Gita Jayanti: ये हैं गीता जी के वो उपदेश, जो बना सकते हैं आपको Super intelligent

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 03 Dec, 2022 07:55 AM

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सत्य सनातन धर्म के सबसे पवित्र एवं मानव जीवन के मूल्यों पर आधारित भगवान श्री कृष्ण जी की मुखवाणी से प्रकट ग्रंथ श्री गीता जी में भगवान ने ऐसे-ऐसे उपदेश दिये हैं। जिन पर चलकर व्यक्ति अपने विचारों पर नियंत्रण करके अपनी

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Geeta Jayanti 2022: सत्य सनातन धर्म के सबसे पवित्र एवं मानव जीवन के मूल्यों पर आधारित भगवान श्री कृष्ण जी की मुखवाणी से प्रकट ग्रंथ श्री गीता जी में भगवान ने ऐसे-ऐसे उपदेश दिये हैं। जिन पर चलकर व्यक्ति अपने विचारों पर नियंत्रण करके अपनी इंटैलिजेंसी को बढ़ाकर बहुुत कुछ प्राप्त कर सकता है। जिन देव आत्माओं ने इन ग्रंथों की रचना की है, वह सिर्फ और सिर्फ जनकल्याण की भावना से ही की है। ताकि आने वाली पीढ़ियां उनका अनुसरण करके अपने जीवन को पूर्णतः विकसित कर जीवनयापन करें। श्री गीता जी के उपदेश मानव जाति के लिये सूर्य के ही समान हैं, जो कि अज्ञान रूपी अंधकार से मुक्ति दिलवाता है।

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Bhagavad Gita Jayanti 2022 Gita Mahotsav श्री गीता जी का सबसे प्रथम उपदेश कर्म का है

श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं- जीवन, मृत्यु, लाभ, हानि, यश, अपयश यह मेरे ही अधीन हैं। तुम इन 6 भावों के अधीन होकर कर्म मत करो। तुम सिर्फ यह सोचकर कर्म करो कि जो कुछ भी कर रहे हो वह सब मुझे ही समर्पित हो रहा है। उसका जो भी फलस्वरूप परिणाम होगा वह मैं ही प्रदान करता हूं।

श्री कृष्ण जी का यह उपदेश सम्पूर्ण मानव जाति को यह शिक्षा देता है कि किसी भी प्रकार के कर्म का परिणाम भगवान ने ही प्रदान करना है। इसलिए जो कुछ भी करो परमात्मा को समर्पित कर दो। श्री कृष्ण जी ने यह भी कहा है कि अच्छे कर्मो का परिणाम हमेशा शुभ ही होती है और बुरे कर्मों का परिणाम हमेशा अशुभ ही होता है। तो कर्म करते समय तो हम स्वतंत्र है परन्तु कर्म हो जाने के पश्चात हम कर्म बंधन से बंध जाते हैं। जिसका परिणाम हमें अवश्य ही भोगना पड़ता है।

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श्री गीता जी का दूसरा उपदेश विश्वास का है
श्री कृष्ण जी सम्पूर्ण जगत को यह शिक्षा देना चाहते हैं कि अपने कर्म में पूर्ण विश्वास रखो। तुम स्वयं अपने विश्वास की उपज हो। जो भी जिसका अनुसरण करता है, उसमें वैसे ही गुण स्वयं ही प्रकट होना आरम्भ हो जाते हैं। इसलिए स्वयं में विश्वास रखो क्योंकि तुम स्वयं उस परमात्मा का ही अंश हो। जब इन्सान स्वयं में विश्वास रखता है तो उसमें परमात्मा के ही दिव्य गुण प्रकट होना आरम्भ हो जाते हैं।

श्री गीता जी का तीसरा उपदेश भक्ति/ध्यान का है
श्री कृष्ण जी कहते हैं इस नाशवान शारीरिक कर्म से ज्ञान का मार्ग उच्च है और ज्ञान के मार्ग से भी ऊपर होता है ध्यान और भक्ति का मार्ग क्योंकि इस मार्ग पर चलकर शारीरिक रूप से हमारे दिमाग की कार्यक्षमता और अधिक विकसित हो सकती है। एक इंसानी दिमाग अपनी चरम सीमा पर कार्य कर इस ब्रह्मांड की सभी प्रकार की शक्तियों पर नियंत्रण पा सकता है। जिसके कि बहुत से उदाहरण हमारे धार्मिक ग्रंथों में भरे पड़े हैं। भक्ति के मार्ग पर चलकर जो हमारे भाग्य में नहीं है, हम उसे भी प्राप्त कर सकते हैं और जो हमारी जीवन यात्रा में बाधाएं हैं, उन्हें भी हम भक्ति मार्ग व अच्छे कर्मों के बल पर हल कर सकते हैं।

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अगर हम श्री कृष्ण जी के गीता में दिये गये इन उपदेषों पर चलते हैं तो अपनी मानसिक ताकत को इतना अधिक बढ़ा सकते हैं कि जीवन में कुछ भी प्राप्त करना कठिन नहीं रहता और इन्सान सूपर इंटैलिजेंसी के साथ जीवन व्यतीत कर सकता है।

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Sanjay Dara Singh
AstroGem Scientist
LLB., Graduate Gemologist GIA (Gemological Institute of America), Astrology, Numerology and Vastu (SSM)

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