुत्र से सारी घटना बतला कर कहा कि इसमें काशी नरेश का कोई दोष नहीं है। यह सब करा-धरा नारद मुनि का है। अब दो मुनियों के बीच में काशी नरेश फंसे हुए हैं। उनकी रक्षा करो मेरा यह आदेश है। मैं काशी नरेश को अभय दान भी दे चुकी हूं।

अब हनुमान जी अपनी माता की बात कैसे टालते, उनके मस्तिष्क में एक युक्ति आई। उन्होंने काशी नरेश से कहा आप निश्चिंत होकर पवित्र नदी में जाकर राम नाम का जाप करते रहिए। काशी नरेश ने ऐसा ही किया। उधर श्री राम क्रोध में भरे हुए काशी नरेश को खोजते-खोजते उनके पास जा पहुंचे।

उन्होंने काशी नरेश को नदी में राम नाम का जप करते देखा। उन्हें देखते ही क्रोध से भरे श्री राम ने तीर संधान करके जैसे ही उनकी इहलीला समाप्त करनी चाही, तभी हनुमान जी सामने आकर खड़े हो गए।

श्री राम ने यह देखा तो बोले, ‘‘हनुमान यह क्या है?’’
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तब हनुमान जी बोले, ‘‘जो आपका नाम जप रहा है उस पर मैं कैसे तीर संधान करने दूंगा। भगवान, मैं अपने प्रभु का नाम लेने वाले की रक्षा का प्रण ले चुका हूं। कृपया आप इन्हें क्षमा करें। इसमें इनका दोष नहीं है। इस सब का कारण तो नारद मुनि जी हैं।’’

जब श्री राम ने यह सुना तो काशी नरेश को क्षमा कर दिया और वीर हनुमान जी से बोले, ‘‘वास्तव में हनुमान तुम अत्यंत बुद्धिमान हो।’’ तब हनुमान जी बोले, ‘‘प्रभु यह सब तो आप ही की प्रभुताई है।’’ -यतींद्रनाथ गौड़

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